सिविक सेन्टर के भूखण्डो की अवैध रजिस्ट्रियां कराने के मामले में ठण्डी पडी नगर निगम की कार्यवाही,कुख्यात भू माफिया राजेन्द्र पितलिया के असर में घोटालेे को रफा दफा करने की कोशिशें
रतलाम,16 अप्रैल (इ खबरटुडे)। नगर निगम द्वारा राजीव गांधी सिविक सेन्टर के भूखण्डों की अवैध तरीके से कराई गई लीजडीड और इसके फौरन बाद कुख्यात भू माफिया राजेन्द्र पितलिया द्वारा लीज की शर्तो के विरुद्ध इन भूखण्डों की रजिस्ट्री कराए जाने के मामले में अब नगर निगम की कार्यवाही ठण्डे बस्ते में जाती दिख रही है। नगर निगम के नेताओं और अधिकारियों पर कुख्यात भू माफिया राजेन्द्र पितलिया के असर के चलते इस पूरे घोटाले को रफा दफा करने की कोशिशें भी शुरु हो चुकी है।
उल्लेखनीय है कि विगत 5 मार्च को इ खबरटुडे द्वारा नगर निगम के अधिकारियों की मिलीभगत से भू माफिया राजेन्द्र पितलिया द्वारा किए गए इस घोटाले को संज्ञान में लाए जाने के बाद नगर निगम परिषद के सम्मेलन में जोरदार हंगामा हुआ था। यहां तक कि तत्कालीन निगम आयुक्त और निगम उपायुक्त तक को इस मामले में प्रथम दृष्टया दोषी मानते हुए शासन द्वारा निलम्बित भी कर दिया गया था। लेकिन इसके बाद नगर निगम द्वारा इस मामले को एक तरह से भुला दिया गया है।
नगर निगम द्वारा लीजधारकों के पक्ष में कराई गई लीज डीड में साफ तौर पर यह शर्त थी कि लीज धारक इस भूखण्ड को किसी भी स्थिति में तीन वर्ष के पहले किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित नहीं कर सकते है। और यदि इस शर्त का उल्लंघन किया जाता है,तो निगम को अपने भूखण्डों का कब्जा पुन: प्राप्त करने का अधिकार रहेगा। इस साफ साफ शर्त के होने के बावजूद नगर निगम द्वारा भूखण्डों की लीज डीड कराए जाने के तुरंत बाद भू माफिया राजेन्द्र पितलिया ने इन भूखण्डों की रजिस्ट्रियां अपने रिश्तेदारों इत्यादि के नाम पर करवा ली थी।
इस तरह लीज डीड की शर्त का साफ साफ उल्लंघन किया गया। ऐसी स्थिति में नगर निगम को अपने भूखण्डों का कब्जा पुन: प्राप्त करने का अधिकार मिल गया है। लेकिन इसके बावजूद नगर निगम की ओर से ना तो कब्जा वापस लिया गया और ना ही लीज डीड और इसके बाद हुई रजिस्ट्रियों को शून्य कराने की दिशा में अब तक कोई कार्यवाही की गई है।
कानून की जानकारी रखने वालों के मुताबिक इस पूरे मामले में सबसे पहले नगर निगम को अपने भूखण्डों का कब्जा वापस लेना चाहिए था। इसके साथ ही इन भूखण्डों के नामान्तरण की कार्यवाही को निरस्त करना चाहिए था। और इसके साथ साथ लीज डीड और रजिस्ट्रियों को शून्य घोषित कराने के लिए न्यायालय में दावा प्रस्तुत करना चाहिए था। लेकिन नगर निगम ने इस सम्बन्ध में कोई ठोस कार्यवाही अब तक नहीं की है।
इसके विपरित नगर निगम के नेताओं ने निगम सम्मेलन में रजिस्ट्रियों को शून्य कराने का संकल्प पारित किया था। तकनीकी रुप से नगर निगम परिषद के इस संकल्प को तब तक कोई महत्व नहीं है,जब तक कि इसके लिए सक्षम न्यायालय में कार्यवाही नही की जाती।
नगर निगम की भीतरी जानकारी रखने वाले सूत्रों का कहना है कि नगर निगम के निर्वाचित नेताओं ने भू माफिया राजेन्द्र पितलिया पर दबाव बनाने के उद्देश्य से निगम परिषद के सम्मेलन में पहले तो यह मामला जोरशोर से उठाया और बाद में जब भू माफिया राजेन्द्र पितलिया ने अपने प्रयास प्रारंभ किए तो धीरे धीरे सारे नेता शांत हो गए। इसके अलावा राजेन्द्र पितलिया ने हाईकोर्ट से निगम परिषद के संकल्प पर भी स्थगनादेश प्राप्त कर लिया।
विधि की जानकारी रखने वालों का कहना है कि हाई कोर्ट का स्टे केवल निगम परिशद के संकल्प पर है। नगर निगम की अन्य किसी कार्यवाही पर हाईकोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई है। लेकिन भू माफिया राजेन्द्र पितलिया के एहसानों तले दबे अधिकारी हाई कोर्ट के आदेश की आड में कार्यवाही करने से बच रहे है। हाई कोर्ट के आदेश की आड में वे येन केन प्रकारेण भू माफिया पितलिया के घोटाले को दबाने के प्रयासों में लगे है। यही वजह है कि नगर निगम इस पूरे घोटाले की तरफ से आंखे मूंद कर बैठ गया है।