Raag Ratlami Land Mafia : क्या जावरा वालों से गए गुजरे है रतलाम के भू माफिया..? शहर की घनी आबादियों में है खतरे वाले खुले गोदाम
-तुषार कोठारी
रतलाम। क्या रतलाम के भू माफिया जावरा वालों से गए गुजरे है? ये सवाल वा सिर्फ रतलामी बन्दों को परेशान कर रहा है,बल्कि जमीन और कमीन के लिए फेमस हो चुके जमीनों के जादूगरों को भी इस सवाल से शर्मिंदगी का एहसास हो रहा है। इसकी वजह भी है। जिला इंतजामिया ने वैसे तो जिले भर में अवैध कालोनियों और सरकारी जमीनों पर कब्जा करने वालों के खिलाफ मुहिम छेड रखी है,लेकिन एक्शन के मामले में जावरा रतलाम से आगे नजर आ रहा है।
पिछले कई सालों से रतलाम जमीन और कमीन के लिए सुर्खियों में रहा है। रतलामी जमीन के जादूगर दूर दूर तक जाने जाते है। दिल्ली बम्बई तक जमीन और कमीन के मामले में रतलाम का नाम रहा है। जमीनों के भाव आसमान तक पंहुचाने के मामले में रतलामी दलालों का कोई तोड नहीं है। जमीन के जादूगर इतने कलाकार है कि वे ग्र्रीन बेल्ट में कालोनी बना देते है। कालोनी के बगीचों को घरों में बदल देते है। एक एक प्लाट को कई कई लोगों को बेच देते है। इतना ही नहीं अपनी जमीन से लगी सरकारी जमीन को भी अपनी कालोनी में शामिल करके प्लाट काट देते है। इतने सारे कमाल करने के बाद शहर में कालर उंची करके घूमते है।
जिला इंतजामिया के नए साहब ने सरकार के फरमान पर जिले भर में इन जादूगर भू माफियाओं के खिलाफ मुहिम छेडी तो रतलामी बन्दों को लगा कि अब बडी बडी खबरें मिलेगी और कई सारे भू माफिया सींखचों के पीछे जाते नजर आएंगे। इंतजामिया की मुहिम में जमीनों के खेल के बडे मगरमच्छो पर गाज भी गिरी। इंतजामिया ने रियासती जमाने की बिल्डिंग पर बनाए जा रहे निर्माण की अनुमति निरस्त कर दी। उधर पटरी पार सरकारी जमीन को अपनी दिखा कर बनाई जा रही मल्टी का काम भी रोक दिया। लेकिन फिर ये मुहिम जिले के दूसरे इलाकों मेंं पंहुच गई। ढोढर के अवैध शापिंग काम्प्लेक्स को ढहाया गया तो बाकायदा मामजी ने ट्विट करके इंतजामिया की तारीफ भी कर डाली। नवाबी नजरी जावरा में डेढ सौ से ज्यादा अवैध कालोनियों की लिस्ट भी तैयार हो गई। इतना बकुछ हो गया,लेकिन इधर रतलाम की कहानी ऐसी अटकी कि अभी तक दो मामलों से आगे ही नहीं बढ पाई। वैसे बीच में एक बार नगर निगम के अमले ने दो-तीन अवैध कालोनियों के निर्माण तोडे,लेकिन इसके बाद ना तो इन अवैध कालोनी बनाने वालों के खिलाफ कोई एक्शन होने की खबर आई और ना ही शहर में पनप रही दूसरी अवैध कालोनियों का नम्बर आया।
वैसे तो जमीनों के लिए फेमस इस शहर में करने को बहुत कुछ है। अगर इंतजामियां चाहे तो हर दिन कई सारी नई कहानियां उजागर हो सकती है। जिन कालोनियों को तमाम अनुमतियां लेकर विकसित की हुई बताया जाता है,उनमें भी कई सारी पोलें है। कहीं पानी की टंकी नहीं है,तो कई बगीचें गायब हो चुके है। इंतजामियां के पास सारी जानकारियां भी मौजूद है। लोग इंतजार में है कि जब जावरा में डेढ सौ से ज्यादा अवैध कालोनियों की लिस्ट बन सकती है,तो रतलाम तो जावरा से कहीं बडा है और रतलाम के भू माफिया भी जावरा वालों के मुकाबले ज्यादा बडे कलाकार है। वैसे जिला इंतजामियां की भीतरी जानकारी रखने वालों का कहना है कि रतलाम में भी तैयारियां जोरों पर है। जिला इंतजामियां के बडे साहब ने शनिवार को शहर भर में दौरा करके इसके संकेत भी दे दिए है। ये तय है कि आने वाले दिनों में शहर में बडी कार्रवाईयां देखने को मिलेगी।
खतरों वाले खुले गोदाम…..
तीन दिन पहले शहर के मोहन नगर में बने एक खुले गोदाम में जबर्दस्त आगजनी हुई। शहर के लोग किस्मतवाले थे कि पैट्रोलपंप के बिलकुल नजदीक बने इस गोदाम की आग वहां तक नहीं पंहुची वरना शहर को किसी मुसीबत से गुजरना पडता,कोई नहीं कह सकता? इस हादसे के बाद अब नगर निगम वालों ने शहर में और जगहों पर बने हुए खतरों वाले खुले गोदामों पर कार्रवाई करने का इरादा जाहिर किया है। शहर की कई घनी आबादियों में ऐसे खतरे वाले खुले गोदाम बेहिचक चलाए जा रहे है। दोबत्ती चौराहे पर एक टेण्ट संचालक ने अपनी दुकान के पीछे एक सार्वजनिक जमीन पर अतिक्रमण करके अपना खुला गोदाम बनाया हुआ है। चारों तरफ घनी आबादी से घिरी इस जमीन पर टेण्ट हाउस वाले ने लकडी की बल्लियां,प्लास्टिक की कुर्सियां और ना जाने कितनी ज्वलनशील वस्तुओं का भण्डारण करके रखा है। यहां किसी दुर्घटना से निपटने का कोई साधन भी नहीं है। इसी तरह बैैंक कालोनी जैसी पाश कालोनी में भी खुला गोदाम बना हुआ है। ये तो छोटी सी बानगी है। शहर में इस तरह के ना जाने कितने खतरे मौजूद है। जिला इंतजामिया और नगर निगम वाले गंभीरता से इस पर कार्रवाई करेंगे तो निश्चित ही शहर खतरे से बच सकेगा।
ये कैसा रावण दहन
कोरोना के नाम पर शहर में इस बार केवल पोलो ग्र्राउड पर रावण दहन किया गया। रावण दहन देखने की उम्मीद से वहां पंहुचे लोगों की पलकें भी झपकी थी कि रावण स्वाहा हो गया। वैसे तो हर बार ये सवाल उठता रहा है कि रावण जलाने के नाम पर निगम वाले कितनी उपरी कमाई करते है। पिछले सालों में ये जिम्मेदारी चुने हुए नेताओं पर रहा करती थी,लेकिन इस बार सबकुछ अफसरों के हाथ में है। ये शायद इसी का नतीजा था कि रावण पलक झपकते ही स्वाहा हो गया। हर बार की तरह कोई आतिशबाजी नहीं की गई। रावण की उचाई भी कम हुई और जलने का वक्त भी। अब इसमें किसके पल्ले कितना और क्या पडा ये तो निगम वालों को पता है लेकिन रावण दहन देखने के इच्छुक लोगों के पल्ले सिर्फ मायूसी पडी।