December 24, 2024

Raag Ratlami Work Culture : रतलाम का एक-एक किलोमीटर दिल्ली वालों के हजार किलोमीटर पर भारी,वंहा वक्त से पहले पूरा हो जाता है काम,यंहा वक्त का कोई ठिकाना नहीं

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-तुषार कोठारी

रतलाम। दिल्ली वाले मुंबई से नई दिल्ली तक साढे बारह सौ किलोमीटर लम्बाई वाला आठ लेन का रोड बनाते है,तो तय समय से एक डेढ साल पहले ही रोड पूरा होने आ जाता है और तय समय से पहले ही बना दिया जाता है। लेकिन हम रतलाम वाले है। हमे दिल्ली वालों से कोई लेना देना नहीं। दिल्ली वाले चाहे दिल्ली से मुंबई तक एटलेन रोड तय वक्त में बना लें हम एक मोहल्ले की एक सडक बनाने का वक्त भी पहले से तय नहीं करते। महीनों गुजर जाते है,लेकिन काम पूरा नहीं होता। हमारा एक किलोमीटर दिल्ली वालों के एक हजार किलोमीटर पर भारी पडता है।

ये रतलाम का असर है। रतलाम को महानगर बनाना है,इसलिए सड़कें फोरलेन करना जरुरी है। शहर की सड़कों को फोरलेन में तब्दील करने पर लाखों करोडों खर्च किए जा रहे है। वक्त का क्या है,वो तो चलता रहता है। वक्त का काम ही चलते रहना है,लेकिन रतलाम वालों को इससे कोई फर्क नहीं पडता। यहां काम पूरा होने से ज्यादा जरुरी है,काम का चालू हो जाना। काम के चालू हो जाने को ही सबसे बडी उपलब्धि समझा जाता है।

यही वजह है कि चाहे चौमुखीपुल वाली रोड हो या शास्त्री नगर का मेनरोड। काम चालू है। इन सड़कों को फोरलेन में तब्दील करने का काम पिछले कई महीनों से जारी है। ये कोई नहीं जानता कि किस दिन ये काम पूरा होगा। सड़कों के चौडीकरण के काम से मुसीबतें झेलते लोग भी समझदार है। उन्हे पता है कि आज नहीं तो कल सड़क चौडी होगी। और जब भी सड़क चौडी हो जाएगी,सुविधा उन्ही को मिलेगी। इसीलिए वे बडे धैर्य से धीमी गति से चलते काम को देखते है और इन्तजार करते रहते है कि कब काम पूरा होगा।

दिल्ली वाले कोई गडकरी साहब है। सड़कें बनाने का काम उन्ही के जिम्मे है। वो भी फूल छाप पार्टी के ही है। वो देशभर में बडी बडी सड़कें बना रहे है। उनका नियम है कि जिस दिन सड़क का काम शुरु होता है,उसी दिन काम खत्म करने की तारीख भी तय हो जाती है। काम शुरु होता है,तो इतनी तेज गति से चलता है कि तय तारीख से भी काफी पहले ही काम पूरा कर लिया जाता है। पता नहीं उन्हे किस बात की जल्दी पडी रहती है। उन्हे रतलाम में आकर देखना चाहिए कि काम कैसे किया जाता है। आहिस्ता आहिस्ता,नफासत से।

यहां रतलाम में काम शुरु करते वक्त इस बात की बिलकुल चिंता नहीं की जाती कि यह पूरा कब होगा। सड़कें खोद दी जाती है। लोगों का आना जाना बन्द कर दिया जाता है। उस सड़क के किनारे रहने वाले भी अपने वाहन निकाल नहीं पाते। यहां के ठेकेदार दिल्ली वालों जैसे नहीं है कि सरकार की बात मान ले। वे अपने मन की करते है और अपने हिसाब से काम चलाते है।

दिल्ली से मुबई के बीच बन रही सड़क की लम्बाई साढे बारह सौ किमी है। यहां शास्त्री नगर मेन रोड की लम्बाई एक किमी से भी कम है। दिल्ली मुंबई वाली सड़क एटलेन है। शास्त्री नगर वाली सड़क फोरलेन है। दिल्ली मुबंई की सड़क के बीच में सैकडों नहीं हजारों पुल पुलियाएं है,शास्त्री नगर वाली सड़क पर नाले की एक पुलिया है।

लेकिन रतलाम रतलाम है। यहां का वर्क कल्चर अलग है। हमारे यहां सबकुछ बडे आराम से होता है। अगर अगर जल्दी जल्दी सबकुछ हो गया और लोगों को तकलीफें ना झेलना पडी,तो उन्हे पता कैसे चलेगा कि विकास कैसे होता है? काम चलते रहना चाहिए। चलते हुए दिखते रहना चाहिए। यही वजह है कि सुभाष नगर का रेलवे ओवर ब्रिज हो,या सागोद रोड का रेलवे ब्रिज,चौमुखीपुल की सड़क हो या शास्त्री नगर की सड़क। हर कहीं काम होता हुआ दिख रहा है। यही असली विकास है। अगर ये पूरे हो जाएंगे तो विकास होता हुआ कैसे नजर आएगा? इसीलिए रतलाम का एक एक किलोमीटर दिल्ली वालों के हजार किलोमीटर पर भारी है।

गुम हो गई एफआईआर

कुछ हफ्तों पहले तक जमीनखोरो पर एफआईआर किए जाने का बडा शोर था। अवैध कालोनियों को वैध करने के मामले में रतलाम सबसे आगे चल रहा था। अवैध कालोनियों को वैध करने की जरुरी शर्त ये रखी गई थी कि जिन जमीनखोरो ने अवैध कालोनियां बनाई है,उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी। नगर निगम वालों ने डेढ सौ जमीनखोरो की लिस्ट भी बना ली थी। इसका भी बहुत ढिंढोरा पीटा गया था कि डेढ सौ की लिस्ट बन गई है। फिर ये लिस्ट वर्दी वालों को भेज दी गई। वर्दी वालों ने पहले तो साल के आखरी वक्त का बहाना बनाकर मामले को टाल दिया फिर जब नया साल आ गया,तो उन्होने गेंद फिर से नगर निगम के पाले में डाल दी। वर्दी वालों ने कहा कि नगर निगम वालों ने लिस्ट तो दे दी,दस्तावेज मुहैया नहीं कराए है। अब बात दस्तावेजों पर अटकी है। नए साल का पहला महीना भी गुजरने वाला है। गेंद फिलहाल नगर निगम वालों के पाले में पडी है। जब वो वर्दी वालों को दस्तावेज मुहैया कराएंगे तब बात आगे बढेगी। कुल मिलाकर एफआईआर फिहलाल तो गुम सी हो गई है। पता नहीं होगी भी या नहीं।

घटे काया बढे रोग………..

पुरानी मालवी कहावत है देखा देखी लिया जोग-घटे काया बढे रोग। पंजा पार्टी के साथ भी यही कुछ हो रहा है। पंजा पार्टी वालों ने देखा कि फूल छाप वालों के यहां संगठन मंत्री नामक जीव होता है,जो जी जान से काम करता है और इसी से फूल छाप वालों को लगातार सफलता मिलती है। पंजा पार्टी ने फूल छाप की देखा देखी अपने यहां भी संगठन मंत्री नियुक्त करने की ठान ली। धडाधड संगठन मंत्री बना दिए गए। हर विधानसभा के लिए अलग संगठन मंत्री बना दिया गया। लेकिन पंजा पार्टी को इससे कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा है। नतीजा वही ढाक के तीन पात। पहले से मौजूद ढेर सारे पदों में एक पद और बढ गया। संगठन मंत्री अपनी नियुक्तियों के लिए नेताओं का आभार व्यक्त करते फिर रहे है। दूसरी तरफ फूल छाप वाले पंजा पार्टी के संगठन मंत्रियों को देख देख कर अपनी हंसी नहीं रोक पा रहे है।

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