November 24, 2024

Raag Ratlami : लाल बत्ती के जलवे वाली कुर्सियों पर कब्जा जमाने के लिए बेताब है फूल छाप के नेता/दिन हफ्ते महीने गुजरे,काम नहीं हुआ पूरा

-तुषार कोठारी

रतलाम। सियासत के मोर्चे पर वैसे तो सुस्ती छाई हुई है,लेकिन फूल छाप पार्टी में भीतर भीतर सरगर्मियां है। सूबे के चुनाव में अब काफी कम वक्त बचा है। ऐसे में फूल छाप वाले नेताओं को उम्मीद है कि आखरी वक्त में कोई ना कोई दमदार कुर्सी जरुरी कब्जाई जा सकती है। जिले के मुखिया से लगाकर शहर के विकास की जिम्मेदारी वाले प्राधिकरण का अध्यक्ष बनने तक के कई सारे मसले लम्बे वक्त से लटके हुए है और फूल छाप के कई सारे नेता इस पर आंखे गडाए बैठे है।

लाल बत्तियां तो अब मंत्रियों के पास भी नहीं रही,लेकिन लाल बत्ती वाला ताम झाम अब भी है। शहर में लम्बी जद्दोजहद के बाद शहर के विकास के लिए प्राधिकरण बना था। नेताओं के लिए ये कुर्सी लाल बत्ती वाला जलवा बिखेरने की है। जब से ये कुर्सी बनी,तब से अब तक केवल एक नेता के कब्जे में आ पाई। इसके अलावा सारा वक्त इस कुर्सी पर अफसरों का ही कब्जा रहा है। नेताओं की खींचतान इतनी ज्यादा है कि राजधानी वाले इसका फैसला ही नहीं कर पाते कि ये कुर्सी किसे सौंपी जाए।

बहरहाल,चुनाव पास आने के साथ कुछ नेताओं का अंदाजा है,कि अब इस कुर्सी पर किसी को बैठाया जा सकता है। अगर सरकार इस कुर्सी पर किसी को बैठाने के लिए तैयार है,तो शहर के तमाम नेता इसके दावेदार है।

फूल छाप में जिले के मुखिया वाली कुर्सी का मसला भी चर्चाओं में है। फूल छाप के नेताओं का मानना है कि जल्दी ही इसमें फेरबदल होना है। अगर वो वाली नहीं,तो ये कुर्सी भी कमजोर नहीं है। फूल छाप के नेता इन दोनों कुर्सियों में से किसी एक पर कब्जा जमाना चाहते है। दावेदारों की तादाद एक
अनार सौ बीमार वाली कहावत जैसी है। फूल छाप में कब क्या होगा कोई नहीं जानता। कब मामा की नजर किस पर पडेगी,इसका किसी को पता नहीं है। लेकिन फूल छाप के नेता सपने जरुर संजोने लगे है। अब किसके कौन से सपने पूरे होंगे ये वक्त बताएगा।

दिन हफ्ते महीने गुजरे,काम नहीं हुआ पूरा

शहर में फिर एक नई सड़क बन रही है। पावर हाउस रोड से न्यूरोड को जोडने वाली ये सड़क पहले एक कालोनी की भीतरी सड़क थी,लेकिन अब ये फोरलेन हो रही है यानी अब कालोनी की सड़क की बजाय ये शहर की एक मुख्य सड़क बनने जा रही है। शहर में जब कभी कोई सड़क बनती है,पूरे शहर को इसका मजा लेने से पहले लम्बे वक्त तक सजा भुगतना पडती है। काम करने वाले ठेकेदार,अपनी मनमर्जी से धीरे धीरे काम करते है और पन्द्रह दिन का काम पूरा करने में महीनों लगा देते है। सड़क किनारे रहने वाले ही नहीं बल्कि पूरे शहर को इसकी तकलीफ झेलना पडती है।

नगर निगम के हर काम का ठेका देने के समय,काम को पूरा करने की अवधि तय की जाती है। ठेके की एक शर्त ये भी होती है कि जहां काम शुरु किया जाएगा,वहां काम समाप्ति की तारीख लिखकर बोर्ड लगाया जाएगा,ताकि वहां से गुजरने वाले लोगों को पता लग जाए कि काम कब पूरा होगा? ठेके में ये शर्त तो होती है,लेकिन ठेकेदार पर इसका कोई फर्क नहीं पडता। अफसर और नेता भी कभी इस पर ध्यान नहीं देते। सीवरेज प्रोजेक्ट के दौरान भी यही होता रहा था।

ठेकेदेर काम शुरु करता है,सड़क खोद देता है। सडक पर से आना जाना बन्द हो जाता है। लेकिन ठेकेदार को काम पूरा करने की कोई जल्दी नहीं होती। इसी बीच उसे अगर दूसरा काम मिल गया,तो वह खुदी हुई सड़क को ऐसा ही छोडकर दूसरा काम शुरु कर देता है। जो काम पन्द्रह दिनों में पूरा होना चाहिए,उसमें महीनों लग जाते है।

शास्त्री नगर में बन रही फोरलेन की भी यही कहानी है। लम्बा वक्त गुजर चुका है,लेकिन कोई ये बताने को राजी नहीं है कि सड़क कब पूरी होगी और कब यहां से गुजरने वालों को फिर से आसानी से इस सड़क का उपयोग करने मिलेगा। न्यूरोड की तरफ से सड़क का काम शुरु हुआ। लोगों को बडी खुशी हुई कि शहर में एक और फोर लेन बन रहा है। लोगों को लगा था कि कुछ ही दिनों में शानदार सड़क का आनन्द मिलने लगेगा। लेकिन दिन गुजरने लगे,हफ्तों में बदले और हफ्ते महीनों में बदल गए। सड़क पूरी ही नहीं हुई। अब नाले की पुलिया खुली हुई है। पुलिया का चौडीकरण होना है,और कोई नहीं जानता कब ये पुलिया चौडी होगी और कब सड़क चलने के लिए खुलेगी।

रतलाम के बाशिन्दे बेहद सीधे सच्चे है। वे कोई गुस्सा नहीं दिखाते। बिना कराहे तकलीफें झेलते रहते है और उम्मीद करते है कि आज नहीं तो कल तकलीफें दूर हो ही जाएगी। लेकिन कम से कम उनके प्रतिनिधियों को तो सोचना चाहिए कि ठेकेदार से ठेके की शर्तों का पालन तो करवाएं। हर काम शुरु होने के वक्त वहां ठेकेदार से यह बोर्ड लगवाए कि यह काम फलां तारीख को पूरा होगा। नेताओं को काम का शुभारंभ करने के वक्त ही उसके पूरे होने की तारीख भी बताना चाहिए।

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