November 7, 2024

अब बदलने लगा है भगोरिया

 बालिकाएं ब्यूटी पार्लर में, तीर कमान थामने वाले हाथों में स्मार्ट फोन
आजाद नगर (भाभरा) के भगोरिया से लौटकर तुषार कोठारी

महुए की महक और मांदल की थाप के साथ रंग बिरंगे परिधानों में सजे युवक युवतियों की टोलियों के मदमाते नृत्य। आदिवासी अंचलों का देश विदेश तक विख्यात भगोरिया मेला। लेकिन अब भगोरिया बदल रहा है। कभी मांदल की थाप पर नाचती झूमती युवाओं की टोलियां पहाडियों से उतर कर पैदल ही भगोरिया हाट तक पंहुचा करती थी। लेकिन अब वही टोलियां दोपहिया और चार पहिया वाहनों पर सवार होकर भगौरिया में पंहुच रही है। मस्ती वही है,लेकिन अंदाज बदलने लगे है। भगौरिया के मेलों में युवक युवतियों के पारंपरिक परिधान भी बदलने लगे है और तीर कमान थाम कर आने वाले युवकों के हाथ में स्मार्ट मोबाइल है।
अलीराजपुर जिले में अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद की जन्मस्थली भाभरा का नाम अब चन्द्रशेखर आजाद नगर हो गया है।  जिला मुख्यालय अलीराजपुर से करीब 35 किमी दूर आजाद नगर के भगौरिया में पंहुचकर ही यह जाना जा सकता है कि आदिवासी अंचलों में बदलाव की बयार कितनी तेजी से चलने लगी है। आजाद नगर (भाभरा) के भगौरिया में इन पंक्तियों के लेखक ने सारा दिन गुजारा।


भगौरिया में उमडने वाली भीड पहले से कहीं ज्यादा है। पंरपराओं और आधुनिकता का अद्भुत मिश्रण भगौरिया में दिखाई देता है। आदिवासी गांवों में शिक्षा का प्रसार हुआ है और नई पीढी के हाथ में मोबाइल आने लगे है। कभी लंगोटी पहनकर तीर कमान ले कर चलने वाले आदिवासी अब बदल गए है। भगौरिया में पारंपरिक परिधान पहने युवा दिखाई तो देते है,लेकिन आधुनिक परिधान वालों की संख्या उनसे कहीं ज्यादा है। युवतियां भी पारंपरिक परिधानों के साथ साथ साडी और सलवार सूट में नजर आती है।
प्रकृति के साथ जीवन जीने वाले वनवासी रंगों के महत्व को अपनी अंतवृत्ति से जानते और समझते है। भगौरिया का सतरंगी संसार उनकी इसी स्वाभाविक अन्तवृत्ति की परिणति है। युवतियां पहले से अपने समूह के रंग तय कर लेती है और पूरा समूह एक ही रंग के एक जैसे परिधानों में भगौरिया में आता है। अलग अलग रंगों से सजे युवतियों के ये समूह भगौरिया को विशेष आकर्षण प्रदान करते है। युवतियों के परिधानों पारंपरिक परिधान के अलावा आधुनिक ढंग की साडियां भी जगह बना चुकी है। ब्यूटी पार्लर का मेकअप,आई ब्रो,फेशियल जैसी बातें अब सिर्फ शहरों की युवतियों की पसन्द नहीं है,बल्कि दूर दराज के नन्हे से गांव में रहने वाली युवती भी मेले में जाने से पहले ब्यूटी पार्लर में जरुर जाकर आती है।
लेकिन इसके विपरित पुरुषों के पारंपरिक परिधान पूरी तरह से नदारद हो चुके है। लंगोटी लगाए आदिवासी का चित्र अब इतिहास की वस्तु हो चुका है। घुटनों तक की धोती भी बिदा ले चुकी है। अब युवक जीन्स टीशर्ट और पेन्ट शर्ट में है,जिनके हाथों में स्मार्ट मोबाइल भी है। युवतियों के हाथों में भी स्मार्ट मोबाइल है। भौगरिया के मेले में फोटो खींचने वालों की दुकानें तो हैं,लेकिन स्मार्ट मोबाइल थामे युवक युवतियां भी भगौरिया को अलग अलग अंदाज में,अलग अलग कोण से अपने मोबाइल कैमरों में कैद करने लगे है।
भगौरिया की बदलती तस्वीर झूले भी बयां करते है। पुराने जमाने के लकडी से बने हाथ से चलने वाले झूलों की कतारें,जहां पारंपरिक भगौरिया की याद दिलाते है,वहीं जेनरेटर की मदद से चल रहे लोहे के बडे जाइन्ट व्हील आधुनिकता के असर को दिखाते है। भीड दोनों ही तरह के झूलों में समान है। यह बताता है कि आदिवासी समुदाय की नई पीढी आधुनिकता की ओर बढ रही है,लेकिन अपनी पुरानी पंरंपराओं को भी जीवित रखना चाहती है।
कभी भगौरिया युवक युवतियों के प्रणय निवेदन और परिणय सम्बन्ध बनाने वाला उत्सव था,लेकिन नई पीढी के लिए प्रणय निवेदन के लिए पूरे साल भर का इंतजार संभव नहीं है। मेले में मस्ती है,लेकिन प्रणय निवेदन तो मेले से पहले ही हो जाता है। पान की दुकानें भी हैं और पान खाए भी जाते है। लेकिन पहले की तरह युवती को पान देना और उसका पान ले लेना जैसी बातें अब खत्म सी होने लगी है। कालेज में पढने वाले युवक युवतियों के लिए इन बातों का कोई खास महत्व नहीं है। टीवी,इन्टरनेट,मोबाइल,वाट्सएप्प और फेसबुक वाली यह पीढी प्रणय निवेदन के लिए पान खिलाने को बाध्य नहीं है। वे पान तो खा रहे हैं,लेकिन मस्ती के लिए।
लेकिन भगौरिया फिर भी अलग है। आम शहरी मेलों की तुलना में यहां जबर्दस्त मस्ती का माहौल है। आदिवासी समुदाय,शहरी समुदाय की अपेक्षा अधिक खुलेपन का समाज है। मेले का मजा लेने के लिए युवक ताडी का सेवन करते हैं,तो युवतियां भी इसमें पीछे नहीं रहती। ताडी के सुरुर का असर मेला क्षेत्र से दूर कस्बे की सड़कों पर दिखाई देता है। ट्रेक्टर में सवार होकर मेले में आई एक टोली में मदमस्त युवती माईक लेकर होली के गीत गा रही है और उसकी सहेलियां उसे प्रोत्साहित भी कर रही है।
बहरहाल भगौरिया में भाग लेने के बाद ही यह जाना जा सकता है कि परंपराएं बदल रही है और आधुनिकता की आंधी का असर भी है। उम्मीद इस बात से लगाई जा सकती है कि आधुनिकता की आंधी में बह रही नई पीढी,पुरातन पंरपराओं से लगाव भी दिखाती है और उनमें बदलाव भी लाती है।
प्रशासन के लिए मेले का सफलता पूर्वक आयोजन बडी चुनौती होता है। आजाद नगर के तहसीलदार संजय वाघमारे ने बताया कि मेले को दोपहर तीन बजे से बन्द कराना शुरु कर दिया जाता है,ताकि मेले में आए लोग शाम से पहले अपने घरों को लौट जाए। दिन भर मदमस्त रहे आदिवासी युवकों में आपसी विवाद की आशंका भी बनी रहती है। मेले की समाप्ति के बाद विवाद होने का खतरा भी अधिक होता है। मेले के दौरान और बाद मेंं भी भारी पुलिस बंदोबस्त किया जाता है ताकि अप्रिय घटनाएं ना हो सके।

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