November 7, 2024

घर-घर पहंुचकर नए मेहमानों को दिया आशीर्वाद

श्री श्रीमाली ब्राह्मण समाज ने मनाया ढूंढोत्सव

रतलाम,7 मार्च (इ खबरटुडे)। नए मेहमानों का परंपरानुसार स्वागत करने तथा उन्हें सुखद भविष्य की शुभकामनाएं देने के लिए श्री श्रीमाली ब्राह्मण समाज ने ढूंढोत्सव का आयोजन किया। समाज जन समाज की धर्मशाला पर एकत्र हुए तथा यहां से उन परिवारों के घर पहुंचे जहां बीते वर्ष के दौरान किसी बच्चे का जन्म हुआ है या शुभविवाह संपन्न हुआ है। यहां पहुंचकर समाज के वरिष्ठ सदस्यों ने नवागत बच्चे को ढूंढा तथा उसे आशीर्वाद प्रदान किया।
समाज के अध्यक्ष प्रकाशचंद्र व्यास,सचिव संजय कुमार वोहरा, उपाध्यक्ष हर्ष दशोत्तर, कोषध्यक्ष कुलदीप त्रिवेदी,प्रबंधकारिणी सदस्य चंद्रकांत व्यास, स्मित ओझा, हर्ष व्यास, दिलीप दवे, राजीव व्यास, भूपेंद्र व्यास,अनंत वोहरा सहित समाज के वरिष्ठ सदस्य, महिला मंडल के पदाधिकारी एवं सदस्य तथा बड़ी   संख्या में समाजजनों ने उपस्थित हो कर नवजात बच्चों को आशीर्वाद दिया।

इन परिवारों को दी शुभकामनाएं

  समाज की ओर से प्रबंधकारिणी समिति एवं समाजजनों ने श्रीमती कांतादेवी विजय जी दशोत्तर, प्रवीण व्यास,चंद्रप्रकाश त्रिवेदी, महेंद्र दशोत्तर, आशीष दशोत्तर, उच्छब ओझा, मनोरमा व्यास, किरीट व्यास, शैलंेद्र व्यास, कमलकिशोर व्यास,दुष्यंत व्यास,कुबेर व्यास,अशोक व्यास,अखिलेश शर्मा, विशाल व्यास,सुभाष जोशी, श्रीपाल व्यास,योगेंद्र त्रिवेदी एवं राजेंद्र व्यास के निवास पर पहुंचकर बच्चों को ढूंढा तथा शुभ कार्य होने पर परिवारजनों को शुभकामनाएं दी।

   ढूंढ क्या है?

    श्रीमाली ब्राह्मण समाज में ढूंढ की परंपरा सनातन काल से चली आ रही है। समाज के सचिव संजय कुमार वोहरा ने बताया कि श्रीमाल नगर (वर्तमान भीनमाल,राजस्थान) में गौतम ऋषि विराजित थे। वहां ढंू़ढ़ा नाम की एक राक्षसी ने आतंक मचा रखा था। वह नवजात बच्चों को उठा ले जाती थी। समाजजन ऋषि के पास पहंुचे और उनसे सहायता का निवेदन किया। गौतम ऋषि ने   राक्षसी के आतंक से बच्चों को मुक्त कराया। तब से ही होली के अवसर पर  ढं़ूढ़ा राक्षसी के अंत के लिए समाज में गौतमी चक्रों को अग्नि में अर्पण करने तथा दूसरे दिन नन्हें बच्चों को ढूंढ़ने की परंपरा आरंभ हुई। इस दिन नन्हें बच्चों को विशिष्ट मंत्र के बीच हरे बांस के डंडे से मंगलकामना देते हुए उनके सुरक्षित भविष्य का आशीष दिया जाता है। मधुर स्वरों में समाजजन कहते हैं ‘‘ हरिया-हरिया-हरिया देवी, हरिया विच्चे तोर तुरंगी, जिमे वावे चम्पा डारी, जूं जूं चम्पो लेहरों लेवें, घर दरियाणी पूत जाणे, पहलो पूत सपूतो पूत, दूजो पूत घोड़ा डगाव्यणो,तीजो पूत समुद्री राज,चैथो पूत अतरो म्होटो,अतरो मोटो वेजो।‘‘ इस प्रकार बच्चों की यश,कीर्ति और समृद्धि की कामना की जाती है।

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