November 13, 2024

वास्‍तविक होने के साथ मानवीय संवेदना और भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति’एयरलिफ्ट’

22 जनवरी (इ खबरटुडे)।हिंदी फिल्में आमतौर पर फंतासी प्रेम कहानियां ही दिखाती हैं। कभी समाज और देश की तरफ मुड़ती हैं तो अत्याचार, अन्याय और विसंगतियों में उलझ जाती हैं। सच्ची घटनाओं पर जोशपूर्ण फिल्‍मों की कमी रही है। राजा कृष्ण मेनन की ‘एयरलिफ्ट’ इस संदर्भ में साहसिक और सार्थक प्रयास है।

 मनोरंजन प्रेमी दर्शकों को थोड़ी कमियां दिख सकती हैं, पर यह फिल्म से अधिक उनकी सोच और समझ की कमी है। फिल्में मनोरंजन का माध्यम हैं और मनोरंजन के कई प्रकार होते हैं। ‘एयरलिफ्ट’ जैसी फिल्में वास्‍तविक होने के साथ मानवीय संवेदना और भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति हैं।
‘एयरलिफ्ट’ 1990 में ईराक-कुवैत युद्ध में फंसे 1,70,000 भारतीयों की असुरक्षा और निकासी की सच्ची कहानी है। (संक्षेप में 1990 में अमेरिकी कर्ज में डूबे ईराक के सद्दाम हुसैन चाहते थे कि कुवैत तेल उत्पादन कम करे। उससे तेल की कीमत बढ़ने पर ईराक ज्यादा लाभ कमा सके। ऐसा न होने पर उनकी सेना ने कुवैत पर आक्रमण किया और लूटपाट के साथ जानमाल को भारी नुकसान पहुंचाया। कुवैत में काम कर रहे 1,70,000 भारतीय अचानक बेघर और बिन पैसे हो गए। ऐसे समय पर कुवैत में बसे कुछ भारतीयों की मदद और तत्कालीन विदेश मंत्री इंद्र कुमार गुजराल की पहल पर एयर इंडिया ने 59 दिनों में 488 उड़ानों के जरिए सभी भारतीयों की निकासी की। यह अपने आप में एक रिकार्ड है, जिसे गिनीज बुक में भी दर्ज किया गया है।)
निर्देशक और उनके सहयोगियों तब के कुवैत को पर्दे पर रचने में सफलता पाई है। उल्लेखनीय है कि उन्होंने यह सफलता सीमित बजट में हासिल की है। हॉलीवुड की ऐसी फिल्मों से तुलना न करने लगें, क्योंकि उन फिल्मों के लिए बजट और अन्य संसाधनों की कमी नहीं रहती।
‘एयरलिफ्ट’ की खूबी है कि यह कहीं से भी देशभक्ति के दायरे में दौड़ने की कोशिश नहीं करती। हां, जरूरत के अनुसार देश, राष्ट्रीय ध्व़ज, भारत सरकार सभी का उल्लेख होता है। एक खास दृश्य में झंडा देख कर हमें उस पर गुमान और भरोसा भी होता है। यह फिल्म हमें अपने देश की एक बड़ी घटना से परिचित कराती है।

You may have missed

This will close in 0 seconds