May 19, 2024

अब खुलेंगे भाजपा कार्यालय के ताले

हिम्मत कोठारी की लाल बत्ती से भाजपा की गुटीय राजनीति में होगा भारी बदलाव

रतलाम,13 जुलाई (इ खबरटुडे)। विधानसभा चुनाव के समय से बन्द भाजपा कार्यालय के ताले अब खुल जाएंगे। पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी को राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद अब भाजपा की अंदरुनी राजनीति में भारी बदलाव आना तय है। पैलेस रोड स्थित भाजपा कार्यालय विधानसभा चुनाव के बाद से ही बन्द पडा था और भाजपा की तमाम गतिविधियां स्टेशनरोड स्थित विसाजी मेन्शन से चलने लगी थी,लेकिन श्री कोठारी की नियुक्ति के बाद स्थितियां बदलना तय है।
उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव से एन पहले जब पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी का टिकट काट कर उद्योगपति चैतन्य काश्यप को टिकट दिया गया था,तब भाजपा कार्यकर्ताओं में जबर्दस्त आक्रोश फैला था। इसी दौरान कुछ गुस्साएं कार्यकर्ताओं ने भाजपा कार्यालय पर तोडफोड भी कर डाली थी। इसके बाद भाजपा का पूरा चुनाव अभियान भाजपा कार्यालय की बजाय श्री काश्यप के निवास विसाजी मेन्शन से ही चलाया गया था। प्रदेश में चल रही जबर्दस्त शिवराज लहर के चलते चुनाव में श्री काश्यप को भी जीत मिली और इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा का गुटीय सन्तुलन पूरी तरह बदल गया।
विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से ही भाजपा के अनेक नेताओं ने अपनी निष्ठाएं बदल ली थी और वे पैलेस रोड की बजाय स्टेशनरोड पर चरण चुंबन करने लगे थे। यहां तक कि भाजपा जिलाध्यक्ष बजरंग पुरोहित और कोठारी के कट्टर समर्थक रहे जिला महामंत्री प्रदीप उपाध्याय ने भी पैलेस रोड से दूरी बनाते हुए स्टेशनरोड से रिश्ता जोड लिया था। इसका सीधा असर भाजपा कार्यालय पर भी पडा। भाजपा संगठन की बैठकें आदि भी भाजपा कार्यालय की बजाय रंगोली भवन या विसाजी मेन्शन पर होने लगी थी।
इसका एक असर यह भी हुआ था कि पार्टी संगठन के अनेक कार्यकर्ताओं ने भाजपा की बैठकों व अन्य कार्यक्रमों में भाग लेना छोड दिया था। पार्टी संगठन में भरोसा रखने वाले इन कार्यकर्ताओं की आपत्ति यह थी कि पार्टी का अपना कार्यालय होने के बावजूद पार्टी को नेता के घर से चलाया जा रहा था और वे इससे सहमत नहीं थे। चूंकि जिलाध्यक्ष और जिला महामंत्री दोनो ही नगर विधायक के समक्ष समर्पण कर चुके थे,इसलिए यह मुद्दा कभी जोर भी नहीं पकड पाया। पिछले लगभग आठ महीनों से भाजपा कार्यालय वीरान पडा हुआ था।
लेकिन राजनीति में बदलाव आते है। समय के साथ सबकुछ बदल जाता है। जैसे ही पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी को फिर से केबिनेट मंत्री दर्जा मिलने की खबरें आई,भाजपा में बदलाव की बयार सी चलने लगी। कल तक पैलेस रोड की तरफ देखने से बचने वाले भी हार फूल लेकर पैलेस रोड की जाते दिखाई देने लगे। जिलाध्यक्ष और जिला महामंत्री ने भी बिना समय गंवाएं पैलेस रोड पर पंहुचकर श्री कोठारी को बधाईयां दी।  इसी के साथ यह तय होने लगा कि अब भाजपा कार्यालय के दिन भी बदलेंगे। विसाजी मेन्शन पर बंधक बन चुकी भाजपा अब फिर से भाजपा कार्यालय पर पहंच सकेगी।

उलझन में नेता

श्री कोठारी के फिर से राजनीति की मुख्य धारा में लौटने से जहां उनके समर्थकों में तगडा उत्साह है,वहीं अनेक नेता मायूस हो रहे है। विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद अनेक नेताओं ने यह मान लिया था कि श्री कोठारी का राजनीतिक जीवन अब समापन की ओर है। इसी मान्यता के चलते उन्होने फौरन अपनी निष्ठाएं बदली और स्टेशन रोड का दामन थाम लिया था। श्री कोठारी के तमाम सिपहसालारों में से केवल विष्णु त्रिपाठी और निगम अध्यक्ष दिनेश पोरवाल दो ऐसे नेता थे,जो श्री कोठारी के साथ ही बने रहे। इन दो के अलावा अनेक पार्षद व अन्य नेताओं ने श्री कोठारी से दूरियां बना ली थी। उन्हे इस बात का कतई अन्दाजा नहीं था कि श्री कोठारी की फिर से जबर्दस्त वापसी हो सकती है। इन नेताओं के सामने उलझन यह है कि अब वे कैसे कोठारी खेमे में वापसी करे। नगर निगम चुनाव में टिकट की चाहत रखने वालों के सामने भी यही समस्या है। अब यह तय माना जा रहा है कि टिकट वितरण में श्री कोठारी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

कठिनाई में काश्यप

लम्बे समय तक कांग्रेस और भाजपा दोनो पार्टियों से मधुर सम्बन्ध रखने वाले उद्योगपति चैतन्य काश्यप गहन विचार विमर्श और व्यापक तैयारियों के बाद भाजपा में आए थे। भाजपा में उनका प्रवेश उंचे स्तर पर हुआ था। वे पार्टी के एक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक का पद लेकर भाजपा में आए थे और उस समय के भाजपा सुप्रीमो लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा का मीडीया मैनेजमेन्ट देखने की वजह से उनके करीबी भी माने जाते थे। लेकिन बदलते वक्त ने उनके राजनैतिक कैरियर के सामने कठिनाईयां खडी कर दी है।
जब वे पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी थे,तब उन्होने मन्दसौर संसदीय क्षेत्र में अपने लिए जमीन तैयार करना शुरु की थी। वे मन्दसौर से सांसद का चुनाव लडने का लक्ष्य लेकर चल रहे थे। आडवाणी के करीबी होने के कारण शुरआत में यह तय माना जा रहा था कि श्री काश्यप,तत्कालीन सांसद डॉ.एलएन पाण्डे को हटाकर टिकट हासिल कर लेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। श्री काश्यप भी धैर्यपूर्वक अपनी बारी का इन्तजार करते रहे। इधर समय बदलने के साथ संगठन में भी उनका असर कम हुआ और उन्हे राष्ट्रीय दायित्व की बजाय प्रदेश कार्यसमिति में कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी गई। पिछले विधानसभा चुनाव के आते आते शायद उनका धैर्य टूटने लगा था और इसीलिए उन्होने येन केन प्रकारेण विधानसभा चुनाव का टिकट हासिल करने में अपनी सारी ताकत झोंक दी थी। हांलाकि वे इसमें सफल रहे लेकिन राष्ट्रीय पदाधिकारी के स्तर से एक राज्य का विधायक बनने को राजनीति में आमतौर पर पदावनति ही माना जाता है। बहरहाल,विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उन्हे उम्मीद थी कि वे मंत्रीपद हासिल कर लेंगे,लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और मंत्रीपद पर आज हिम्मत कोठारी काबिज हो चुके है। रतलाम से श्री कोठारी को लालबत्ती दिए जाने के बाद अब किसी अन्य को लालबत्ती मिलने की संभावनाएं धूमिल हो चुकी है। श्री काश्यप के पूरे राजनीतिक कैरियर पर निगाह डाली जाए तो उसमें उतार ही उतार नजर आता है। उद्योगपति की छबि के चलते वे जननेता बनने में भी सफल नहीं हो सकते। ऐसे में उनका राजनीतिक कैरियर कठिनाई में ही दिखाई देता है।

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