तकनीकी विकास के साथ नैतिक मूल्यों का बचे रहना आवश्यक है- साहित्यकार विष्णु नागर
उज्जैन,15 नवंबर (इ खबरटुडे/ब्रजेश परमार)। जीवन में बहुत तेजी है। हम 5जी के युग में जी रहे हैं। यद्यपि जब गति अधिक नहीं थी तब भी समाज में महापुरुष बने, क्योंकि तब नैतिकता की गति प्रबल थी। समाज को बनाने में तकनीक के साथ नैतिक मूल्यों का बचे रहना बहुत आवश्यक है। गति के साथ यदि धैर्य नहीं है तो वह गति विनाशक बन जाती है।
उक्त विचार प्रख्यात साहित्यकार एवं कादंबिनी के पूर्व संपादक विष्णु नागर ने भारतीय ज्ञानपीठ में आयोजित पद्मभूषण डॉ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ स्मृति अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला के दूसरे दिन प्रमुख वक्ता के रूप में ‘तकनीकी बदलाव और हमारे नैतिक मूल्य’ विषय पर व्यक्त किए। श्री नागर ने कहा धैर्य ही तो है जो तेज गति के दौर में भी हमें हमसे कमजोर या हमारे आसपास के लोगों के दुख और दर्द को महसूस करना सिखाता है। आगे बढ़ते हुए पीछे की और ना देखना यह ठीक बात नहीं है। आज बचपन से ही करोड़पति बनने की इच्छाएं प्रबल हो जाती है। जल्दी कमाकर जल्दी रिटायर्ड होने की योजनाएं बनती है। ऐसा लगता है मानो हर कोई स्वयं के स्वार्थ का हित साधने में लगा है। सामाजिक निर्माण के प्रति दायित्व का अभाव है।
तकनीकी विकास के दौर में युवा पीढ़ी को नैतिकता का बोध करवाना आवश्यक है तभी हमारा समग्र विकास संभव होगा। समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद एवं पूर्व संयुक्त संचालक शिक्षा बृजकिशोर शर्मा ने कहा कि जीवन पथ पर चलते जाना है, लेकिन गति बहुत तेज हो तो पथ और पाथेय दोनों पीछे छूट जाते हैं। ध्यान रहे कि जो छूट रहा है वह ज्यादा कीमती है । हमारी साइबर सुविधा विकसित हुई तो क्राइम भी उतने ही बढ़ गए हैं, हम परमाणु संपन्न हुए तो युद्ध का खतरा भी उतना ही बढ़ गया है। तकनीक ने हमें सुख तो दिया किंतु आनंद नहीं दिया। तकनीकी विकास के बाद भी यदि हम कष्ट में है तो यह हमारी मानवीय कमजोरी है। स्पर्धा जब हौड़ बन जाती है तो यह विकास का सूचक नहीं है।