Raag Ratlami Illegal colony : सौ से ज्यादा अवैध कालोनियां वैध हुई,लेकिन गायब हो गए अवैध कालोनियां बसाने वाले
-तुषार कोठारी
रतलाम। अवैध कालोनियों को वैध करने के मामले में रतलाम पूरे सूबे में अव्वल नम्बर पर है। जिले में 2016 से पहले बनी सौ से ज्यादा अवैध कालोनियां अब वैध हो गई है। इन कालोनियों के रहवासियों को अब शहर सरकार के उन सारे झटकों को झेलने की सुविधा मिलेगी,जो इससे पहले तक सिर्फ वैध कालोनीवासियों को मिला करते थे।
वैध कालोनियों में रहने वाले बाशिन्दे नामान्तरण और नए मकान की अनुमति और नक्शा पास कराने जैसे कामों के लिए शहर सरकार के दफ्तर में जाकर झटके पर झटके खाया करते थे। जबकि अवैध कालोनियों वालों को ये झटके घर बैठे मिल जाया करते थे। इसे यूं भी समझ सकते है कि अवैध कालोनी में मकान बनाने वाले को मकान बनाने के दौरान निर्माण स्थल पर पंहुचने वाले अफसरों और कर्मचारियों को नजराने देना पडते थे,ताकि उसका सामान जब्त ना कर लिया जाए। जबकि वैध कालोनी के रहवासियों को मकान बनाने से पहले ही उसकी परमिशन के लिए शहर सरकार के दफ्तर में पंहुच कर अफसरोंऔर बाबूओं को नजराने देना पडते थे। अवैध कालोनियों के वैध हो जाने से अब उन्हे भी शहर सरकार के दफ्तर में जाकर नजराने पेश करना पडेंगे। नजराने पेश करने की घर पंहुच सुविधा अब समाप्त हो जाएगी। नामान्तरण,अनुमति जैसे सारे काम अब वे शहर सरकार के दफ्तर में जाकर करवा सकेंगे।
जो भी हो,अवैध कालोनियों का वैध हो जाना इन कालोनियों के रहवासियों के लिए बहुत बडी उपलब्धि है। अब कम से कम वो लोग भी किसी समस्या के हल ना होने पर शहर सरकार के दफ्तर के सामने नारेबाजी करने के पात्र हो चुके है।
इस पूरी प्रक्रिया में वो तमाम जमीनों के जादूगर मस्त हो गए है,जिन्होने इन अवैध कालोनियों को बनाया था। हांलाकि सरकार ने अवैध कालोनियों को वैध करने के मामले में पहली शर्त ही ये रखी थी कि जिन जमीनों के जादूगरों ने इन कालोनियों को बनाया है,पहले उनके खिलाफ कार्यवाही होगी उसके बाद में कालोनियों को वैध करने की प्रक्रिया शुरु होगी। लेकिन जादूगर तो जादूगर होते है। जमीनों के इन जादूगरों का कुछ नहीं बिगडा। जिले में 116 कालोनियां वैध हुई,लेकिन इन अवैध कालोनियों को बनाने वाले सौलह जादूगर भी सरकार की चपेट में नहीं आ पाए। तमाम के तमाम गायब हो गए। अब तो ऐसा लगने लगा है कि जैसे ये तमाम अवैध कालोनियां अपने आप तैयार हो गई थी। इन्हे बसाने वाले लोग या तो चांद से आए थे या मंगल ग्रह से,जो कालोनियां बसाने के बाद फिर से अपने चांद या मंगल पर लौट गए।
116 कालोनियों के वैध हो जाने से कहानी खत्म नहीं हो गई है। 2016 के बाद से भी शहर में कई सारी अवैध कालोनियां काटी गई है। जिला इंतजामियां ने इनमें से कई पर कार्यवाही भी की है,लेकिन ये सिलसिला अब भी पूरी तरह रुका नहीं है। अवैध कालोनियों को वैध करना बहुत अच्छा कदम है,लेकिन ये भी जरुरी है कि फिर से अवैध कालोनियां न बसने पाए। इसके लिए अभी भी कडे कदम उठाने की जरुरत है।
बारिश की सडकें….
शहर में नई बनी फोरलेन सड़कों को छोड दें तो बाकी की तमाम सड़कें चीख चीख कर बता रही है कि पिछले दिनों अच्छी बारिश हुई है। अच्छी बारिश के तमाम सबूत इन सड़कों के गड्ढों में गंदे पानी की शक्ल में भरे हुए है। शहर में जिधर जाईए,सड़कों के गड्ढे बारिश की कहानी कहते नजर आ जाएंगे। सड़कों की देख रेख शहर सरकार के जिम्मे है। शहर सरकार को दूसरे ढेरों काम है जिनके दबाव के चलते सड़कों की देखरेख का काम शहर सरकार के अफसर ठीक से कर नहीं पाते। लोगों को भी आदत सी हो गई है। इन गड्ढो में गाडियां कूदाने की। वे भी बडे आराम से इन गड्ढों से उछलते कूदते अपना रास्ता तय कर लेते है।
सूबे की सड़कों की जिम्मेदारी कुछ दूसरे महकमों के पास भी है। सूबे की सडकें और इमारतें बनाने वाले महकमे यानी पीडब्ल्यूडी ने अपने आपको सूरमा साबित करते हुए बाकायदा ये मुनादी करवाई है कि अगर महकमे की किसी सड़क पर गड्ढा नजर आए,तो इसकी खबर फौरन महकमे के अफसरों को दी जाए,ताकि महकमा फौरन उसकी मरम्मत करवा सके।
रतलाम शहर ऐसा अनोखा शहर है जहां शहर के भीतर शहर सरकार की सड़कें तो है ही साथ ही में पीडब्ल्यूडी की सडकें भी मौजूद है। वैसे तो पीड्ब्ल्यूडी की सड़कें आमतौर पर शहर से बाहर दो शहरों या शहर से गांवों को जोडने वाली सडंकें होती थी,लेकिन किसी जमाने में रतलाम शहर के भीतर की कुछ सड़कें भी पीडब्ल्यूडी के हवाले कर दी गई थी। बस इसी कारण से पीडब्ल्यूडी ने शहर में ये मुनादी करवाई है कि अगर सड़क में गड्ढे हों,तो फोरन महमके को इत्तिला दी जाए। ये अलग बात है कि शहर के ज्यादातर बाशिन्दों को इस बात की जानकारी नहीं है कि शहर की कौन सी सड़कें शहर सरकार की है और कौन सी पीडब्ल्यूडी की।
सड़कों की बात हो तो खस्ता हालत सिर्फ शहर के भीतर की सड़कों की ही नहीं है। शहरों को जोडने वाली और शहरों से गांवों को जोडने वाली सडकें भी कई जगह खस्ताहाल हो चुकी है। यहां तक कि नयागांव से लेबड को जोडने वाला फोरलेन हाईवे भी बारिश के असर से कई जगहों पर खस्ताहाल हो चुका है। लेकिन जब इस सडक की बात आती है,तो पीडब्ल्यूडी महकमा भी इससे हाथ झटक लेता है,क्योकि इसके देखरेख की जिम्मेदारी इस महकमे की ना होकर दूसरे महकमे के पास है। कुल मिलाकर बारिश के कारण सडंकें खस्ताहाल हो रही है। लोगों को ये पता नहीं है कि कौन सी सड़क किस महकमे की है। सवाल अपनी जगह मौजूद है कि लोगों को गड्ढो में से कूदते फांदते हुए निकलना है। बारिश खत्म होने का इंतजार करना है क्योकि तभी ये उम्मीद की जा सकती है कि सडकें ठीक होंगी।
पटवारी सबपे भारी……
हफ्ते की शुरुआत में हुई जनसुनवाई में ढोढर के एक किसान ने जिला इंतजामिया के बडे साहब को शिकायत पेश की कि उसकी पुश्तैनी जमीन पटवारी ने किसी दूसरे व्यक्ति को दे दी है। बडे साहब ने फौरन इस शिकायत को तहसीलदार के पास भिजवाया। बडे साहब अपनी ओर से पूरी कोशिश करते है कि लोगों को समस्याएं ना आए,और अगर समस्या आ ही जाए तो उसका निराकरण भी फौरन हो जाए।
लेकिन जमीनों के पूरे महकमे में पटवारी सबपे भारी होता है। पटवारी ही वो सबसे ताकतवर अफसर है जिसकी कलम किसी भी खेत को दुगुना या आधा कर सकती है। पटवारी की कलम से दुगुने या आधे हुए खेत को महकमे का प्रमुख सचिव भी ठीक नहीं कर सकता। इसकी ढेरों मिसालें मौजूद है। पटवारी इतना ताकतवर होता है कि वह संभागायुक्त के आदेश का पालन करने से भी इंकार कर देता है।
एक मामले में जहां संभागायुक्त ने एक व्यक्ति का नामान्तरण करने के आदेश जारी कर दिए.पटवारी ने नामान्तरण करने से साफ इंकार कर दिया। संभागायुक्त से आदेश लेकर आया व्यक्ति बेचारा अभी भी दफ्तरों के चक्कर काट रहा है,लेकिन पटवारी राजी नहीं है इसलिए उसका नाम ही दर्ज नहीं हो पा रहा है। इसीलिए कहते है पटवारी सबपे भारी।