चुनौती के बीच नाथ ने लिए कई जोखिम
प्रकाश भटनागर
बहुमत की जिस कमजोर डगर पर कमलनाथ की सरकार को चलना है, उसमें किसी भी और समीकरण की तुलना में राजनीतिक समीकरण को साधना ही सबसे बड़ी चुनौती थी। लगता है, इस चुनौती को साधने में कमलनाथ ने सधे हुए कदम उठाए हैं। इसलिए ऐसा पहली बार हो रहा है कि कमलनाथ के सारे मंत्री केबिनेट स्तर के है। सभी 28 मंत्री केबिनेट में। मध्यप्रदेश में शायद ही किसी ने मंत्रिमंडल का ऐसा गठन कभी देखा हो। नाथ के पास आप्शन बहुत सीमित थे। गुटबाजी चाहे जो हो जाए, कांग्रेस से अलग नहीं हो सकती। इसलिए नाथ ने सबको साधने के साथ ही यह संदेश भी दे दिया कि उनकी नीयत किसी को निपटाने सुलटाने की नहीं है। इसलिए उन्होंने किसी भी मंत्री के साथ राज्यमंत्री का कोई फच्चर ही नहीं फंसाया। वरना मंत्री और राज्यमंत्री में एक क्लेश तो अधिकारों को लेकर होता ही है। और जिस गुट को राज्यमंत्री का पद मिलता, जाहिर है उसके नेता को यही अहसास होता कि उसे निपटाने की कोशिश की गई है। नाथ ने यह संदेह पनपने का कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा।
अब जातीय और क्षेत्रीय संतुलन की बात करें तो विंध्य में कमलनाथ क्या क्षेत्रीय संतुलन बिठाते। इसलिए बेहतर आप्शन के तौर पर कमलेश्वर पटेल का चयन ही ठीक था। लेकिन बिसाहुलाल सिंह को छोड़ देना लोगों को आश्चर्य में डाल रहा है। इसलिए भी इस बार विंध्य में अकेला अनूपपुर ही ऐसा जिला है, जहां कांग्रेस ने तीनों सीटे जीती हैं। अब मंत्रिमंडल ही ठाकुरों का लग रहा है। आखिर आठ मंत्री ठाकुर हैं तो कह सकते हैं कि के पी सिंह को उन्हें छोड़ना पड़ गया। वैसे सिंधिया के ग्वालियर और गुना से चार लोग मंत्रिमंडल में शामिल हैं। इसके अलावा डा. गोविंद सिंह और जयवर्द्धन सिंह दिग्विजय सिंह के कोटे से इसी अंचल के प्रतिनिधि हैं। इसलिए हो सकता है कि के पी सिंह सिंधिया के विरोध के कारण मंत्रिमंडल से बाहर रह गए हों, क्योंकि ग्वालियर से प्रधुम्न सिंह, लाखन सिंह, और गुना से महेन्द्र सिंह सिसोदिया और जयवर्द्धन सिंह भी ठाकुर ही हैं। भिंड से गोविंद सिंह भी वहीं है। इसलिए गुटबाजी और अपनों की पसंद से एक अनुभवी पीछे छूट गया।
नाथ मजबूत दिख रहे हैं या खुद को ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, यह वही जानें, लेकिन जय युवा आदिवासी संगठन के सर्वेसर्वा डा. हीरा अलावा को उन्होंने तवज्जो नहीं दी है। यह जयस का ही कमाल था कि निमाड़ में कांग्रेस के उम्मीदवार भारी भरकम अंतर से चुनाव जीते थे। चार-छह महीने बाद लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस के लिए इस निर्णय का विपरीत परिणाम भी आ सकता है। यहां के आदिवासी भाजपा को वोट करना सीख गए हैं और इस बार जयस के कारण ही युवा आदिवासी भारी तादाद में भाजपा से विमुख हुआ है। हां, शिवराज की एक भूल से सबक लेते हुए नाथ ने इंदौर संभाग में पर्याप्त संख्या में प्रतिनिधित्व प्रदान किया है। जातिगत समीकरण को लेकर नाथ के दिमाग में चाहे जो गणित रहा हो, किंतु ब्राहृणों के मुकाबले ठाकुर चेहरों को मंत्री बनाकर उन्होंने बड़ा जोखिम उठाया है। जैन समाज का मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व न होना भी चौंकाता है।
यह सब प्रयोग नाथ ने उस सरकार को लेकर किए हैं, जिसके पास बहुमत के नाम पर निर्दलीय विधायक और सपा तथा बसपा का ही सहारा है। फिर भी नाथ ने एक ही निर्दलीय को मंत्री बनाया है। वो उनका पट्ठा ही है। जाहिर है कि जल्दी ही मंत्रिमंडल विस्तार का कदम उठाना होगा, ताकि शुरूआत में न बन सके संतुलन को लोकसभा चुनाव से पहले स्थापित कर दिया जाए। आज मंत्री बने चेहरों को लेकर एक सवाल सहज रूप से उठता है। वह यह कि नाथ ने वित्त मंत्री के रूप में किसका चयन किया है? इन 28 चेहरों में एक भी दिवंगत अजयनारायण मुश्रान सहित राघवजी या जयंत मलैया जैसी वित्तीय सूझबूझ वाला नहीं दिखता है। तो क्या यह अहम महकमा नाथ अपने पास ही रखेंगे? इसका जवाब हां में आसानी से नहीं दिया जा सकता। या फिर जिसे बनना है, वो बने, ये एक कठिन विभाग है जिसे आमतौर पर अफसर ही ज्यादा हैंडल करते हैं। बाकी मुख्यमंत्री तो होता ही है। क्योंकि बहुत कठिन परिस्थितियों के बीच वित्त जैसा विभाग संभालते हुए सरकार चला पाना आसान नहीं है। इसलिए इस मामले में मुख्यमंत्री का भरोसा अफसरों पर ही रहना है। ऐसा ही उद्योग विभाग का मामला है। उसके लिए भी कोई मुफीद चेहरा इस मंत्रिमंडल में नहीं दिखता। यह विभाग सरकार के लिए बहुत अहम है। क्योंकि कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में प्रदेश में रोजगार के अवसर प्रदान करने की बात कही थी और उसके लिए आम चुनाव के मद्देनजर उद्योग विभाग के जरिए इस पर अमल कराना बहुत जरूरी होगा। निश्चित तौर पर कमलनाथ ने करीब बीस ऐसे लोगों को मंत्री बनाया है जिनकी क्षमता सामने आना अभी बाकी है, इसलिए उम्मीद कर सकते हैं कि नए चेहरे भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाने का मौका शायद ही गंवाएं।
खैर, आगे जो होगा, दिख ही जाएगा। मजे की बात यह कि अपने-अपने आकाओं के फेर में कई ऐेसे चेहरे मंत्रिमंडल में जगह पा गए, जिनसे कहीं ज्यादा काबिल लोग आज भी राजभवन में महज कांग्रेसी विधायक की पहचान लिए चेहरा लटकाकर घूम रहे थे। ये बीस विधायक पहली बार शपथ लेकर खुद से सीनियर विधायकों की ईर्ष्या का पात्र बन गये हैं। जाहिर है कि अब बागी तेवर का समय भी आ गया है। तो नाथ के लिए एक और चुनौती का वक्त शुरू होता है। क्योंकि चार में से महज एक निर्दलीय को मंत्री बनाए जाने की सूरत में तीन चेहरों की नाराजगी भी सामने आना स्वाभाविक है। खासतौर से तब जबकि मामला ऐसी सरकार का है, जो एक भी विधायक की नागवारी उठाने की गलती नहीं कर सकती है। हालांकि नाथ के अनुभव को देखते हुए लगता नहीं है कि सरकार को वे जल्दी ही संकट में आने देंगे। बहुत रास्ते उनके पास बाकी हैं।