अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह : मुस्लिम मतों की मारामारी में फंसे विपक्षी दल,”ना माया मिलेगी ना राम”
-तुषार कोठारी
अयोध्या में श्री राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए भेजे गए निमंत्रण पत्रों ने जहां भाजपा की बल्ले बल्ले कर दी है,वहीं कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल मुस्लिम मतों की मारा-मारी में फंस कर उस कहावत को चरितार्थ कर रहे है जिसमें कहा जाता है “दुविधा में दोनो गए माया मिली ना राम”।
जब तक निमंत्रण पत्रों का वितरण शुरु नहीं हुआ था,कांग्रेस समेत विपक्षी नेताओं को लग रहा था कि भाजपा चूंकि उन्हे बुलाएगी ही नहीं,इसलिए वे इसी को मुद्दा बनाकर राजनीति साध लेंगे। टीवी चैनलों ने भी इस बात पर कई सारे डिबेट शो कर डाले कि किसे निमंत्रण मिलेगा और किसे नहीं। टीवी चैनलों पर होने वाली बहसों में विपक्षी प्रवक्ताओं ने निमंत्रण नहीं मिलने के कयास पर भाजपा की जोरदार खिंचाई भी की थी। इस पूरे परिदृश्य को देखकर विपक्षी नेताओं को अंदाजा था कि वे इस बात से राजनीतिक फायदा उठा ही लेंगे। लेकिन उन्हे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि विश्व हिन्दू परिषद और श्री रामजन्म भूमि न्यास आखिरकार उन्हे भी न्यौता भेज देंगे।
प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण जैसे ही विपक्षी नेताओं को मिला,उनकी सांसे अटक गई। उन्हे समझ में ही नहीं आया कि इस निमंत्रण पर वे क्या प्रतिक्रिया दें। निमंत्रण पत्र मिलने से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह कह रहे थे कि कांग्रेस के नेता अयोध्या जरुर जाएंगे,लेकिन निमंत्रण पत्र मिलने के बाद उनकी बोलती बन्द हो गई। कांग्रेस अभी इस दुविधा मे ही थी कि निमंत्रण का क्या करें,इसी बीच केरल की मुस्लिम लीग का बयान आ गया कि कांग्रेस को इस समारोह में शामिल नहीं होना चाहिए।
कांग्रेस के सामने इस समय इतिहास में अब तक का सबसे बडा संकट मुंह बाएं खडा है। गांधी परिवार का राजनीतिक अस्तित्व खतरे में है। कांग्रेस परिवार की बपौती मानी जाने वाली अमेठी सीट कांग्रेस को धोखा देकर भाजपा की दामन थाम चुकी है। राहूल गांधी को अपनी सीट बचाने के लिए सीधे केरल जाना पडा और मुस्लिम लीग के आशिर्वाद से ही वे वायनाड के सांसद बन पाए। मुस्लिम लीग के इसी एहसान तले दबे राहूल गांधी मुस्लिम लीग को सेक्यूलर पार्टी बताने लगे है। कांग्रेस परिवार की दूसरी बपौती रायबरेली है,जहां से श्रीमती सोनिया गांघी आती है।
2024 के लोकसभा चुनाव में यदि श्रीमती सोनिया गांधी स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लडीं,तो उनके स्थान पर श्रीमती प्रियंका वाड्रा का चुनाव लडना तय है। कांग्रेस का सबसे बडा संकट अब यही है कि प्रियंका को चुनाव कहां से लडवाएं। अमेठी जैसा सुरक्षित गढ ढह चुका है। अब यही खतरा रायबरेली पर मण्डरा रहा है। अगर प्रियंका या सोनिया को लोकसभा में पंहुचाना है,तो कांग्रेस को फिर से केरल में मुस्लिम लीग की मदद लेना होगी। गांधी परिवार का सबसे बडा संकट भी यही है कि अगर परिवार के लोग लोकसभा में नहीं पहुच पाए तो कांग्रेस पार्टी उनके हाथ से निकल जाएगी।
गांधी परिवार के लोगों का लोकसभा में पंहुचना बेहद जरुरी है और यही वजह है कि मुस्लिम लीग की इच्छा अब कांग्रेस के लिए आदेश के समान हो गई है। जैसे ही मुस्लिम लीग ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस नेताओं के जाने को लेकर सवाल उठाए,कांग्र्रेस की दुविधा समाप्त हो गई और कांग्रेस ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाने से इंकार कर दिया। लेकिन कांग्रेस की हालत अब “इधर कुंआ उधर खाई” जैसी हो चुकी है।
मुस्लिम लीग के दबाव में कांग्रेस ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार तो कर दिया,लेकिन कांग्रेस के कई नेता जानते है कि यह बहिष्कार कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित होने वाला है। लेकिन गांधी परिवार के राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए पार्टी के अस्तित्व को दांव पर लगाया जा रहा है। कमोबेश यही हालत समाजवादी पार्टी,तृणमूल कांग्रेस ,जनतादल(यू) और अन्य गैर भाजपाई विपक्षी दलों की हो रही है।
लगभग सभी पार्टियों को लगता है कि मुस्लिम वोट बैंक ही उनका अस्तित्व बचाने की एकमात्र रामबाण दवा है। उन्हे यह भी लगता है कि अगर वे प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हो गए तो उनके अस्तित्व का एकमात्र आधार मुस्लिम वोट उनसे दूर हो जाएगा। ऐसे में वे कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहते। मुस्लिम वोट बचाने के लिए वे कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हो चुके है। लेकिन घबराहट के इस माहौल में ये विपक्षी दल इस बात का आकलन नहीं कर पा रहे है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार करके वे हिन्दू वोट का कितना नुकसान कर लेेंगे।
भाजपा के लिए विपक्षी नेताओं को निमंत्रण भेजा जाना और उनके द्वारा बहिष्कार कर दिया जाना राजनैतिक रुप से वरदान बन गया है। अब भाजपा बडी आसानी से यह प्रमाणित कर सकती है कि कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल पूर्णत: सनातन और हिन्दू विरोधी तो है ही भागवान राम के भी विरोधी है। देश के करोडों लोग राम चरितमानस का पाठ करते है,जिसमें कहा गया है कि “जाके प्रिय ना राम वैदेही,तजिए ताहि कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही”। ऐसी स्थिति में देश का हिन्दू मतदाता राम के विरोधियों को त्यागने में क्षण भर का विलम्ब नहीं करेगा।
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल राम मन्दिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार मुस्लिम वोटों के छिटकने के डर से कर रहे है,लेकिन इसके विपरित वास्तविकता यह है कि देश के मुस्लिम समाज के एक बडे हिस्से को अयोध्या में बन रहे श्री राम जन्म भूमि मन्दिर से कोई दिक्कत नहीं है। सामान्य मुस्लिम मतावलम्बी का मानना है कि अयोध्या में मन्दिर बन जाने से उनके हितों पर कोई प्रभाव नहीं पडने वाला। असदुद्दीन औवेसी जैसे इक्के दुक्के नेता भले ही इस घटना को इस्लाम के लिए खतरा बताने की कोशिश कर रहे है,लेकिन अधिकांश मुसलमानों को इससे कोई फर्क नहीं पड रहा है। हल ही में किये गए एक सर्वे में भी यही तथ्य सामने आया है कि देश के अधिकांश मुस्लिम राम मंदिर के बनने से खुश है।
इसके विपरित देश के हिन्दू समाज में राम मन्दिर को लेकर जो अभूतपर्व उत्साह का वातावरण बना है,उसके चलते राम मन्दिर का विरोध करने वाले नेताओं के प्रति भी उसी मात्रा में उनकी नाराजगी पनप रही है। ऐसे में कोई बडी बात नहीं कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार करने वाले नेताओं के जातिगत वोट भी उनसे दूर हो जाएं।
कुल मिलाकर मुस्लिम मतों की मारामारी में तमाम विपक्षी दल इसी अवस्था में पंहुच गए है ,जहां “दुविधा में दोनो गए माया मिली ना राम वाली” कहावत चरितार्थ हो रही है। प्राण प्रतिष्ठा के बहिष्कार से मुस्लिम वोटों का कितना फायदा होगा और हिन्दू वोटों का कितना नुकसान होगा,इसकी सटीक जानकारी लोकसभा चुनाव के नतीजों में मिलेगी,लेकिन ये तय है कि राममय हो चुके देश के बहुसंख्यकों में राम विरोधियों के प्रति गुस्से की लहर चुनाव में जोरदार असर दिखाएगी।