चुनावी चख-चख -14
डैमेज का असर चेहरों पर
चौदहवां दिन-24 नवंबर
चुनावी जंग अब आखरी दौर में आ चुकी है। किस्मत का फैसला होने में अब महज एक रात की दूरी है। चुनावी जंगे मैदान में मौजूद दावेदारों के लिए ये कत्ल या कयामत की रात हो सकती है। आखरी वक्त पर बिगडी बात सुधारने की आखरी कोशिशें की जा रही है। पिछले तेरह दिनों की कहानियों पर नजर डाली जाए तो बडे ही दिलचस्प वाकयात याद आते है। इन्ही पिछले तेरह दिनों में की गई मेहनत का असर कल पन्द्रहवें दिन मतदान के समय देखने को मिलेगा। वैसे तो सही तस्वीर तो आठ दिसम्बर को सामने आएगी लेकिन मतदान के बाद भी कई चीजे नजर आने लगेगी। चुनावी माहौल का आखरी दिन भी बेहद सरगर्म रहा। फूल छाप पार्टी के झगडे सड़क पर आ गए। झगडे सड़क पर आने का सीधा मतलब यह है कि डैमेज कंट्रोल की बातें हवा हो चुकी है। इसका ये मतलब भी है कि भारी डैमेज हो चुका है और लगातार हो रहा है। यह डैमेज ईवीएम को कितना डैमेज करेगा यह आठ दिसम्बर को पता चलेगा। फिलहाल इस डैमेज का असर भैयाजी और उनके आसपास वालों के चेहरों पर नजर आने लगा है।
उल्लंघन की उलझन
झुमरु दादा की जैसी फितरत है,गलतियां करने और गलतियों का खामियाजा भुगतने के बावजूद वे गलतियों पर गलतियां करते जाते है। उन्हे लगता है कि सारे नियम कायदे कानूनों को झूठ बोलकर निपटाया जा सकता है। पिछले चुनाव में हाईकोर्ट से फटकार खा चुकने के बावजूद उन्होने इस चुनाव में झूठ से कोई परहेज नहीं किया। लेकिन पब्लिक और भी ज्यादा समझदार है। पब्लिक पर इस बार झूठ का असर नहीं हुआ। जब असर नहीं हुआ तो दादा की घबराहट बढने लगी। घबराहट में वे ये भूल गए कि वोटरों को बरगलाने के चक्कर में कहीं वे खुद आचार संहिता के उल्लंघन के घेरे में ना आ जाए। टोपीवालों के मोहल्लों में सभा करने गए दादा को जब सुनने वालोंका रिस्पांस नहीं मिला तो झुंझलाहट में वे उपर वाले का वास्ता देकर वोट मांगने लगे। बस यहीं आचार संहिता का उल्लंघन हो गया। मामला इलेक्शन कमीशन के पास पंहुच चुका है। इस उल्लंघन से उनका आगे चुनाव लडना भी खतरे में पड सकता है।
तेरह दिन के उतार चढाव
पिछले तेरह दिनों में हर दिन नए नए उतार चढाव होते रहे है। याद कीजिए पहला दिन,जब प्रत्याशी घोषित हुए थे,लोगों ने बडी आसानी से भैयाजी को सबसे मजबूत प्रत्याशी मान लिया था। पंजा छाप बहन जी को सबसे कमजोर माना गया था। धीरे धीरे दिन गुजरे। बासठ हजारी दादा की स्थिति गिरने लगी। भैयाजी भी हांफते हुए नजर आने लगे। जब भैयाजी का दम फूलने लगा तो उन्हे सूबे के सदर की याद आई। सूबे के सदर का जादू है। सूबे के सदर के आने से उनका बाजार फिर जमा लेकिन लगातार जमा नहीं रह सका। सूबे के सदर के जाने के बाद भैयाजी आगे आ सकते थे,लेकिन उनके आजूबाजू मौजूद विद्वान लोगों की बदौलत वे फिर पिछडने लगे है। सबसे कमजोर पंजा छाप बहन जी अपनी धीमी गति से लगातार चलती रही। अब हालत ये है कि बासठ हजारी झुमरु दादा की चाल लंगडाने लगी है और वो सबसे पीछे नजर आ रहे है। अब तो जमानत पर भी सवाल उठने लगे है। उधर भैया जी की सांस फूली हुई है। उनके यहां मजमा तो लम्बा चौडा है,लेकिन सिर्फ हवाबाजी है। जमीनी काम नजर नहीं आता। चुनाव की सारी जिम्मेदारी उन लोगों के हाथों में है जो खुद वार्ड तक का चुनाव नहीं जीत सके। उन्हे जीतने का नहीं बल्कि हारने का तजुर्बा है। हारने का तजुर्बा रखने वाले जीतने की योजना बना रहे है। समस्या यहीं है। बहरहाल कल मतदान के दौरान ही सबकुछ दिखाई देने लगेगा।