विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत के बाद राष्ट्रपति चुनाव के लिए बीजेपी ने बनाई यह खास रणनीति
नई दिल्ली,22 मार्च(इ खबरटुडे)। गोवा और उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकारें बना ली हैं. यहां सरकारों के मुखिया जो बने हैं वह सांसद हैं. गोवा में मनोहर पर्रिकर मुख्यमंत्री बने हैं और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने हैं. साथ ही केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बने हैं. खास बात यह है कि तीनों राज्यों में नई जिम्मेदारियां उठा रहे हैं और क्योंकि तीनों संसद के सदस्य है तो इन तीनों सांसदों को संसद सदस्यता छोड़नी होगी.
पद की गरिमा और महत्ता को समझते हुए बीजेपी ने नई रणनीति बनाई
लेकिन छह महीने के भीतर राष्ट्रपति चुनाव होना है. मौजूदा राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल इसी साल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है, और राष्ट्रपति चुनाव के लिए अधिसूचना जून में किसी भी वक्त जारी की जा सकती है. ऐसे में राष्ट्रपति पद की गरिमा और महत्ता को समझते हुए बीजेपी ने नई रणनीति बनाई है. माना जा रहा है कि जुलाई में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव से पहले अब ये सांसद संसद सदस्यता नहीं छोड़ेंगे.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ और राज्य के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य गोरखपुर और फुलपुर से लोकसभा के संसद सदस्य हैं जबकि गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर यूपी से ही राज्यसभा के सदस्य हैं. जबकि, उत्तर प्रदेश के दूसरे उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा पहले ही लखनऊ के मेयर पद से अपना इस्तीफा दे चुके हैं.
नियमानुसार इन तीनों बीजेपी नेताओं को पद पर नियुक्ति के छह महीने के भीतर चुनाव जीतना होगा. इन लोगों का यह छह महीने सितंबर तक पूरा होता है जबकि राष्ट्रपति का चुनाव जुलाई में होना तय किया गया है. बीजेपी नेताओं का कहना है कि वह अपने इन सांसदों को राष्ट्रपति चुनाव तक इस्तीफा नहीं देने देगी. इसके अलावा बीजेपी कुछ और बातों पर भी ध्यान दे रही है ताकि जो थोड़ी बहुत कमी है पड़ रही है उसे भी पूरा कर लिया जाए.
प्रचंड जीत के बाद बीजेपी अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनाना चाह रही है
बीजेपी नेताओं का कहना है कि अब इन चुनावों के बाद पार्टी ने अपना पूरा ध्यान राष्ट्रपति चुनाव पर केंद्रित किया है. कहा जा रहा है कि बीजेपी हालिया विधानसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनाना चाह रही है
जानकारी के लिए बता दें कि आदित्यनाथ योगी और केशव प्रसाद मौर्य के पास दो विकल्प हैं. अगर वे चाहें तो विधानसभा का उप-चुनाव लड़ सकते हैं या फिर विधान परिषद में भी चुने जा सकते हैं. योगी आदित्यनाथ से पहले अखिलेश यादव और मायावती दोनों ही विधान परिषद के सदस्यता के साथ मुख्यमंत्री पद पर रहे थे. यानि यह साफ है कि राज्य के इन दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों ने विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा था.
उल्लेखनीय है कि मंगलवार को संसद में बतौर सांसद योगी आदित्यनाथ अपना अंतिम भाषण दिया. वैसे राज्य के कई विधायक योगी आदित्यनाथ के लिए अपनी सीट छोड़ने को तैयार हैं ताकि वह उस सीट से विधानसभा चुनाव लड़ सकें.
हमारे देश में राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के ज़रिये होता है, और राष्ट्रपति निर्वाचक मंडल में निर्वाचित सांसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्य होते हैं. इस निर्वाचक मंडल में 4,120 विधायकों और 776 निर्वाचित सांसदों सहित कुल 4,896 मतदाता होते हैं. जहां लोकसभा अध्यक्ष निर्वाचित सदस्य होने के नाते मतदान कर सकते हैं, वहीं लोकसभा में मनोनीत दो एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्य और राज्यसभा में 12 मनोनीत सदस्य मतदान नहीं कर सकते.
राज्यसभा में बीजेपी के फिलहाल 56 सदस्य हैं, जबकि कांग्रेस 59 सदस्यों के साथ यहां सबसे बड़ी पार्टी है. शनिवार की जीत के बाद अगले साल बीजेपी राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन जाएगी और एनडीए के कुल सदस्यों की संख्या 100 के करीब हो जाएगी. हालांकि, तब भी वह संसद के उच्च सदन में बहुमत से दूर ही रहेगी.
उधर, अब उत्तर प्रदेश की बीएसपी अपनी नेता मायावती को दोबारा राज्यसभा में भेजने में सक्षम नहीं रही है. बसपा इस बार 403-सदस्यीय विधानसभा में मात्र 19 सीटें जीत सकी है, जिससे वह अपने दम पर मायावती को दोबारा राज्यसभा में भेजने की स्थिति में नहीं रह गई है. मायावती का राज्यसभा में मौजूदा कार्यकाल अगले साल समाप्त हो रहा है