December 23, 2024

दोनों भूरियाओं के लिए कठिन है चुनावी मुकाबला

कांतिलाल को कांग्रेस के गढ पर भरोसा,तो दिलीपसिंह को मोदी लहर का

रतलाम,२०अप्रैल(इ खबरटुडे)। संसद सदस्य के लिए होने वाले मतदान में अब चार दिन शेष है,लेकिन रतलाम संसदीय क्षेत्र में किस्मत आजमा रहेDilipSingh Bhuriya कांग्रेस के मौजूदा सांसद कांतिलाल भूरिया और भाजपा kbप्रत्याशी दिलीपसिंह भूरिया दोनों के ही लिए चुनावी मुकाबला बेहद कठिन नजर आ रहा है। संसदीय सीट पर दोनो परंपरागत प्रतिद्वंदी चौथी बार आमने सामने है। पिछले तीन मुकाबलों में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया भाजपा के दिलीपसिंह भूरिया पर हावी रहे है।
रतलाम संसदीय क्षेत्र की भौगोलिक और राजनीतिक परिस्थितियां बेहद जटिल रहीं है। आजादी के बाद से आज तक केवल दो चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी को यहां हार का सामना करना पडा है,जबकि भाजपा अब तक एक भी बार यहां जीत दर्ज नहीं करवा सकी है। इस लिहाज से यह कांग्रेस का अभेद्य गढ रहा है। पूरे देश में भाजपा की लहर होने के बावजूद भाजपा प्रत्याशी यहां जीत दर्ज नहीं करवा सके है।
संसदीय इतिहास पर नजर डाले तो,१९७१ में पहली बार यहां गैर कांग्रेसी,संसोपा के भागीरथ भंवर सांसद चुने गए थे। दूसरी बार यह संयोग १९७७ की जनता लहर के दौरान हुआ था,जब फिर से जनता पार्टी के टिकट पर भागीरथ भंवर को यहां जीत हासिल हुई थी। इसके अलावा १९५१ से लेकर अब तक हुए १५ लोकसभा चुनावों के दौरान १३ बार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। सन १९८० में रतलाम झाबुआ संसदीय सीट पर कांग्रेस से दिलीपसिंह भूरिया सांसद चुने गए थे। १९८० में मिली जीत के बाद दिलीपसिंह १९९६ तक लगातार पांच बार यहां से सांसद चुने गए।
इसके बाद दिलीपसिंह भूरिया कांग्रेस छोडकर भाजपा में आ गए और १९९८ में वे भाजपा के टिकट पर पहली बार सांसद का चुनाव लडे। कांग्रेस ने उनके मुकाबले में कांतिलाल भूरिया को उतारा था। संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं ने दल बदलने वाले दिलीपसिंह भूरिया को सिरे से खारिज कर दिया और कांतिलाल भूरिया को चुन लिया। १९९८ से शुरु हुआ कांतिलाल भूरिया की जीत का सिलसिला अब तक लगातार जारी रहा है। वे १९९९ का चुनाव भी दिलीपसिंह भूरिया के सामने जीते। २००३ में प्रदेश में दिग्विजय सिंह सरकार के खिलाफ बनी लहर में झाबुआ जिले की पांचों विधानसभा सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी जीते,लेकिन २००४ में हुए लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने भाजपा प्रत्याशी रेलम बाई चौहान को नकार दिया और फिर से कांतिलाल भूरिया को जिताया। पिछले लोकसभा चुनाव २००९ में भाजपा ने फिर से दिलीपसिंह पर दांव लगाया,लेकिन मतदाताओं ने फिर से दिलीपसिंह को नकार दिया और कांतिलाल भूरिया लगातार चौथी बार सांसद चुने गए थे।
इस बार फिर से मुकाबला इन्ही दोनो परंपरागत प्रतिद्वदियों में है।
भौगोलिक परिस्थितियां बदल चुकी है। पहले संसदीय क्षेत्र में रतलाम व झाबुआ दो जिले थे,लेकिन अब झाबुआ का अलीराजपुर अलग जिला बन गया है। संसदीय क्षेत्र में अलीराजपुर के दो,झाबुआ के तीन और रतलाम के तीन विधानसभा क्षेत्र शामिल है। कुल आठ विधासभा क्षेत्रों वाले इस संसदीय क्षेत्र में इस बार कुल १७ लाख दो हजार ४४९ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। विगत लोकसभा चुनाव २००९ में मतदाताओं की संख्या मात्र १२ लाख ४६ हजार ७५६ थी। इस तरह करीब पांच लाख मतदाता इस चुनाव में बढ चुके है। संसदीय क्षेत्र में रतलाम जिले के रतलाम शहर,रतलाम ग्रामीण और सैलाना तीन विधानसभा क्षेत्र शामिल है। इन तीन विधानसभा क्षेत्रों में कुल मिलाकर ५ लाख ५६ हजार,५३४ मतदाता है।
भौगोलिक परिस्थितियों के साथ साथ राजनीतिक परिस्थितियों में भारी बदलाव आया है। हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में शिवराज लहर के चलते संसदीय क्षेत्र की आठों विधानसभा सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी जीते है और भाजपा करीब ढाई लाख वोटों की बढत लेकर इन सीटों पर चुनाव जीती है। यह इकलौता तथ्य कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया की चिन्ता बढाने वाला है। इसके अलावा इन दिनों पूरा इलाका मोदी लहर की चपेट में है। इन दोनो बातों को लेकर भाजपाई खेमा आत्मविश्वास से भरा हुआ है।
दूसरी ओर कांतिलाल भूरिया को क्षेत्र के मतदाताओं की परंपरा पर भरोसा है। वर्ष २००४ में भी इसी तरह की परिस्थितियां थी,लेकिन कांतिलाल भूरिया ने दिलीपसिंह को बडी आसानी से पटखनी दे दी थी। हांलाकि वर्तमान समय में कांग्रेस में जबर्दस्त अन्तर्विरोध है और कांतिलाल भूरिया के प्रति कार्यकर्ताओं में नाराजगी भी बहुत है। कांतिलाल भूरिया को भी इस बात का एहसास था। शायद इसीलिए उन्होने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी को बहुत जल्दी छोड दिया था और वे अपने क्षेत्र में सक्रीय हो गए थे। कांतिलाल भूरिया के सुपुत्र डॉ.विक्रान्त भूरिया भी विधानसभा चुनाव के पहले से क्षेत्र में सक्रीय हो चुके है। संसदीय क्षेत्र की गहरी जानकारी रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि झाबुआ और आलीराजपुर क्षेत्र में आदिवासी मतदाताओं के अलावा जैन समुदाय के व्यापारी वर्ग का बहुत महत्व है। प्रत्येक गांव कस्बे में इस समुदाय की मजबूत पकड है। कांतिलाल भूरिया जैन समुदाय में खासे लोकप्रिय माने जाते है। इसके विपरित भाजपा प्रत्याशी दिलीपसिंह भूरिया के प्रति इस वर्ग में नाराजी का भाव है। कुछ दशकों पहले दिलीपसिंह भूरिया ने भीलीस्तान की मांग उठाई थी और उस दौर में व्यापारी वर्ग के खिलाफ काफी बोलते थे। नाराजगी का भाव उसी समय से है। यही कारण था कि कांतिलाल भूरिया ने दिलीपसिंह को तीन चुनावों में शिकस्त दी थी।
इस लोकसभा चुनाव को लेकर दोनो ही प्रत्याशी बेहद सतर्क है। कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया तो कई महीनों पहले से तैयारियों में लगे हुए है। उन्होने अपना ज्यादा ध्यान झाबुआ और आलीराजपुर में केन्द्रित किया है। वे जानते है कि रतलाम शहर और ग्रामीण सीटों पर बढत ले पाना लगभग नामुमकिन है। दूसरी ओर भाजपा के रणनीतिकार यह मान रहे है कि रतलाम जिले की तीन विधानसभा सीटों पर भाजपा ६० से सत्तर हजार वोटों की बढत ले सकती है। भाजपा ने यदि मतदान प्रतिशत बढा लिया तो यह बढत ले पाना कठिन नहीं होगा। विधानसभा चुनाव में भाजपा को रतलाम में ४० हजार तथा ग्रामीण में करीब पच्चीस हजार की बढत मिली थी। दूसरी ओर कांतिलाल भूरिया को यकीन है आदिवासी मतदाता कांग्रेस के हाथ के पंजे को पहचानता है।  बहरहाल दोनो भूरियाओं की टक्कर से चुनाव बेहद रोचक हो गया है। दोनो ही प्रत्याशी मतदाताओं को रिझाने में लगे है। देखना रोचक होगा कि मतदाता किसके गले में जयमाला डालते है।

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