चुनावी चख-चख -11
सूबे के सदर ने दी आक्सिजन
ग्यारहवां दिन- 21 नवंबर
दस दिन के चुनावी सफर की उंची नीची पथरीली राहों पर चलते चलते फूल छाप पार्टी के दावेदार का दम फूलने लगा था। कभी चाइना के माल का आरोप तो कभी धनकुबेर होने का झटका। वचनों के तीर तो आहत कर ही रहे थे,फूल छाप पार्टी की अंदरुनी कहानियां भी दम निकाले दे रही थी। पैलेस रोड वाले सेठ की नाराजगी ने सफर की मुश्किलों को और भी बढा दिया था। फिर उम्मीद थी कि पहले पीएम इन वेटिंग रहे और अब हाशिये पर डाल दिए गए पार्टी के बुजुर्ग नेता कोई चमत्कार दिखाएंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उलटे बुजुर्ग नेता की सभा के कारण निराशा का वातावरण बनने लगा। पैलेस रोड वाले सेठ जी ने इस मंच पर आने से परहेज किया और यह जता दिया कि उनकी नाराजगी बरकरार है। ऐसी स्थिति में दम फूलना ही था। इस विकट स्थिति में फूल छाप पार्टी को सिर्फ एक ही भरोसा था प्रदेश के बच्चों के मामा का। बच्चों के मामाजी, सूबे के सदर फिलहाल एकमात्र ऐसी शख्सियत है,जिनके नाम पर भीड खींची चली आती है और जो माहौल को बदलने की कूवत रखते है। यही हुआ भी। सूबे के सदर ने आते ही समा बांध दिया। भैयाजी की सबसे बडी मुसीबत सेठ जी को भी वे अपने साथ ही मंच पर लाए। भाषण की शुरुआत ही सेठ जी की तारीफों से हुई। यहां तक कि उन्होने यह भी कह दिया कि सेठ सरकार का हिस्सा बने रहेंगे। भीड भी जमकर उमडी। दोबत्ती पर जमे मजमे के बाद अब फूल छाप वालों के चेहरों पर थोडी चमक आई है। उनकी उखडी हुई सांसो को जैसे आक्सिजन मिल गई है। अब इस आक्सिजन का कितना असर कब तक हो पाता है? इस पर सभी की निगाहें लगी है।
उलटा न पड जाए दांव
सूबे के सदर की सभा को और ज्यादा असरदार बनाने के चक्कर में फूल छाप पार्टी ने नाक कान के डाक्टर साहब पर अपना जादू चलाया और उन पर भी फूल छाप का ठप्पा लगा दिया। इस पूरी कसरत के पीछे फूल छाप की गणित तिलक वालों के वोट कबाडने की थी। डाक्टर साहब तिलकधारियों के जिलाध्यक्ष भी है। इसलिए यह अंदाजा लगाया गया कि जय परशुराम का नारा फूल छाप के पक्ष में लगने लगेगा। लेकिन पंजा छाप वाले इस कहानी से बडे खुश नजर आ रहे है। उन्हे लगता है कि डाक्टर साहब के इस कदम से तिलक वाले नाराज हो रहे है। इसका सीधा फायदा पंजा छाप वाली बहन जी को मिलेगा। अगर पंजा छाप वालों का यह अंदाजा सही है,तो इसका मतलब यह है कि फूल छाप वालों का दांव उलटा पड गया है। और अगर दांव उलटा पड गया है,तो इसके नतीजे भारी भी हो सकते है।
कैसे बने सरकार का हिस्सा
शहर की सारी कहानी सेठ जी की नाराजगी के इर्द गिर्द घुम रही थी। भैया जी का तनाव लगातार बढ रहा था। उन्हे उम्मीद थी कि पार्टी के सदर की मौजूदगी समस्या को हल कर देगी। लेकिन अडियल सेठ ने पार्टी के सदर को महत्व नहीं दिया। इसी तरह बुजुर्ग नेता के सामने भी सेठ नहीं पसीजे। सारी खबरें सूबे के सदर को दी जा रही थी। उन्हे भी अंदाजा था कि अगर सेठ का मामला रफा-दफा न किया गया तो मामला बिगड सकता है। सूबे के सदर रतलाम आने से पहले जावरा और नामली पहुंचने वाले थे। सेठ को मनाने की स्क्रिप्ट पहले ही लिख ली गई थी। नामली में सफल सभा के बाद सूबे के सदर ने सेठ को अपनी गाडी में बैठाया। नामली से रतलाम के बीच सड़क पर चलती गाडी में गुफ्तगू होती रही। इसी गुफ्तगू के दौरान सूबे के सदर ने सेठ को वफादारी का वास्ता दिया और अगली सरकार में पूरा सम्मान देने का वादा भी किया। इसके बाद मंच पर जो कुछ हुआ उसे सब जानते है।
दूर दूर है जिम्मेदार
पंजा छाप पार्टी की कहानी भी इन दिनों बडी दिलचस्प दिखाई दे रही है। पंजा छाप पार्टी की बहनजी ने फार्म भरते ही टोपीवालों को मनाने की जुगत की थी। अब इसका नतीजा सामने आने लगा है। टोपीवाले पंजा छाप के पीछे इक_े हो गए है। टोपीवालों की ताकत से पंजाछाप वाली बहन जी का कान्फिडेन्स भी बढ गया है। शायद इसी का नतीजा है कि पंजा छाप पार्टी के नाराज जिम्मेदार नेताओं को मनाने रिझाने की ज्यादा कोशिशें नहीं की जा रही है। बहन जी के रणनीतिकार नाराज पार्षदों की मांग का महज आठवां हिस्सा देने को तैयार हुए। पार्षदों को मन मसोसकर बात मानना पडी। दूसरे जिम्मेदार नेताओं को भी मनाने की कोई खास कोशिश नहीं की गई। पंजाछाप पार्टी के शहर के मुखिया की इज्जत का जनाजा तो पहले ही दिए हुए टिकट को काट कर निकाला जा चुका था। सिर्फ दिखावे के लिए शहर के मुखिया को एकाध सभा में बुलाया गया। प्रचार अभियान में उनका कोई रोल नहीं रखा गया। इसी तरह नगर निगम में विपक्ष का अगुवाई करने वाले वकील साहब को भी कोई भाव नहीं दिया गया। वकील साहब अपना वक्त कोर्ट या फिर कलेक्टोरेट में गुजारते हुए देखे जा सकते है।