“दरिंदा”
कुछ ही दिनों में वह दरिंदा पुलिस की गिरफ्त में आ गया था ! अपराधी तो था नहीं 25 साल का युवक था थाने पर भीड़ बहुत जमा हो गई थी ,दरिंदे को देखने के लिए ,फाँसी दो फाँसी दो की आवाज़ें आ रही थी ! पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ रहा था , भीड़ को भगाने के लिए, यह इस इलाके में तीसरी वारदात थी! दो वारदात की खोजबीन चालू थी, लेकिन तीसरी वारदात का अपराधी पकड़ा गया था, साल भर की मासूम बच्ची का रेप और हत्या !इतने में भीड़ को चीरती हुई एक महिला आई और बोली बिल्कुल फाँसी दो यह पापी है ,मैंने इतना पढ़ाया लिखाया संस्कार दिए और इसमें खानदान की नाक कटवा दी इसको मुझे बेटा बोलने में ही शर्म आती है ! महिला जोर से चिल्लायी !यह बात निश्चित थी कि यह महिला उस लड़के की माँ थी !अरे हां फांसी दो मुझे गोली मार दो ,हम सब बलात्कारियों को लेकिन हमें समझो मत हम बलात्कारी ही नहीं है बलात्कारी तो तुम हो जो हमारी भावनाओं ओरभूख को दबा दबा कर हमको पागल कर रखा है ,खाने को नहीं मिलेगा तो छीन कर तो खाऊंगा मैं,हमे भी भूख लगती है , तुम्हारे खोखले आदर्शों ओर संस्कारो को थूकता हूँ ! जरूरी तो नहीं सभी संस्कारी हो या बने ,बहुत जोर से चिल्लाया वो दरिंदा ,पीछे हट गई थी वो माँ डर के मारे !एक प्रश्न उसके दिमाग को परेशान करने लगा ,क्या सही है ? ये -!
इन्दु सिन्हा”इन्दु
रतलाम(मध्यप्रदेश)