Raag Ratlami Convent School : सत्रह सालों से सरकार में होने के बावजूद कान्वेन्ट के सामने लाचार है भगवाधारी फूलछाप
-तुषार कोठारी
रतलाम। मोदी जी को सत्ता सम्हाले आठ साल हो चुके है,जबकि मामा जी पिछले करीब सत्रह सालों से सूबे की सरकार के मुखिया है। फूल छाप पार्टी को भगवाधारी माना जाता है। लेकिन इतने लम्बे शासन के बावजूद भी प्रदेश में ईसाई मिशनरीज के स्कूलों का दबदबा पहले जैसा ही बना हुआ है। कान्वेन्ट स्कूल चाहे जितनी गडबडियां करें ना तो सरकार और ना प्रशासन उनके खिलाफ कदम उठाने की हिम्मत जुटा पाते है। रतलाम में कान्वेन्ट स्कूल के भीतर अवैध तरीके से चलाए जा रहे लडकियों के होस्टल में दूर दराज उडिसा से नन बनने के लिए आई नन्ही बालिका की संदिग्ध मौत का मामला इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
बेचारे एबीवीपी वाले इस मामले को लगातार जिन्दा रखे हुए है वरना सरकारी अमले ने तो इसको रफा दफा करने की तैयारी तभी शुरु कर दी थी,जब ये वारदात सामने आई थी। अब तो लोग भूलने लगे है कि कान्वेन्ट स्कूल के भीतर उडीसा से आई एक पन्द्रह साल की बालिका की रहस्यमय मौत हो गई थी। कहने को तो ये कहा गया था कि बालिका ने खुद ही फांसी का फन्दा बनाया और उस पर झूल गई। लेकिन बालिका की इस कथित आत्महत्या का कोई कारण सामने नहीं आया।
एबीवीपी के छात्र छात्राओं ने इस घटना को लेकर शुरु से ही सरकारी अमले पर दबाव बना कर रखा था कि इस मामले को रफा दफा ना किया जा सके। शुरुआती जांच में ही सामने आ गया था कि बडे नाम वाले कान्वेन्ट स्कूल में इसाई धर्म का प्रचार करने वाली नने तैयार करने का काम भी अवैधानिक तरीके से किया जा रहा था। इसके लिए कान्वेन्ट वाले स्कूल के भीतर होस्टल चला रहे थे। इस होस्टल के लिए उन्होने कोई सरकारी परमिशन लेना जरुरी नहीं समझा था। क्योंकि वे जानते थे कि सरकारी अमले में बडे पदों पर मौजूद कई सारे अफसर या तो उन्ही के स्कूलों से पढकर अफसर बने है या फिर उनमें से कई के बच्चे उन्ही के स्कूलों में पढ रहे है। कान्वेन्ट वालों को इस बात का भी बडा गुमान है हिन्दुत्व की दुहाई देने वाले काली टोपी वालों में से भी कई अपने बच्चों को बडा आदमी बनाने के चक्कर में कान्वेन्ट में ही पढाते है। कान्वेन्ट वालों का ये गुमान अब तक तो सही ही साबित हुआ है।
बहरहाल स्कूल में अवैध होस्टल चलाने और इसमें देश के दूर दराज इलाकों के गरीब परिवारों के बच्चे खासतौर पर लडकियों को लाकर रखने जैसे गंभीर मामले पर अब तक कुछ नहीं हुआ। ना तो भगवाधारी फूल छाप पार्टी के नेताओं ने इसकी चिन्ता की और ना ही सरकारी अफसरों को इस पर कोई कार्यवाही करने की सूझी।
अवैध होस्टल में नन बनाने के लिए रखी गई पन्द्रह साल की कोई बालिका कथित तौर पर आत्महत्या जैसा कदम खुशी खुशी तो नहीं उठा सकती। ये बात हर कोई जानता है कि आत्महत्या जैसा कदम किसी प्रताडना की अधिकता या किसी अनैतिक दबाव जैसे कारण से ही उठाया जाता है,बिना वजह कोई अपनी खुद की जान नहीं लेता। लेकिन खाकी वर्दी वालों ने इस घटना को भी एक सामान्य मर्ग जांच की तरह मानकर नस्तीबद्ध करने की तैयारी कर रखी है।
एबीवीपी वालों ने जब दबाव बनाया तो वर्दी वालों के पुराने कप्तान ने एक जांच टीम बनाने और दो सप्ताह में जांच पूरी करने का आश्वासन दिया था। दो हफ्ते ना जाने कब गुजर गए। ना तो जांच आगे बढी और ना कोई नतीजा सामने आया। जांच के नाम पर केवल बाल कल्याण समिति द्वारा की गई जांच के तथ्य सामने आए,जिसने साफ किया कि कान्वेन्ट द्वारा अवैध तरीके से होस्टल चलाया जा रहा था। इस जांच में इस बात के संकेत भी मिले थे कि बच्चियों पर नन बनने के लिए अनुचित दबाव डाला जाता होगा और यही वजह रही होगी कि एक पन्द्रह साल की बच्ची को खुद की जान लेने जैसा कदम उठाना पडा होगा। लेकिन चूंकि उस समिति को मृत्यु की जांच के अधिकार नहीं थे,इसलिए उस समिति ने केवल संकेत दिए थे।
लेकिन कान्वेन्ट वालों का जलवा देखिए कि एबीवीपी के धरने प्रदर्शन और सीडब्ल्यूसी की जांच के बावजूद कोई उनका बाल तक बांका नही कर पाया। एबीवीपी वालों ने इस मामले को फिर से चर्चाओं में लाने के लिए बीते हफ्ते फिर से एक कोशिश की। कई सारे छात्र छात्राएं इस मामले की जांच की मांग को लेकर जिला इंतजामिया के बडे साहब को ज्ञापन देने पंहुचे। दो से तीन घण्टों तक नारेबाजी और प्रदर्शन करने के बावजूद बडे साहब ज्ञापन लेने नहीं आए। इस प्रदर्शन में दो छात्राएं बेहोश तक हो गई और आखिरकार प्रदर्शनकारियों को निराश होकर लौट जाना पडा।
इतना सबकुछ हो गया लेकिन कान्वेन्ट का जलवा जस का तस है। अफसरों की हैसियत नहीं है कि उनके खिलाफ कोई कदम उठा सके। भगवाधारी पार्टी के नेता और काली टोपी वाले सरकार में तो है,लेकिन वे भी लाचार ही नजर आ रहे है। वैसे बिना ज्ञापन दिए लौटे एबीवीपी वालों ने कहा था कि वे कुछ दिन इंतजार करेंगे वरना पूरे जिले के छात्रों को सडकों पर उतारेंगे। जब फिर से छात्र सड़कों पर आएंगे तब पता चलेगा कि भगवाधारी पार्टी,काली टोपी वाले और सरकारी अमले की हिम्मत में कोई इजाफा हुआ या नहीं?
कहानी स्विमिंग पुल की…..
कोरोना के कहर के कारण बन्द हुआ सरकारी तरणताल अब चालू किया जा रहा है। लेकिन इसके चालू होने की कहानी दिलचस्प है। शहर का एक होनहार दिव्यांग बालक बिना हाथों के तैराकी में करिश्मा करता जा रहा है। कई सारे रेकार्ड तोडने के बाद अब ये होनहार दिव्यांग वालक ओलम्पिक में भी शहर का नाम चमकाने की तैयारी में है। शहर का तरणताल बन्द था इसलिए बालक पडोस के शहर में जाकर तैराकी की तैयारी कर रहा था। पडोस के शहर के लिए ये नाम चमकाने का अच्छा मौका था,इसलिए उन्होने कहा कि ओलम्पिक में उसे रतलाम की बजाय इसी शहर से भेजा जाएगा। लेकिन बालक और उसके प्रशिक्षक को ये बात गवारा नहीं थी,इसलिए उन्होने रतलाम आकर बडे साहब से तरणताल शुरु करवाने की इल्तिजा की। बडे साहब ने फौरन शहर सरकार के साहब को हुक्म जारी कर दिया कि तरणताल शुरु किया जाए। करीब एक हफ्ता गुजर गया। फिर अचानक पंजा पार्टी के भैया ने एक बयान जारी करके तरणताल शुरु करने की मांग उठा दी। जैसे ही पंजा पार्टी की मांग सामने आई,फूल छाप वाले सक्रिय हुए और फिर फूलछाप की ओर से बडे साहब को तरणताल शुरु करने को कहा गया। फूलछाप वालों के कहने के बाद बडे साहब ने फिर से शहर सरकार वाले साहब को हुक्म दिया और तब कहीं जाकर तरणताल शुरु होने की खबरें चली। इस कहानी में जो राज छुपा है,उसे समझना ज्यादा कठिन नहीं है।