बाबा साहेब के काम को आगे बढा रहा है संघ-श्री अभ्यंकर
राष्ट्रीय दलित महासंघ द्वारा डॉ.अम्बेडकर जन्मोत्सव का आयोजन
रतलाम,18 अप्रैल(इ खबरटुडे)। परमपूज्य बाबा साहेब अम्बेडकर गौतम बुध्द,महावीर और गुरु नानक की परंपरा के महापुरुष थे। उन्होने सदैव राष्ट्रीय दृष्टिकोण और सामाजिक समरसता का भाव रखकर दलितों को सशक्त बनाने का कार्य किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उन्ही के कार्य को आगे बढा रहा है। उक्त उद्गार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मालवा प्रान्त के प्रान्त प्रचारक पराग अभ्यंकर ने राष्ट्रीय दलित महासभा द्वारा डॉ.अम्बेडकर सभागृह में शनिवार शाम को आयोजित डॉ.अम्बेडकर जन्मोत्सव समारोह में मुख्य वक्ता के रुप में व्यक्त किए। भारत रत्न बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के व्यक्तित्व और कृतित्व को देश के विकास के लिए अतुलनीय योगदान निरुपित करते हुए श्री अभ्यंकर ने कई नए तथ्य उद्घाटित किए।
श्री अभ्यंकर ने कहा कि हजारों वर्षों तक विदेशी आक्रान्ताओं के आक्रमणों को झेलते झेलते और परतंत्रता के कारण भारतीय समाज में छुआछूत जैसी अमानवीय कुरीति आ गई। गुलामी के कारण हमारा समाज यही भूल गया कि हमारा वास्तविक धर्म क्या है और हमारी मान्यताएं क्या है। विश्व बंधुत्व और प्राणीमात्र में ईश्वर का अंश जैसे उच्चादर्शों वाले इस देश में छुआछूत जैसी अमानवीय प्रथाएं प्रारंभ हो गई। देश की इन विषम परिस्थितियों में भी सदैव रामानुजाचार्य,रामानन्दाचार्य,संत रविदास,गौतम बुध्द महावीर,गुरु नानक जैसे महापुरुषों का इस धरती पर आगमन होता रहा,जो निरन्तर समाज को उसकी कुरीतियों से दूर करने के लिए संघर्ष करते रहे और समाज को समरसता के मार्ग पर ले जाने के उपदेश देते रहे। जिस समय देश में छुआछूत की बुराई पूरे जोरों पर थी,उसी समय मेवाड की महारानी मीरा बाई,संत रविदास को अपना गुरु बताते हुए गौरवान्वित भी होती थी। देश में जब जब बुराईयां पनपी महापुरुषों का आविर्भाव होता रहा। ढाई हजार वर्ष पूर्व गौतम बुध्द से लगाकर संत कबीर,संत रविदास, जैसे महापुरुषों की यह परंपरा निरन्तर चालू रही है। भारत रत्न डॉ.भीमराव अम्बेडकर भी इसी श्रेणी के महापुरुष है। उन्होने जीवनभर अत्याचार और अन्याय सहा और अन्याय व अत्याचार के विरुध्द संघर्ष करते रहे। इसके बावजूद उनका हृदय इतना विशाल था कि कथित सवर्ण समाज के प्रति उनके मन में कभी भी घृणा का भाव नहीं रहा। उनके हर आन्दोलन में कथित तौर पर सवर्ण वर्ण के कुछ व्यक्तियों का सहयोग भी उन्हे मिलता रहा। मन्दिरों में दलितों के प्रवेश को लेकर उन्होने आन्दोलन किया। उनकी पत्नी रमाबाई की बडी इच्छा थी कि वे नासिक में कालाराम मन्दिर के दर्शन कर सके। लेकिन आन्दोलन के बावजूद बाबा साहेब उनकी यह इच्छा पूरी नहीं कर पाए। तभी उनका मन टूटा। उन्होने घोषणा की कि वे हिन्दू पैदा तो हुए है,लेकिन हिन्दू के रुप में मरेंगे नहीं। उनकी इस घोषणा से देशभर में जैसे भूचाल आ गया। इसाई और मुस्लिम समाज के लोग अरबों की थैलियां लेकर उन्हे अपने धर्म में लाने के प्रयास करते रहे। लेकिन बाबा साहब ने कहा कि उनके धर्म परिवर्तन से हिन्दू समाज का कम से कम नुकसान हो,वे ऐसा कार्य करेंगे। धर्म परिवर्तन की घोषणा के बीस वर्ष बाद उन्होने गहन विचार विमर्श के बाद बौध्द धर्म स्वीकार किया। उनका कहना था कि बौध्द धर्म की जडें भारत में है। वे कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के विरोधी थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वे प्रशंसक थे। वे संघ के पूना शिविर में आए थे। उन्होने संघ में छुआछूत नहीं होने के आदर्श को प्रत्यक्ष देखा। वे तब आश्चर्यचकित रह गए जब संघ के शिविर में उन्होने सभी स्वयंसेवकों को एक पंगत में भोजन करते देखा।
श्री अभ्यंकर ने अपने चालीस मिनट के भाषण में डॉ अम्बेडकर के जीवन के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला। डॉ अम्बेडकर द्वारा लिखित पुस्तकों के उध्दरण भी उन्होने प्रस्तुत किए। उन्होने कहा कि बाबा साहेब का प्रत्येक कार्य राष्ट्रीय दृष्टिकोण वाला और समरसता का होता था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इसी मार्ग पर चल रहा है। संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी ने न ङ्क्षहन्दू पतितो भवेत का सिध्दान्त प्रकाशित किया और तृतीय सरसंघचालक देवरस जी ने कहा कि यदि छुआछूत पाप नहीं तो कुछ भी पाप नहीं। संघ के प्रात: स्मरण में भी प्रतिदिन बाबा साहेब अम्बेडकर का पुण्यस्मरण किया जाता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय दलित महासभा के अध्यक्ष प्रदीप करौसिया ने की,जबकि डॉ.डीसी बोरीवाल विशेष अतिथि के रुप में मौजूद थे। कार्यक्रम में म.प्र. वित्त आयोग के चैयरमेन हिम्मत कोठारी,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माधव काकानी,वीरेन्द्र वाफगांवकर,डॉ रत्नदीप निगम समेत दलित महासभा के अनेक पदाधिकारी व सदस्य उपस्थित थे। आभार प्रदर्शन भाजपा पार्षद ताराचंद पंचोनिया ने किया।