न्यायपालिका की गडबडियों को सामने लाने के लिए मीडीया में मुखर हुए एडीजे,उच्चतम न्यायालय को भी की शिकायत
जबलपुर/भोपाल,19 फरवरी (इ खबरटुडे)। क्या उच्च न्यायालय के अधिकारी ही उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देश नहीं मानते है और क्या न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार पनपने लगा है? ऐसे ज्वलन्त प्रश्न तब उठते है,जब न्यायपालिका का ही कोई अंग न्यायपालिका पर उंगलियां उठाने लगता है। जबलपुर जिला न्यायालय के अधीन पदस्थ एक अतिरिक्त जिला जज ने उच्च न्यायालय में व्याप्त गडबडियों के खिलाफ अपना स्वर मुखर किया है। उच्चतम न्यायालय को शिकायत किए जाने के बाद उक्त एडीजे ने अपनी व्यथा कथा
इ खबर टुडे के माध्यम से मीडीया और जनता के सामने लाने का फैसला किया है।
यह सनसनीखेज मामला जबलपुर के सीहोरा में पदस्थ अतिरिक्त जिला जज आरके श्रीवास ने उठाया है। आरके श्रीवास द्वारा इ खबरटुडे को जारी लिखित बयान में कहा गया है कि प्रदेश में न्यायाधीशों के स्थानान्तरणों में उच्च न्यायालय द्वारा तैयार स्थानान्तरण नीति का खुला उल्लंघन किया जा रहा है। उच्च न्यायालय की स्थानान्तरण नीति 2015 के अनुसार किसी भी न्यायाधीश की पदस्थापना की अधिकतम अवधि तीन वर्ष की होगी,लेकिन प्रदेश में ऐसे कई न्यायाधीश है,जो चार या पांच वर्षों से एक ही स्थान पर पदस्थ है।
आरके श्रीवास ने अपने बयान में कहा है कि उन्होने 17 मार्च 2016 को माननीय न्यायाधिपति म.प्र. उच्च न्यायालय को एक पत्र लिखकर इस बारे में ध्यान आकृष्ट किया था कि उच्च न्यायालय द्वारा 12 जनवरी 2012 को बनाई गई स्थानान्तरण नीति और इसके बाद नवीन स्थानान्तरण नीति का खुला उल्लंघन किया जा रहा है। उच्च न्यायालय को पत्र लिखे जाने के बाद प्रदेश में अनेक स्थानान्तरित न्यायाधीशों के स्थानान्तरण स्थगित कर दिए गए। स्थानान्तरण के सम्बन्ध में कई न्यायाधीशों द्वारा प्रस्तुत अभ्यावेदनों में से मात्र 63 अभ्यावेदनों का निराकरण किया गया। इनमें से 24 अभ्यावेदन निरस्त किए गए। 4 जिला जजों के अभ्यावेदन स्वीकार किए गए। इसी तरह चार अन्य अभ्यावेदन स्वीकार कर उसी स्थान पर पदस्थापना करते हुए स्थानान्तरण आदेश निरस्त किए गए। 31 व्यवहार न्यायाधीश वर्ग -1 और वर्ग -2 के अभ्यावेदन स्वीकार कर उनके स्थान परिवर्तन किए गए।
एडीजे श्री श्रीवास ने इसके बाद 06 अप्रैल 2016 को उच्चतम न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधिपति को पत्र लिख कर न्याय की मांग की। उनके इस पत्र पर उच्चतम न्यायालय द्वारा तो कोई कार्यवाही नहीं की गई लेकिन उच्च न्यायालय म.प्र. द्वारा उन्हे अनुशासनहीनता के लिए कारण बताओ सूचना पत्र जारी कर दिया गया। श्री श्रीवास ने कहा है कि वे उच्च न्यायालय की प्रशासनिक समिति के सामने उपस्थित हुए और उन्होने अपने द्वारा उठाए गए मुद्दों को समिति के सामने भी रखा। उन्होने कभी अपने इन कार्यों के लिए क्षमायाचना नहीं की,लेकिन प्रशासनिक समिति की रिपोर्ट में यह दर्शाया गया कि उन्होने मौखिक रुप से क्षमायाचना कर ली है। उन्हे कडी चेतावनी भी दी गई।
श्री श्रीवास ने बताया कि 11 अप्रैल 2016 के बाद भी प्रदेश में 40 न्यायाधीशो के स्थानान्तरण किए गए है। सभी स्थानान्तरणों में स्थानान्तरण नीति का स्पष्ट उल्लंघन किया गया है। उन्होने बताया कि कई बार तो किसी न्यायाधीश का स्थानान्तरण आदेश वेबसाइट पर अपलोड किया जाता है और तीन चार दिन उसका स्थानान्तरण निरस्त भी कर दिया जाता है,लेकिन निरस्त वाला आदेश वेबसाईट पर अपलोड नहीं किया जाता। इन घटनाओं से स्पष्ट है कि न्यायाधीशों के स्थानान्तरणों में बडे पैमाने पर गडबडियां की जा रही है। उच्च न्यायालय के ध्यान में लाए जाने के बाद भी इन गडबडियों पर कोई रोक नहीं लगाई जा रही है।
उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन
अतिरिक्त जिला जज आरके श्रीवास ने उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देशों के उल्लंघन का मामला भी उठाया है। उन्होने अपने बयान में कहा है कि 3 अक्टूबर 2016 को जारी उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देश तथा 20 नवंबर 2014 को इसी परिप्रेक्ष्य में उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा जारी दिशा निर्देशों में स्पष्ट कहा गया है कि यदि अधीनस्थ न्यायपालिका का कोई व्यक्ति यदि शिकायत करना चाहता है तो वह विधिपूर्वक शपथपत्र देकर शिकायत कर सके। इन दिशा निर्देशों का आशय यह था कि शिकायतकर्ता को संरक्षण मिले और गुमनाम शिकायतों को हतोत्साहित किया जा सके। माननीय उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि इस तरह की शिकायतों का अनिवार्यत: संज्ञान लिया जाना चाहिए। एडीजे श्रीवास का कहना है कि उनकी शिकायत के सन्दर्भ में दिशा निर्देशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ तो कोई कार्यवाही नहीं की गई उल्टे शिकायतकर्ता एडीजे श्रीवास के लिए ही चेतावनी जारी कर दी गई।
गोपनीय चरित्रावाली के निर्देशों का भी उल्लंघन
एडीजे श्रीवास ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति श्री पीसी पंत की खण्डपीठ ने एक प्रकरण में आदेश पारित कर स्पष्ट किया है कि किसी भी न्यायिक अधिकारी की गोपनीय चरित्रावाली में अनावश्यक रुप से उसके विरुध्द प्रतिकूल टीप अंकित नहीं की जाना चाहिए। माननीय उच्चतम न्यायालय ने बार बार न्यायाधीशों के संरक्षण के लिए कहा है। इसके बावजूद न्यायाधीशों की गोपनीय चरित्रावली में प्रतिकूल टीप अंकित करने की प्रवृत्ति में सुधार नहीं आ रहा है। उत्कृष्ट कार्य करने के बावजूद उच्च न्यायालय के कुछ अधिकारियों द्वारा साशय प्रताडित करने के उद्देश्य से गोपनीय चरित्रावली में प्रतिकूल टीप अंकित की गई है। कई प्रकरणों में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा है कि न्यायाधीश की गोपनीय चरित्रावली में उसके विरुध्द की गई प्रतिकूल टिप्पणियों के तथ्यों की जानकारी आवश्यक रुप से दी जाना चाहिए। लेकिन उच्च न्यायालय के अधिकारी माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का ही खुला उल्लंघन कर रहे हैं।
त्यागपत्र देने को तैयार
एडीजे श्रीवास ने कहा है कि माननीय जिला जज जबलपुर द्वारा उन्हे बेवजह प्रताडित किया जा रहा है। कई बार निवेदन किए जाने के बावजूद उनके न्यायालय को आवश्यक संसाधन तक मुहैया नहीं कराए जा रहे है। न्यायालय खुले छ: माह का समय व्यतीत हो चुका है,परन्तु उनके न्यायालय में विधि की एक पुस्तक तक उपलब्ध नहीं कराई गई है। उनके न्यायालयीन कार्य हेतु उन्हे दिए गए कर्मचारी पूर्णत: निकम्मे और मक्कार है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को हटाए जाने का निवेदन किए जाने पर भी उन्हे हटाया नहीं जा रहा है।
एडीजे श्रीवास ने अपने बयान में कहा है कि वे जानते है कि न्यायपालिका में व्याप्त गडबडियों को सामने लाने का यह कदम आत्मघाती साबित हो सकता है। उनके इस कदम से उनके परिवार के सामने रोजी रोटी का संकट खडा हो सकता है। लेकिन अब न्याय पाने के लिए कोई और विकल्प शेष नहीं बचा है इसलिए उन्होने मीडीया में अपनी शिकायत उठाने का फैसला किया है। न्यायपालिका में कुछ लोग अपने आपको कानून से उपर समझने लगे है। न्यायाधीशों में भारी असंतोष है कि लेकिन सच को कहने का साहस नहीं है। एडीजे श्रीवास ने कहा है कि यदि उनके विरुध्द एक भी तथ्य प्रमाणित पाया गया तो वे तुरंत त्यागपत्र देने को तत्पर है,लेकिन उनके द्वारा की गई शिकायतों की निष्पक्ष जांच करवाई जाना चाहिए। उन्होने उच्चतम न्यायालय को पत्र लिखकर मांग की है कि जब तक उनके अभ्यावेदनों और शिकायतों का निराकरण नहीं हो जाता,तब तक मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधिपति का स्थानान्तरण नहीं किया जाना चाहिए,क्योंकि वे सभी तथ्यों से स्वयं भलिभान्ति परिचित है।