चुनावी चख-चख 2
बुलाने पर भी नहीं आ रहे कार्यकर्ता
(दूसरा दिन-12 नवंबर)
सियासत को समझने वाले जानते है कि सियासत कोई फैक्ट्री नहीं है,जो कर्मचारियों के भरोसे चल जाए। चुनावी सियासत तो और टेढी है। चुनावी सियासत की गाडी तो कार्यकर्ताओं के कन्धों पर ही चलती है। अगर गली मोहल्लों तक के कार्यकर्ता प्रचार में नहीं जुटे तो कहानी खत्म हो सकती है। फूल छाप पार्टी के भैयाजी ने अब तक अपने तमाम काम कर्मचारियों के भरोसे ही चलाए है। ये पहला मौका है जब उन्हे कार्यकर्ताओं की जरुरत पडने वाली है।
हाथ जोडने की बजाय आदेश देने की आदत
हांलाकि उनके निजी खेमे वाले ज्यादातर लोगों को कार्यकर्ताओं के हाथ जोडने की बजाय कर्मचारियों को आदेश देने की ही आदत रही है और यही उन्हे पसंद भी है। लेकिन पार्टी वाले कार्यकर्ताओं को लाने पर भी जोर दे रहे है। कार्यकर्ताओं को बुलाने के चक्कर में शहर के तीनों मण्डलों की बैठके बुलाई गई। कार्यकर्ता टालमटोल ना कर पाए इसलिए पैलेस रोड वाले सेठ जी को भी बुलाया गया। सेठ जी भला क्यो मना करते। वे भी बैठकों में पंहुच गए भाषण देने,लेकिन कार्यकर्ता थे कि आए ही नहीं।
नहीं आए कार्यकर्ता
पार्टी वाले ही चुपचाप से बता रहे है कि बूथ पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को पहले ही खबरें भेज दी गई थी कि उनके आने की कोई जरुरत नहीं थी। मण्डलों में तीन साढे तीन सौ कार्यकर्ताओं की बैठकें होना थी,लेकिन आंकडा साठ सत्तर से ज्यादा नहीं हो पाया। लम्बे चौडे ताम झाम के साथ आयोजित की गई इन बैठकों में कार्यकर्ताओं की तादाद चुनाव लडने वाले को चिन्तित करने के लिए पर्याप्त थी। सियासत पर नजर रखने वालों का मानना है कि सेठ खुद तो सक्रीय नजर आएंगे,लेकिन उनकी एक आवाज पर काम में जुट जाने वाले इस बार देखने को कम ही मिलेंगे। अगर यही आलम चलता रहा तो भैयाजी के लिए बडी मुसीबत खडी हो सकती है।
इधर तो और भी ढील पोल
फूल छाप वालों को जहां कार्यकर्ता नहीं मिल रहे है,वहंीं पंजाछाप पार्टी में तो नेता और कार्यकर्ता दोनो ही फिलहाल नदारद है। पंजा छाप वाली बहन जी गिने चुने लोगों के साथ वोटरों के दरवाजे तक जा पा रही है। वैसे भी चुनाव प्रचार के लिए मिला समय इतना कम है कि किसी भी प्रत्याशी का सभी गली मोहल्लों तक पंहुच पांा नामुमकिन ही है। बहन जी की पंजा छाप पार्टी तो वैसे ही कई बरसों से बेहोशी की हालत में है। इनकी ढील पोल जारी है। ये ढील पोल भैयाजी की ढील पोल से कुछ ज्यादा है।
वोट नहीं राजी
टेलीफोन की घण्टी बजाते हुए वोटरों के दर पर पंहुच रहे झुमरु बाबा की स्थिति सबसे विचित्र है। वोटरों को बडे बडे सपने दिखाकर विधायक बने झुमरु बाबा से लोग इतने नाराज है कि बेझिझक अपना नाराजगी का इजाहर कर रहे है। झुमरु बाबा करीब एक महीने पहले से ही गली मोहल्लों की खाक छान रहे हैं लेकिन लोग है कि नरम पडने को राजी ही नहीं है।