जरुरत क्या है दीवाली मनाने की…….?
-तुषार कोठारी
होली मत जलाईए,क्योंकि इससे धुंआ निकलता है जिससे पर्यावरण को खतरा है और प्रदूषण फैलता है। दीये जलाना भी प्रदूषण को बढाना ही है। दीपावली पर दीये जलाना तो बेहद पुरानी प्रथा है,आज के युग में दीये जलाने की क्या जरुरत है? बिना दीयों के भी खुशी मनाई जा सकती है। घरों पर रोशनी करना भी बिजली का अपव्यय है। वैसे भी उर्जा का अपव्यय गलत बात है। देश में डायबिटीज के रोगियों की तादाद बढती जा रही है। शक्कर का जितना कम उपयोग करेंगे उतना ही अच्छा होगा। दीवाली पर मिठाईयों की क्या जरुरत है? बिना मिठाईयों के भी खुशियां मनाई जा सकती है। दशहरे पर रावण के पुतले जलाना और पुतले में बम पटाखे भरना भी पर्यावरण के लिए घातक है। रावण दहन की आज के युग में क्या जरुरत है? वैसे भी राम रावण का युध्द हजारों लाखों साल पहले हुआ था। हुआ भी था या नहीं हुआ,कौन जानता है? ऐसे में रावण दहन की परम्परा को ढोते रहने की क्या जरुरत है? रावण दहन नहीं करेंगे,तो आपको ध्यान में आएगा कि दीवाली मनाना इतना भी जरुरी नहीं है। वैसे भी दीपावली मनाते क्यों है? कहते है कि रावण वध के पश्चात राम इसी दिन अयोध्या लौटे थे? बस इतनी सी तो बात है। इसके लिए पर्यावरण का नुकसान करना क्या ठीक है? फिर भी आपको दीपावली मनाना ही है,तो शौक से मनाईए,लेकिन दीये मत जलाईए,घरों पर अतिरिक्त रोशनी मत कीजिए,आतिशबाजी तो आप कर ही नहीं सकते। मिठाई भी मत बनाईए। पांच दिनों तक दीपावली मनाते है। यह तो पुरानी बात हो गई। धनतेरस और रुप चौदस जैसे त्यौहारों को अब छोडिए। दीपावली मनाना ही है,तो एक दिन की ही मनाईए।
वैसे आप अगर कोई त्यौहार ही मनाना चाहते है,तो 31 दिसम्बर को हैप्पी न्यू ईयर मनाईए। ये ग्लोबल त्यौहार है। इस दिन आप आतिशबाजी करेंगे,तो न तो प्रदूषण फैलेगा और ना ही पर्यावरण को कोई नुकसान पंहुचेगा। इसके अलावा त्यौहार ही मनाना है,तो बकरीद मनाईए। ये त्याग और बलिदान का यानी कुर्बानी का त्यौहार है। ये भी दुनियाभर में मनाया जाता है। इसके अलावा भी ढेर सारे अच्छे मार्डन त्यौहार है। जैसे वैलेन्टाईन डे,फ्रैन्डशिप डे । ऐसे ढेरों त्यौहार है। त्यौहार वो मनाईए,जिसे सारी दुनिया मनाती है। जो केवल भारत में हिन्दुओं द्वारा मनाए जाते है,वो भी कोई त्यौहार है। स्पेन में होने वाली बुल फाईटिंग तो साहस बढाने का खेल है,लेकिन जन्माष्टमी पर दही हाण्डी का खेल खतरनाक है। इसे बन्द कीजिए। कृष्ण माखन चुराते थे। चोरी अच्छी बात नहीं है। आप माखन चोरी की इस गलत बात को आज तक क्यो चलाना चाहते है? जल्ली कट्टू कोई बुल फाईटिंग जैसा खेल थोडी है। यह तो दक्षिण भारत के ग्रामीणों की परंपरा है। भारतीय परंपराएं तो वैसे भी पुरानी और छोड देने योग्य है। फिर जल्लीकट्टू तो ग्रामीण पंरपरा है। यह तो और भी गलत है। टीवी पर स्पेन की बुल फाईटिंग देखिए,इसका मजा लीजिए। लेकिन भारत में जल्लीकट्टू नहीं चलेगा।
नन्हे बच्चे अगर दीवाली पर फुलझडी और टिकलियां फोडने की मांग करें तो उन्हे समझाईएं कि ये सब बातें पुरातनपंथी है। आतिशबाजी हैप्पी न्यू ईयर के दिन ही प्रदूषण रहित होती है। इसके अलावा क्रिकेट मैच के दौरान,ओलम्पिक या एशियाड के शुभारंभ के मौके पर होने वाली आतिशबाजी भी प्रदूषण रहित होती है। दीपावली दशहरे पर होने वाली आतिशबाजी बेहद घातक है। होली पर रंग खेलना अच्छी बात नहीं है,लेकिन विदेशों में होने वाले कलर फेस्टिवल खेले जा सकते है। होली पर चेहरे पर रंग लगाना गलत बात है,लेकिन किसी बर्थ डे फेस्टिवल में बर्थ डे बाय या गर्ल के चेहरे पर केक का क्रीम पोतना अच्छी बात है।
देश के ये नए फार्मूले है। जल्दी ही इन पर चलना सीख जाईए वरना जीवन में दिक्कतें ही दिक्कतें आएगी। जला देने वाली गर्मी में काले चोगे पहन कर बहस करने वाले विद्वान जो तय कर दे,वैसे ही आपको जीना पडेगा,वरना आप जी नहीं सकते।