किसानजगत् के लिए ऊँट के मुँह में जीरे के समान है बजट
आम बजट पर किसान संघ महामंत्री प्रभाकर केलकर की प्रतिक्रिया
नई दिल्ली, 13 जुलाई (इ खबरटुडे)। भारतीय किसान संघ महामंत्री प्रभाकर केलकर ने आम बजट पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि मोदी सरकार का पहला बजट वैसे तो मिला जुला है और इसमें कृषि के लिए भी कुछ प्रावधान किए गए है लेकिन समग्र रूप में देखा जाएँ तो ये प्रावधान ऊँट के मुँह में जीरे के समान है. कृषि के बारे में नीतियों की स्पष्टता का अभाव दिखाई देता है
श्री केलकर ने बजट पर विस्तार से प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अंतरिम बजट के बाद आगे के आठ महीनों के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित बजट बंधे हुए व्यक्ति के हाथों की बेचैनी जैसा दिखाई देता है। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आर्थिक जगत के सभी पहलुओं को कुछ-न-कुछ देने का या छूने का प्रयत्न किया है, जिनमें उद्योग, वाणिज्य, स्वास्थ्य, टैक्स, शिक्षा आदि विषयों में आने वाले वर्षों में एक निश्चित दृष्टि और कार्य योजना दिखाई देती है। आगे की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार इन सारी योजनाओं पर और प्रस्तुत किए गए रोडमैप पर कितनी प्रतिबद्धता से चल पाती है। वर्तमान में राजनैतिक एवं सामाजिक ताने-बाने में किसी भी योजना को अमल में लाने में अनेक बाधाएं आने की संभावना है। सरकार ने कठोर कदम उठाने की इच्छा जताई है। देखना यह है कि कितना कर पाती है।
यहां कृषि क्षेत्र के बारे में यह उल्लेख करना अति आवश्यक है कि कृषि के बारे में नीतियों की स्पष्टता का अभाव दिखाई देता है और कहीं न कहीं सरकार देश के सबसे बड़े रोजगार देने वाले कृषि क्षेत्र के बारे में कारपोरेट जगत को बढ़ावा देते हुए दिखाई देती है। अरुण जेटली ने राष्ट्रीय कृषि बाजार जिंस बाजार बनाने का उल्लेख किया है। इसकी योजना स्पष्ट नहीं है। लेकिन इसमें से जो संकेत निकलकर आता है उसके अनुसार वर्तमान की कृषि उपज मंडियों को दर-किनार करते हुए कारपोरेट मार्केट की तरफ सरकार के कदम बढ़ते दिखाई देते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि देशी व्यापारियों के शोषण से किसानों को मुक्त करने के लिए कृषि उपज मंडियों की (एपीएमसी) स्थापना की गई थी। जहां किसान न्याय के लिए गुहार लगा सकता था। क्योंकि पहले अनेक व्यवसायी अनाज बेचने के बाद गायब हो जाते थे और किसान दर-दर भटकता फिरता रहता था। राष्ट्रीय कृषि जिंस बाजार की अवधारणा बुरी नहीं है, लेकिन यदि कृषि उपज मंडियों का सुरक्षा कवच किसानों पर से हट जाता है तो राष्ट्रीय कृषि जिंस बाजार के बड़े-बड़े व्यापारियों से अपना पैसा वसूलने के लिए किसान को क्या करना होगा, यह स्पष्ट रूप से बताया नहीं गया है। आज भी कृषि उपज मंडियों में व्यापारी रिंग बनाकर किसानों का शोषण करने से नहीं चूकते। इसी प्रकार कृषि जिंस भंडारण के लिए पांच हजार करोड़ का फंड बनाया गया है। यह कदम स्वागत योग्य है। लेकिन भंडारण में विदेशी पूंजी निवेश से दूर रहना ही देशहित में होगा। वर्तमान बजट में इसका उल्लेख नहीं है, लेकिन झुकाव दिखाई देता है। अत: सावधानी बरतना जरूरी है।
देश के संपूर्ण विकास के लिए कृषि प्रधान देश में कृषि को केंद्र में रखकर योजना बनाने की दृष्टि का अभाव दिखाई देता है। किसान और कृषि को मुख्य उत्पादक और रोजगार देने वाला क्षेत्र मानकर उसके बारे में रोडमैप बनाने की आवश्यकता है। ऐसा करने से ही देश आत्मनिर्भर हो सकता है। क्योंकि अनेक बाधाओं के बाद आज भी कृषि ही सबसे बड़ा रोजगार एवं व्यवसाय देने वाला क्षेत्र है। बजट में 5 हजार करोड़ रुपये भंडारण, कृषि बुनियादी ढांचा बनाने के लिए 5 हजार करोड़, सिंचाई विकास के लिए एक हजार करोड़, कृषि जिंस कीमत स्थिरीकरण के लिए 500 करोड़, मिट्टी परीक्षण के लिए 56 करोड़ की घोषणाएं की गई हैं। इसके अलावा रासायनिक खाद, कृषि विश्वविद्यालय आदि के लिए कुछ घोषणाएं की गई है, लेकिन पूरे बजट का कितने प्रतिशत कृषि क्षेत्र को दिया गया है, यह स्पष्ट नहीं है। यदि ऊपर दिए गए आंकड़ों को जोड़ा जाए तो यह जोड़ 12 हजार करोड़ के लगभग होता है। 18 लाख करोड़ के बजट में किसान जगत के लिए यह राशि 12 हजार करोड़ ऊंट के मुंह में जीरे के समान अति अल्प ही कही जाएगी और इस राशि से किसान जगत में निकट भविष्य में उजाला नहीं हो सकता। जैविक कृषि के लिए बजट में पहल न होना निराशाजनक है क्योंकि रासायनिक खेती से मानव जीवन खतरे में है, यह सर्वविदित है। मध्यप्रदेश जैसे प्रमुख कृषि उत्पादक राज्यों के लिए केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय एवं जैविक कृषि विश्वविद्यालय की अवधारणा को स्थान दिया जाना चाहिए था। आशा है कि आने वाले वर्षों में सरकार इस ओर ध्यान देगी। उद्योग, वाणिज्य, शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे में विकास, मध्यम वर्ग को करों में छूट आदि के मीठे फल के साथ काम करते हुए परिणाम लाने की इच्छाशक्ति दिखाने वाली सरकार के इस बजट का स्वागत किया जाना चाहिए। कर चोरी, भ्रष्टाचारियों में भय पैदा करने की तैयारी का भी स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन किसान किसानी क्षेत्र के लिए और बहुत कुछ देने की गुंजाइश है, यह भी स्पष्ट होना चाहिए।