दोनों भूरियाओं में जंग शुरु , कौन बनेगा तुरुप का इक्का
रतलाम -झाबुआ सीट – चुनाव परिद्श्य
रतलाम, 1 अप्रैल (इ खबरटुडे / ऋत्युत मिश्र)। रतलाम – झाबुआ संसदीय सीट का घमासान प्रांरभ हो चुका हैं। भाजपा व कांग्रेस दोनो ही दल अपने अपने स्तर पर मेहनत कर रहे हैं। इस चुनाव में इस बार विशेष रूप सें युवाओं में उत्साह देखा जा रहां हैं। मोबाईल के इस युग में युवाजन प्रचार का मुख्य साधन सोशल मिडिया को मान रहे हेैं। क्यां आखिर सोशल मिडिया के जरीयें कोई चुनाव जीता जा सकता हैे। इस समय सोशल मिडिया पर प्रचार – प्रसार के लिये फोटो, चुटकुलों का सहारा लेकर पार्टी कार्यकर्ता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोंप कर रहें है।
दोनो ही पार्टियों ने प्रचार के लिऐ अपने – अपने आईटी सेल बनाकर सोशल मिडिया पर सक्रिय रहने वाले युवाओं को पदभार भी दे दिए हैं जो की अपनी – अपनी क्षमता के अनुरूप पार्टी का प्रचार – प्रसार कर रहे हैं। यहां देखना यह हैं की दोनों की दलों के द्वारा जो सोशल मिडिया पर प्रचार – प्रसार कि जा रहां हैं, वह चुनाव आयोग की नजऱ में है या नही। झाबुआ – रतलाम क्षेत्र में सर्वाधिक मतदाता आदिवासी हैं। उन आदिवासी मतदाताओं में से 1 प्रतिशत मतदाता भी सोशल मिडिया से जुड़े हुएं नही हैं। इस स्थिति में सोशल मिडिया का असर कहां तक होगा यह निर्णय तो परिणाम ही करेगें।
झाबुआ – रतलाम एक नजऱ में
विधानसभा चुनावों का गणित देखे तो भाजपा, कांग्रेस से कही आगे हैं किन्तु पूर्व मे एक बार ऐसा हो चुका हैं कि विधानसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस से आगे थी। किन्तु लोकसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। तीनो जिलो की आठो विधानसभा सीटो पर कुल मतदाता 16,15,614 हैं जिनमें से इस विधानसभा चुनाव में 11,19,799 मतदाताओं ने मतदान किया। जिसमें भाजपा को 4, 79305 मत मिले तो वही कांग्रेस को 3,80,380 मत प्राप्त हुए हैं। इसमें थादंला के भाजपा के बागी कलसिंह भाबर भाजपा में शामिल हो चुके हैं को मिले मतो को भी जोड़ दे तो यहां आंकडा 5,42,970 हो जाता हैं अर्थात भाजपा को आठो सीटो पर कांग्रेस की तुलना में 1,62,590 मत अधिक प्राप्त हुए हैं।
दिलीप सिंह भूरिया का पक्ष भारी
भाजपा ने अपने प्रत्याशी के रूप में दिलीपसिंह भूरिया को चुना हैं दिलीपसिंह भूरिया भी भाजपा प्रत्याशी के रूप में दो बार चुनाव हार चुके है। किन्तु इस बार इस लोकसभा सीट का परिद्श्य काफी बदला हुआ हैं। देश में मोदी की लहर, विधानसभा की आठों सीटो पर भाजपा की विजय के कारण स्थिति भाजपा के पक्ष में हैं। फिर दिलीपसिंह भूरिया कांग्रेस मे रहते हुए दो बार इस लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस नाते सभी सम्बधित जिलों में वह एक सुपरिचित चेहरा हैं। दुसरे रतलाम शहर के भाजपा के विजय उम्मीदवार चेतन कश्यप उनके विश्वनीय साथी हैं।
इस तरह उनके लिए पहचान एवं जनाधार का संकट नही है। किन्तु उनका एक कमजोर पक्ष भी हैैं। किसी समय भीलीस्तान एवं आदिवासी मुख्यमंत्री का नारा बुंलद करने वाले भूरिया को अपने उदारवादी चेहरे के साथ सभी को साथ लेकर चलने की दिशा मे और अधिक व्यापाक प्रयास करने होगेे।
कांतिलाल की हैं कईं कमजोर कडिय़ां
दुसरी और कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया भी कुछ कमजोर कड़ीयां हैं।
रतलाम के कांग्रेस के पराजित उम्मीदवार उनसे नाराज हैं प्रदेशाध्यक्ष के चलते शेष सीटो पर भी चुनावों के मध्य उनकी सक्रीयता नही रही। प्रदेश में उलझे रहने के कारण जनता से सम्पर्क टृट हुआ सा रहा। फिर प्रदेश में कांग्रेस की बूरी तरह सें पराजय से भी उनकी लोकप्रियता का ग्राफ गिरा हैं। प्रदेश में भाजपा का पुन: सत्तारूढ़ होना आठो विधानसभा में एक पर भी कांग्रेस का नही जितना और देश मे चल रही मोदी लहर से इस बार यह चुनाव उनके लिए सरल नही है। मंहगाई एंव भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता परिवर्तन की स्थिति में हैं। किन्तु आठो विधानसभा में भाजपा की विजय लोकसभा मे भी विजय की गारंटी नही हैं वर्ष 2003 में लोकसभा की आठ विधानसभा में से 6 सीटो पर भाजपा का परचम लहराया था। किन्तु चार माह बाद हुए लोकसभा चुनावो मे यही सीट कांग्रेस की झोली मे चली गई थी वैसे भी 1952 से लेकर 2008 तक के सभी लोकसभा चुनावों में यह सीट कांग्रेस के पास रही। केवल एक बार 1977 मे जनता पार्टी की लहर मे भागीरथ भंवर यहां से सांसद रह चुके हैं।
कांतिलाल के लिए जीवन-मरण का प्रश्र
कुछ भी हो लोकसभा का यह चुनाव कांतिलाल भूरिया के राजनैतिक जीवन के लिए जीवन मरण का प्रश्न हैं। अत: वे अपनी पूरी ताकत इस चुनाव में लगायेंगे किन्तु मोदी की लोकप्रियता की आंधी में वह कहा तक ठहर पाते हैं। इसका निर्णय तो 24 अप्रैल को जनता अपने वोटो से करेगी।