कृषि रसायनों का उपयोग मानव के लिए घातक
हाइब्रीड बीजों का उपयोग कम कर सकता है रासायनिक खतरे को
नई दिल्ली,(इ खबरटुडे)। फसल सुरक्षा के लिए देश में कृषि रसायनों के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है,लेकिन ये कृषि रसायन खेती के लिए इतने उपयोगी नहीं है,जितना कि इन्हे बताया जाता है। फसलों की सुरक्षा के लिए उपयोग में आने वाले कृषि रसायनों का मात्र 35 प्रतिशत ही फसलें शोषित कर पाती है,शेष 65 प्रतिशत कृषि रसायन नदियों और पर्यावरण को बिगाडने में जाता है।
यह नया तथ्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक स्वप्र दत्त ने उद्घाटित किया। भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा एड्रेसिंग चैलेंजेस आफ फूड सिक्योरिटी विषय पर पिछले दिनों आयोजित परिसंवाद को सम्बोधित करने के दौरान श्री दत्त ने कहा कि ऐसी स्थिति में कृषि रसायनों का उपयोग कम करना जरुरी है। उन्होने कहा कि देश में गर्मी और सूखा सहन करने में सक्षम हाइब्रीड बीजों का उपयोग बढाने के प्रयास किए जा रहे है। इन बीजों का उपयोग बढने से कृषि रसायनों के उपयोग को स्वाभाविक रुप से कम किया जा सकता है।
श्री दत्त ने हाईब्रीड बीजों के सम्बन्ध में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि गर्मी और सूखा सहन करने वाले इन बीजों की फसलों पर कीटनाशकों का छिडकाव करने की आवश्यकता कम पडती है। इसलिए इन बीजोंके उपयोग से जहां कीटनाशकों का छिडकाव कम होगा वहीं फसल की लागत भी घटेगी और मानव स्वास्थ्य भी बेहतर होगा। श्री दत्त ने कहा कि यह तथ्य कीटनाशक निर्माण करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के गले नहीं उतर रहा है। तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि पैसों के लिए मानव जीवन को तबाह करने वाले उद्योग और कंपनिया इस तथ्य के सामने आने से परेशान हो गई है। देश का पर्यावरण बिगडे,प्रदूषण फैले या अन्न में जहर बढे,इससे इन कंपनियों को कोई लेना देना नहीं है।
श्री दत्त ने बताया कि देश में इन जहरीले रसायनों का खेती में उपयोग का कारोबार लगभग इक्कीस हजार करोड रुपए का है,और वे इसे बढाने का पुरजोर प्रयास कर रहे है। इसके लिए वे करोडों रुपए विज्ञापन पर खर्च कर रहे हैं। उनका विज्ञापन चल रहा है। वे बताते है कि भारत के किसान प्रति हैक्टेयर यानी लगभग ढाई एकड भूम में मात्र छ:सौ ग्राम कृषि रसायनों (कीटनाशकों आदि) का उपयोग करते है। इसके मुकाबले ताइवान,जापान,कोरिया आदि देशों में लगभग दो गुनी खपत होती है। अत: किसान और अधिक कृषि रसायनों का उपयोग करें और अधिक उपज प्राप्त करें। इन कंपनियों को अपना व्यापार बढाने के लिए मानव जीवन की चिन्ता नहीं है।
ऐसी कंपनियों के बारे में सरकार क्या फैसला कर रही है,इसकी जानकारी सूचना के अधिकार से मिल सकती है। चुनावी दौर में राजनीतिक पार्टियों से भी इस सम्बन्ध में जवाब मांगा जाना चाहिए साथ ही जनता को भी अपने हानि लाभ के प्रति जागरुकता दिखाना चाहिए।