चुनावी चख-चख -15
अब तेरह दिनों की तकरार
पन्द्रहवां दिन-25 नवंबर
शहर के सौ में से 69 लोग अपने बायें हाथ की तर्जनी पर काले दाग लगवा चुके है। इसी के साथ अब तेरह दिनों तक तरह तरह की तकरार करने का सिलसिला शुरु हो गया है। बीती रात सारे के सारे दावेदार गड्डियां लेकर अलग अलग इलाकों में घुमते रहे। पूरी रात कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के मजे की रात थी। गड्डियां बांटने में पहला नम्बर तो निस्संदेह रुप से भैयाजी का ही रहा,लेकिन उनके यहां पनपी कमीशनखोरी ने गड्डियों की मोटाई को बेहद कम कर दिया। इसका सीधा असर आज सुबह तमाम इलाको में नजर आता रहा। पिछली बार झुमरु दादा ने गड्डियां बेहद कम बांटी थी,लेकिन इस बार झुमरु दादा ने गड्डियां बांटने में कोई कोताही नहीं की। झुमरु को यह महसूस हो रहा था कि इस बार वोटर राजी नहीं है,इसलिए आखरी वक्त में गड्डियों की मदद से माहौल को बदलने की नाकाम कोशिश की गई। गड्डियां पंजे वालों ने भी बांटी। शहर के वोटर कुछ अलग किस्म के है। वे अपनी इच्छा से वोट डालते है। गड्डियों का असर बूथ पर बैठने वालों पर दिखाई देता है। वोटर इससे प्रभावित कम ही होते है। सारे दिन की मशक्कत के बाद जो सामने आया वो यह है कि वोटरों ने झुमरु दादा की सभाएं तो बहुत सुनी लेकिन वोट देने में जबर्दस्त कंजूसी की। अब सूरते हाल ये है कि झुमरु को तीसरे नम्बर पर देखा जा रहा है और बाकी दोनो के बीच में कडा मुकाबला है। अगले तेरह दिनों तक शहर इन्ही तीन लोगों की बातों में व्यस्त रहेगा। तीनों दावेदारों की नींद हराम रहेगी। आठ दिसम्बर को तमाम तकरारों पर लगाम लगेगी।
किसका क्या होगा?
आखरी फैसले की बातोंमें ये बातें भी शामिल है कि आगे छुटभेय्यों का हश्र क्या होगा? अगर कहीं भैयाजी की किश्ती डूब गई तो भैयाजी के आजू बाजू वाले छुटभैये क्या करेंगे और कहां जाएंगे। पंजा छाप वाली बहन जी के पास तो खैर खोने के लिए कुछ भी नहीं है। वह जितने भी वोट लाएंगी वो पिछली बार वाले साढे चार हजारी से ज्यादा ही होंगे। इसलिए पंजा छाप पार्टी को मजबूत करने का सेहरा तो उनके सर बन्ध ही जाएगा। और अगर कहीं उनका राजयोग प्रबल हो गया,तो पंजा छाप पार्टी के तमाम नेताओं का काम ही तमाम हो जाएगा।
जितने की जीत उतनी ही हार
इधर झुमरु दादा का हाल खराब हो रहा है। कभी पूरे सूबे में बासठ हजारी होने से सम्मानित झुमरु दादा ने इकतीस हजार की जीत हासिल की थी। इस बार इनकी हार भी इतने ही या इससे भी ज्यादा की हो सकती है। बहरहाल ये भी कमाल की बात होगी कि जितने की जीत उतने की ही हार।