चुनावी चख-चख -12
झुमरु का विधवा विलाप
बारहवां दिन-22 नवंबर
बासठ हजारी लहरों पर सवार होकर भोपाल पंहुचे झुमरु दादा की फि लम इस बार बुरी तरह पिट रही है। पिछली बार तो टोपीवालों ने जमकर दादा का साथ निभाया था,लेकिन इस बार उनकी पुरानी वफादारी जोर मार रही है और सबने पंजा पार्टी के साथ नाता जोड लिया है। दादा को भी इस बात की जानकारी मिल चुकी है। गुरुवार को दादा ने इन बुझे हुए अंगारों पर फूंक मारने की बडी कोशिशें की। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात। पांच साल से गुस्साए बैठे टोपीवालों ने दादा की बात पर बिलकुल कान नहीं दिया। पिछली बार जहां दादा को सुनने हजारों की भीड जमा थी और दादा का जोशो जुनून हिलोरे मार रहा था,इस बार उनके स्वरों में विधवा विलाप का करुण क्रन्दन सुनाई दे रहा था। मैनेजमेन्ट के महारथी दादा को पहले से अंदाजा था कि लोग आएंगे नहीं,इसलिए अपने तमाम कार्यकर्ताओं को यहां आने के निर्देश दिए जा चुके थे,ताकि भीड नजर आए। लेकिन भीड नहीं जुटी। पहले के भाषणों में श्रोताओं का उत्साह और पूरी हिस्सेदारी साफ दिखाई देती थी,लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं था। न तो ठहाके थे,ना तालियां। दादा की हालत पतली थी। बेचारे बार बार अपनी वफादारी का वास्ता दे रहे थे लेकिन श्रोता थे कि उन पर कोई असर ही नहीं हो रहा था। बहरहाल यह भी तय हो चुका है कि बासठ हजार का गुब्बारा अब फूट चुका है और अब मामला जमानत बचाने के स्तर तक जा पंहुचा है।
अब कैसे सम्हले मैनेजमेन्ट
यह पहले भी कहा गया था कि चुनाव कोई फैक्ट्री नहीं है,जिसका काम कर्मचारियों के भरोसे चल जाए। लेकिन चुनाव को फैक्ट्री के तर्ज पर चलाने के बुरे नतीजे अब सामने आने लगे है। शहर की फिजा भैयाजी के समय को कठिन बताने लगी है। जब जब फूल छाप पार्टी की दिक्कतें बढती है,पैरेलल मैनेजमेन्ट की व्यवस्था की जाती है। भैयाजी के लिए भी अब पैरेलल मैनेजमेन्ट शुरु हो चुका है। लेकिन समस्या यह है कि जो चीज बिगड गई वह अब सुधरेगी कैसे? चुनावी मैनेजमेन्ट में कई चीजे हाथ से निकल चुकी है। नाक कान के डाक्टर को पार्टी में लाना भी ऐसा ही मुद्दा था। न जाने किन विद्वानों ने यह गणित लगाया था कि इससे फायदा होगा। अब साफ दिख रहा है कि यह दांव उल्टा पड गया। कमजोरी की खबरें भोपाल तक पंहुच रही है। आखरी वक्त पर ढहते किले को बचाने के आपातकालीन प्रबन्ध शुरु कर दिए गए है। देखना यह है कि ये आपातकालीन प्रबन्ध कितना असर दिखा पाते है।
नहीं दहाडे बब्बर
पंजा छाप पार्टी ने आखरी दौर में अपने टोपीवाले वोटरों को साध कर रखने के लिए पिटे हुए फिल्मी हीरो की सभा करवा दी। फिल्मी हीरो की सभा के लिए मोमनपुरा को चुना गया और दोपहर का वक्त रखा गया। हीरो को देखने के लिए काफी सारे लोग भी वहां पंहुच गए। लेकिन फिल्मी हीरो ने तो आडवाणी जी का भी रेकार्ड तोड दिया। आडवाणी जी तो करीब सात मिनट बोले थे। फिल्मी हीरो ने मात्र पांच मिनट ही गुजारे। अगर फिल्मी हीरो की सफल सभा से वोट आ सकते है,तो उसके ना बोलने से वोट जा भी सकते है। इस सभा से क्या होगा? वोट आएंगे या जाएंगे?
फेंकू नम्बर दो
शहर के निर्दलीय दावेदार को शहर के लोग फेंकू की उपाधि तो काफी पहले ही दे चुके है,लेकिन अब एक दावेदार को फेंकू नम्बर दो का दर्जा मिल सकता है। सूबे के सदर ने अपनी सभा में झोपडपट्टी में रहने वाले लोगों को पट्टा देने की घोषणा की थी,लेकिन इस दावेदार ने इससे भी आगे पढकर शहर में साढे बारह हजार पक्के मकान बनवाकर देने का संकल्प घोषित कर दिया। मकान बनाने की विधि से परिचित लोग जोड बाकी कर रहे है कि एक छोटे से 300 वर्ग फीट के पक्के पकान के लिए कम से कम छ: सौ वर्ग फीट की जगह चाहिए और अगर ये मकान कालोनी की शक्ल में बनाना हो,तो सड़क और पार्क आदि की जगह भी लगती है। इस हिसाब से एक मकान के लिए कम से कम आठ-नौ सौ वर्गफीट की जगह चाहिए। साढे बारह हजार मकानों के लिए तो लाखों वर्ग फीट जमीन चाहिए। अब बताईए इतनी जमीन कहां है? ऐसे वादों पर फैंकू नम्बर दो की उपाधि गलत भी नहीं है।