April 25, 2024

(कहानी )

यह कहानी नहीं एक सच्ची घटना है जो एक मुस्लिम परिवार से संबंधित है। देश को आजाद हुए कुछ ही वर्ष हुए थे और हमारा गांव अन्य सामान्य गांव की तरह एक छोटा सा गांव था। जिसकी आबादी मुश्किल से उस जमाने में 400 रही होगी। गांव में सभी जाति धर्म के लोग रहते थे। जिनमें मुसलमानों के चार घर थे। पहला घर सलामत खान का था दूसरा उन्हीं के भाई रमजान खान का था तीसरे नन्हे खान और चौथे जमील खान। सबके पास 5:00 से लगाकर 10 बीघे तक जमीन थी। जिसमें यह अपने मनमाफिक फल फूल साग सब्जी अनाज आदि उगाते थे। किंतु साल भर पेट पालने के लिए यह दूसरे भी धंधे करते थे। जैसे जमील खान प्लास्टिक के खिलौने तथा औरतों के श्रृंगार का सामान शहर से ल़ा कर गांव में बेचते थे। नन्हे खान प्राइमरी टीचर थे रमजान खान औरतों को चूड़ियां पहनाने का काम करते थे और सबसे अधिक इनमें पैसे की दृष्टि से सलामत खान मजबूत थे। सलामत खान एक बहुत अच्छे ढोलक बजाने के उस्ताद थे। यदि वह बॉलीवुड में होते तो आज उनका नाम पूरे देश में होता। हमारे गांव से बीस बीस कोस दूर तक उनके जैसा ढोलक बजाने वाला कोई नहीं था। हमारे गांव या आसपास के किसी गांव में रामलीला या रासलीला या नौटंकी या आल्हा उदल का गायन भजन मंडली होली दिवाली पर होने वाले नाच या अन्य कोई संगीत का कार्यक्रम होता तो उसमें सलामत खान को जरूर बुलाया जाता था।

सलामत खान खुद तो अच्छी ढोलक बजाते ही थे उन्होंने अपने बड़े लड़के बशीर खान को हरमोनियम का उस्ताद बना दिया था। दूसरा जुम्मा खान उन्हीं की तरह ढोलक बजाना सीख रहा था और सबसे छोटा सुलेमान खान हमारे साथ स्कूल में पढ़ता था। उसकी उम्र उस समय लगभग 8 या 9 वर्ष रही होगी। सन 1954 में फिल्म नागिन रिलीज हुई थी। जिसका गाना तन डोले मेरा मन डोले गांव-गांव और नगर नगर में धूम मचा रहा था। बच्चों की आवाज चाहे लड़का हो या लड़की एक जैसी होती है। अतः सुलेमान खान की आवाज लड़कियों जैसी बहुत सुरीली थी। किसी संगीत के कार्यक्रम में सलामत खान अपने इस सबसे छोटे लड़के को इंटरवल में गाना गाने के लिए खड़ा कर देते थे और जब सुलेमान हारमोनियम से निकली बीन की धुन पर तन डोले मन डोले का गाना गाता था लोग मस्त हो जाते थे और एक एक रुपए की बारिश कर देते थे। उस जमाने में एक रुपए का बहुत महत्व होता था। सोना उस समय ₹80 तोला था. सलामत खान खूब पैसा कमा रहे थे कि अचानक सुलेमान को बुखार रहने लगा।

ज्यादातर लोगों का कहना था कि सुलेमान को नजर लग गई है। जब तक वह गाना नहीं गाता था तब तक उसे बुखार नहीं आता था। लेकिन जिस दिन वह गाना गाता था उसे बुखार आ जाता। उन दिनों गांव या कस्बों में मेडिकल प्रैक्टिशनर डॉक्टर तो होते नहीं थे। पैसे वाले और ऊंची जाति वालों के यहां वैद्य या हकीम इलाज किया करते थे। जबकि छोटी जाति वालों के यहां झाड़-फूंक तंत्र मंत्र ओझा तांत्रिक आदि बीमारियों का इलाज करते थे। मुस्लिम परिवार अपने बच्चों को पास के गांव की मस्जिद के बड़े मुल्लाजी के पास इलाज के लिए ले जाते थे। जो ताबीज बांधकर और कुछ कुरान की आयतें पढ़कर रोग दूर करते थे। इसलिए सलामत खान अपने बच्चे को मुल्लाजी के पास ले गए। मुल्लाजी ने पहले तो सलामत खान को खरी खोटी सुनाई। उन्होंने कहा कि हमारे मजहब में नाच गाना हराम माना जाता है फिर भी तुम बच्चे से गाना गवाया करते हो। यह अच्छी बात नहीं है। सलामत खान क्या बोलते चुपचाप सुनते रहे और बच्चे का इलाज करा कर वापस आए। सुलेमान का बुखार तो उतर गया लेकिन जिस दिन वह गाना गाता वापस बुखार आ जाता ऐसा क्रम महीनों तक चलता रहा।

सलामत खान को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे क्योंकि उनकी आमदनी का एक जरिया बंद हो रहा था। उन्हीं दिनों गांव के एक रिश्तेदार का लड़का मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था अर्थात एमबीबीएस डॉक्टर बनने जा रहा था। जब उसको सुलेमान को दिखाया गया तो उसने बच्चे का मुंह खोल कर देखा और वह समझ गया कि उसके टांसिल बड़े हुए हैं। उसने कुछ गोलियां दी और इंजेक्शन लगाने की बात कही तो सलामत खान ने इंजेक्शन लगाने के लिए मना कर दिया। वैसे तो टॉन्सिल का ऑपरेशन होता है किंतु उससे आवाज बदलने का खतरा था इसलिए उसने गोलियों से काम चलाया और बता दिया कि बच्चे से कम से कम गवाया जाए तथा रोज सांझ सवेरे हल्के गर्म पानी में नमक डालकर गरारे करवाए जाएं। इस प्रकार सुलेमान गाने गाता रहा पर पहले जैसी बात नहीं रही।

यह घटना को लगभग 65 वर्ष से अधिक का समय गुजर चुका है। अब सुलेमान की उम्र 75 वर्ष की है। उनका बड़ा लड़का तनवीर खान नाक कान गला के रोगों का विशेषज्ञ डॉक्टर है। गांव में ही रहता है और मोटरसाइकिल पर जाड़ा गर्मी बरसात आंधी तूफान में गांव-गांव घूमकर इलाज करता है। सुलेमान चाहते तो किसी शहर में एयर कंडीशंड मकान में शानदार जिंदगी जी सकते हैं किंतु उन्होंने गांव के लोगों का इलाज करना बेहतर समझा और अपने लड़के को हमारे और आसपास के गांव मैं इलाज के लिए भेजते हैं। वह नहीं चाहते कि उन्होंने बचपन में टॉन्सिल और सर्दी खांसी कि जो तकलीफ उन्होंने उठाई थी कोई और ऐसी तकलीफ उठाएं।

लेखक डॉक्टर डीएन पचौरी

You may have missed

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds