किसानों को कर्ज माफीः अर्थव्यवस्था के लिए है जहर के समान, बैंकों को लगेगी भारी चोट
जरूरतमंद किसानों की बढ़ेंगी मुश्किलें
नई दिल्ली,20 दिसम्बर (इ खबरटुडे)। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकार द्वारा किसानों की ऋण माफी की घोषणा के बाद राजस्थान व असम सरकार द्वारा भी इस ओर कदम बढ़ाने से बैंकरों की चिंता बढ़ने लगी है।
क्षेत्र के विश्लेषकों का कहना है कि यदि इसी तरह से दो-तीन साल में कर्ज माफी की घोषणा होती रही, तो फिर देश के किसी भी राज्य का किसान बैंक से लिए गए कर्ज का एक भी पैसा नहीं लौटाएगा।
इससे जहां बैंकों की माली हालत खराब होगी, वहीं एनपीए के डर से बैंक नया लोन देने से डरेंगे। नेशनल आर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स (एनओबीडब्ल्यू) के उपाध्यक्ष अश्वनी राणा ने कहा कि सिर्फ कर्ज माफ करने से किसानों की स्थिति नहीं सुधरेगी, बल्कि अन्य राज्यों के किसानों की तरफ से भी कर्ज माफी की मांग बढ़ेगी।
बीते दिनों मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ द्वारा चुनावी वादा पूरा करने के लिए किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा के बाद असम सरकार ने भी इसी और कदम बढ़ाया। यही नहीं, इसके बाद गुजरात सरकार ने भी बिजली के बिलों को माफ करने की घोषणा करने में देर नहीं की।
किसानों में जा रहा है गलत संदेश
अश्वनी राणा का कहना है कि माफ करने से राजनीतिक लाभ तो मिल जाएगा, लेकिन किसानों की हालत में अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। इससे बाकी प्रदेशों में भी गलत संदेश जाएगा। जो किसान कर्ज वापस करने की स्थिति में हैं, वे भी सोचेंगे कि सरकार आज नहीं तो कल उनका कर्ज भी माफ कर देगी, इसलिए, इसकी किस्त क्यों जमा करें। उनका कहना है कि आखिर किस कीमत पर सरकारें राजनीतिक लाभ का खेल खेल रही हैं।
जरूरतमंद किसानों की बढ़ेंगी मुश्किलें
सार्वजनिक क्षेत्र के एक बड़े बैंक के सेवानिवृत्त अध्यक्ष ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि इससे बैंकों की आर्थिक स्थिति तो खराब होगी ही, इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। जब किसानों के मन में बैठ जाएगा कि दो-तीन या पांच साल में कर्ज माफ होना ही है, तो उसकी सर्विसिंग क्यों की जाए? जब कर्ज की सर्विसिंग नहीं होगी, तो बैंक नया लोन देने में आनाकानी करेंगे। ऐसे में रसूख वाले किसान तो कर्ज लेने में सफल हो जाएंगे, लेकिन जरूरतमंद किसानों पर इसका असर पड़ेगा।