राग रतलामी/शहीद की अंतिम यात्रा से भी लाभ लेने की कोशिश में लगे रहे पंजा पार्टी के नेताजी,फूलछाप में भी भारी खींचतान
-तुषार कोठारी
रतलाम। इस शहर के लिए कई दशकों में शायद ये पहला मौका था,जब इस शहर के एक बेटे को शहीद का दर्जा मिला। नौसेना का वीर सैनिक अपने साथियों को बचाते बचाते खुद शहीद हो गया। शहीद की शहादत को सम्मान देने के लिए,शहर के लोग बडी तादाद में उसकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए। जब लोग शामिल हो रहे थे,तो नेता कैसे पीछे रहते। दोनो पार्टियों के कई सारे नेता भी शहीद की अंतिम यात्रा में शामिल हुए। लोगों के लिए यह दृश्य द्रवित करने वाला था। युवावस्था में अपने प्राणो का बलिदान करने वाले वीर सैनिक को अंतिम विदाई देते समय कई लोग द्रवित हुए। लेकिन नेताओं के लिए कोई भी मौका गंवाने के लिए नहीं होता। अंतिम यात्रा में जब भावुक लोग भारत माता की जय और शहीद अमर रहे के नारे लगा रहे थे,उस वक्त पंजा पार्टी के सजे संवरे नेता जी सडक़ पर खडे लोगों को इस अदा में नमस्कार कर रहे थे,जैसे यह उनका जनसंपर्क जुलूस हो। कई सारे लोगों ने उनके फोटो खींचे,कईयों ने विडीयो भी बनाए। ये फोटो और विडीयो अब सोशल मीडीया पर घूम रहे हैं। बहरहाल,नेताजी को इससे कोई फर्क नहीं पडता। उन्होने तो शहीद की अंतिम यात्रा में मिले मौके का भरपूर उपयोग किया। उनकी अदाओं को देखकर नाराज हुए लोग सोशल मीडीया पर अपनी भडास निकाल रहे हैं। नेताजी को उनकी इस हरकत का फायदा मिलेगा या लोग उन्हे सबक सिखाएंगे इसका नतीजा तो तेईस मई को ही सामने आएगा। हांलाकि ज्यादातर लोग यह मान रहे हैं कि नेताजी को यह चतुराई भारी पड सकती है।
पंजा पार्टी में नाराजगी
वैसे तो रतलाम झाबुआ सीट पर पंजा पार्टी हमेशा ही जीतती आई है। महज पिछला 2014 वाला चुनाव ऐसा था,जिसमें पंजा पार्टी के भूरिया जी को हार का मुह देखना पडा था,लेकिन केवल साल सवा साल में इस सीट पर उनका फिर से कब्जा हो गया। लगातार जीत का ही शायद ये असर है कि पंजा पार्टी वालों को पार्टी की कोई चिंता ही नहीं है। पंजा पार्टी में किसी भी व्यक्ति को कोई भी पद दे दिया जाता है। हाल के दिनों में पंजा पार्टी ने शहर के चुनाव में पंजा पार्टी की जमानत जब्त करवा चुके नेताजी को सूबे का महासचिव बना दिया। इसी तरह एक और छुटभैय्ये नेताजी सूबे के सचिव बन कर आ गए। पंजा पार्टी में काम करने वाले लोगों के लिए यह बडे आश्चर्य का विषय होता है कि यहां पद आखिर किस योग्यता के आधार पर दिए जाते है। जो जानकार हैं,वो बताते है कि सबसे बडी योग्यता तो पद की कीमत लगाने वाले की होती है। जो सबसे ज्यादा कीमत लगाता है,पद उसी को मिल जाता है। अब ताजा खबर यह है कि पंजा पार्टी ने पूरे लोकसभा क्षेत्र का प्रभारी शहर छोडकर दूसरे शहर में जा बसे मौसमी नेताजी को बना दिया है। चुनावी मौसम तक ये नेताजी रतलामी बने रहेंगे और चुनाव समाप्त होते ही,फिर से अपने शहर को रवाना हो जाएंगे। पंजा पार्टी में इस बात से भारी नाराजगी है। पंजा पार्टी को जानने वालों का कहना है कि मौसमी नेताओं को बडी जिममेदारी दिए जाने से वो वास्तविक नेता पीछे हट जाएंगे,जिनका जनाधार है। चुनाव रमजान के दौरान होना है। ऐसे वक्त पर रोजदारों को बूथ तक लाना बेहद कठिन हो जाएगा और पंजा पार्टी के नेताजी के लिए यह बडा भारी झटका साबित होगा।
फूलछाप में भी भारी खींचतान
अंदरुनी खींचतान की बीमारी जितनी पंजा पार्टी में है,उतनी ही फूल छाप पार्टी में भी है। सूबे के चुनाव में जिले की पांच में से दो सीटो को गंवाने के बाद फूल छाप पार्टी ने जिलाध्यक्ष को बदल दिया। जिलाध्यक्ष बदलते ही फूलछाप पार्टी का अंदाजेबयां भी बदल गया। चुनाव के वक्त पार्टियों के पदाधिकारी इस उम्मीद में रहते है कि उन्हे चुनाव में पद के अनुरुप बडी जिम्मेदारी मिलेगी,लेकिन फूलछाप पार्टी ने तो सारा हिसाब उलटा पुलटा कर डाला। जिले के बारह मंडलों में चुनाव के प्रभारी नियुक्त किए जाते हैं। फूल छाप पार्टी की जिला कार्यकारिणी के पदाधिकारियों को भी उम्मीद थी कि उन्हे किसी ना किसी मंडल की जिममेदारी मिलेगी। लेकिन फूल छाप के नए दरबार ने जब मंडल प्रभारियों की घोषणा की तो तमाम पदाधिकारी ठगे से रह गए। पूरी जिला कार्यकारिनी में से केवल दो ऐसे पदाधिकारी थे,जिन्हे एक एक मंडल की जवाबदारी दी गई,बाकी के सारे पदाधिकारी धरे रह गए। अब इन पदाधिकारियों की बडी समस्या है। कहने को तो जिले के पदाधिकारी है,लेकिन चुनाव में इनकी कोई हैसियत ही नहीं है। जाहिर है ये सारे लोग नाराज है। इनकी नाराजगी का क्या असर होगा…? यह देखना भी मजेदार होगा।