राग रतलामी- आचार संहिता की आहट,नवरात्रि के उत्सव पर मंडराए संकट
– तुषार कोठारी
रतलाम। हर कोई कान लगाकर आचार संहिता की आहट सुनने की कोशिश कर रहा है। यहां से लेकर सूबे की राजधानी तक हर ओर आचार संहिता का इंतजार है। आचार संहिता की आहट से घबराहट का भी माहौल है। नेता चाहते है कि आचार संहिता घोषित होने से पहले ज्यादा से ज्यादा घोषणाएं कर दी जाएं,ताकि चुनाव में उसका फायदा लिया जा सके। अफसरों में घबराहट इस बात की है कि आचार संहिता के बाद उन पर सीधे चुनाव आयोग का कब्जा हो जाएगा। फिर एक एक कदम फूंक फूंक कर रखना होगा। लेकिन आचार संहिता का एक बुरा असर नवरात्रि के उत्सव पर भी पडने वाला है।
ज्यादातर अफसर तो आचार संहिता के आने से घबराहट में है,लेकिन कुछ इससे अलग भी है। वे आचार संहिता का इंतजार बडे जोरों से कर रहे हैं। वे चाहते है कि आचार संहिता लगे ताकि वे नेताओं को उलझाने की कोई जुगत लगा सके। आचार संहिता आते ही सरकार नदारद हो जाएगी और सारी पावर अफसरों के हाथ में आ जाएगी। नगर सरकार के सबसे बडे अफसर बडे जोरों से आचार संहिता का इंतजार कर रहे है। वे पहले से ही शहर के कई सारे कामों को अटकाए बैठे है। शहर की प्रथम नागरिक डाक्टर मैडम वैसे ही काम करती नहीं थी। अब कोढ में खाज ये है कि बडे साहब ही काम करने को राजी नहीं है।
इसका खामियाजा,रतलाम की रियाया को भुगतना पडेगा। शहर के बाशिन्दे बडी शिद्दत से नवरात्रि का इंतजार करते है,क्योंकि नवरात्रि में कालिका माता का मेला होता है,जहां मनोरंजक कार्यक्रम देखने को मिलते है। लेकिन इस बार मेले का क्या होगा,भगवान जाने। पिछले नवरात्रि मेले में हुए मंचीय कार्यक्रमों का भुगतान अब तक नहीं हुआ है। कार्यक्रमों के आयोजक पूरे साल इधर उधर भटकते रहे। संगठन का भी जोर लगाया,तो आखिरकार परिषद ने भुगतान की मंजूरी दे दी। लेकिन अब कहानी बडे साहब ने अटका दी। वे साइन करने को राजी ही नहीं है। इतना ही नहीं बडे साहब ने पिछले मेले के अन्य भुगतान भी अब तक नहीं किए है। उन्हे मालूम है कि जैसे ही आचार संहिता लगी,कोई नेता कुछ कहने सुनने के काबिल नहीं रह जाएगा। कार्यक्रम के आयोजकों को भुगतान की जो उम्मीद जगी थी,वह भी अब धुंधलाने लगी है। नवरात्रि मेला सामने है। अब सवाल यह है कि मंचीय कार्यक्रमों के लिए तैयार कौन होगा और काम कौन करेगा….? बेचारे आयोजक,पहले तो नेता,अफसरों को भारी भरकम कमीशन चुकाए और फिर जब भुगतान का मौका आए,तो राजनीति आडे आ जाए। आचार संहिता के असर में नवरात्रि फीकी ही रह जाएगी। न तो ठीक के मंचीय कार्यक्रम हो पाएंगे और ना मेले में दुकानदारों की कमाई हो पाएगी। मेला रात को शबाब पर आता है,लेकिन आचार संहिता के नाम पर दुकानदारों को धमकाया जाएगा और आखिरकार मेला बरबाद हो जाएगा।
कौन थामेगा पंजा
इधर आचार संहिता की चर्चाएं,उधर नेताओं की दौडधूप। फूल वाली पार्टी के लोग,तो राजधानी के कार्यकर्ता कुंभ में असरदार हाजरी लगा आए,इसलिए वो खुश है। पंजे वालों के पास कोई खास काम नहीं है। उन्हे बस उम्मीदवारी की बातें करना है। पंजा पार्टी में असर रखने वाले लोगों का कहना है कि शहर में जैन सनातन का समीकरण बनेगा,तो ही पंजा पार्टी के लिए उम्मीद बन सकती है। पंजा पार्टी के युवराज खुद भी शिवभक्त बन गए है,इसलिए लोकल लेवल पर भी इसी तरह की तलाश की जाएगी। फूल वाली पार्टी जैन उम्मीदवार के साथ है,इसलिए पंजा पार्टी सनातनी पर दांव खेलेगी। सनातनी दांव के चक्कर में नुकसान झुमरू दादा का हो रहा है। खुद को व्यापम का एक्टिविस्ट बताकर टिकट की जुगाड में उन्होने पंजे से नाता जोडा था,लेकिन अब पंजा पार्टी का गणित बदलने से उनकी उम्मीदें कमजोर पड गई है। पंजे का निशान सनातनी थामेगा या कोई और,ये सवाल लाख टके का है। इसी पर सिरखपाई जारी है।
चोर चोरी से जाए,हेराफेरी से नहीं
कोई सर्वानन्द देने की बात करता था,तो कोई राम का दयाल बनता था। लेकिन जब प्रशासन की टीमों ने नई सडक़ की बडी दुकानों पर छापा मारा,तो पता चला कि सब के सब,ग्राहकों को जमकर चूना लगा रहे हैं। कोई घटिया माल पैकेट में भर रहा था और कम माल भर रहा था। तो कोई तौल कांटे में डण्डी मार कर ग्राहकों को चूना लगा रहा था। इन दुकानदारों की प्रतिष्ठा पहले ही खराब थी,लेकिन हाल के दिनों जब दुकानें मॉल में बदल गई,तो लोगों को लगा कि अब ये सुधर गए होंगे। लेकिन चोर चोरी से जाए,हेराफेरी से नहीं। वे नहीं सुधरे। चिन्दी चोरी की आदतें आसानी से जाती नहीं। पहले के बडे साहब ने नई सडक़ की तमाम बडी दुकानों में पार्किंग बनवाने की मुहिम चलाई थी। हांलाकि उन्ही के एक अधीनस्थ झां सेबाज ने सारा खेल चौपट कर दिया था। प्रशासन भी तब से इसे भूला बैठा है। इन दुकानों की पार्किंग खुल जाए,तो सडक़ की सेहत भी सुधर जाएगी।