दर्द न समझे कोई….।
सुबह सुबह मुझे सडक़ झाडऩे की आवाज आई,तो मैं तुरंत कचरा लेकर बाहर गई। सफाईकर्मी भाभी बड़बडा रही थी। गाड़ी में कचरा डालते हुए,मैने-पूछा, क्या हुआ भाभी? आज इतना गुस्सा क्यों हो रहे हो? वह बोली देखो न दीदी, घर का बड़ा बड़ा कचरा भी इसी छोटी सी गाड़ी में डाल देते है। अभी- अभी मैं- दो बार कचरे की गाड़ी खाली करके आई हूं। ‘आज मेरी ‘‘तबियत’’ भी ठीक नही’है। निगम से छुट्टी मांगी,तो वह भी निगम वालों ने नही दी। बोलते-बोलते उनकी आवाज भर आई,आंखो में आंसू डबडबाने लगे। खुद को सम्भालते हुए बोली अभी थोडी देर में कचरे की बड़ी गाड़ी भी आएगी,उसमे ये बड़ा कचरा डालना चाहिए। उसमे नही डालेगें,इसी छोटी गाड़ी में ही, सभी कचरा डालते हैं। मैने कहा, आप बोल दिया करो,इस गाड़ी में बडा कचरा न डाले। वह बोली,मैने बोला कई बार, लेकिन कोई सुनता ही नही है। और तो और मेरी शिकायत भी कर देते हैं। तुम ही बताओं दीदी मैं क्या करू? मैने बडे ध्यान से उनकी बात सुनी। मैने कहा, हां सही कह रही हो आप पर….कोई नही माने तो क्या कर सकते हैं? मैने, उनसे कहा बैठो थोडी देर रेस्ट कर लो। मैं चाय बना कर लाती हूं,‘चाय पी कर आपको ठीक लगेगा’। यह कहकर, मैं अंदर चाय बनाने लगी, जैसे जैसे चाय उबल रही थी, मेरे मन में विचार उबल रहे थे। खैर चाय बना कर उन्हे दी, वह चाय पीकर खुश होकर चली गई,वह तो चली गई पर मेरे अंदर कई प्रश्न चलने। हम किस सभ्य समाज की बात करते हैं? जहां कोई किसी का दर्द नही समझता। किसी की तकलीफ से किसी को कोई लेना देना नही है। हमारी राजनीतिक पार्टिया हमेशा दलित दलित करती रहती हैं। उनके नाम पर वोट बटोरती रहती हैं। हमारी सरकारे दलितों की भलाई के लिए कई तरह की योजनाएं निकालती रहती हैं। किंतु उन योजनाओं का कितना प्रतिशत जरूरतमंद तक पहुंच पाता हैं। ‘यह हम सभी जानते है’। अधिकतर योजनाएं सिर्फ कागजों तक या बडे नेताओं के भाषणों के लिए ही होती है। ये लोग कभी छुट्टी भी नहीं मनाते,कैसा भी मौसम हो ये अपना काम हमेशा करते है,अभी कोरोना काल में सतत काम करते रहे,फिर भी इनकी अधिकतर जगह अवहेलना की जाती है , पर आज सफाईकर्मी भाभी कितनी तकलीफ में थी। फिर भी किसी ने उनकी तकलीफ नही देखी । अपनापन, एक दूसरे के दर्द बांटने की बातें सिर्फ किताबों,भाषणों में ही होती हैं,यर्थात में नही….।