हर फसल पर बीमे के चालीस करोड रु.चुकाते है रतलाम के किसान,फसल बिगडने पर मिलता नहीं एक भी रुपया
रतलाम,9 जुलाई (इ खबरटुडे)। बडे जोर शोर से देश में लागू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना सिर्फ बीमा कंपनियों के लिए फायदेमन्द साबित हो रही है। किसानों को इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा है। विभिन्न बीमा कंपनियां किसानों और सरकार से अरबों रुपए की राशि फसल बीमा के प्रीमीयम के रुप में ले चुकी है,लेकिन जब बीमा राशि चुकाने की बात आती है,बीमा कंपनियां किसानों को एक रुपए का भी भुगतान नहीं करती। किसानों का सबसे बडा दुर्भाग्य यह है कि बीमा कंपनियों की मनमानी की शिकायतों पर कोई सुनवाई करने तक को राजी नहीं है। यहां तक कि बहुप्रचारित सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत किए जाने के बावजूद भी किसानों को फसल बीमा की राशि नहीं मिल पा रही है।
क्या है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की घोषणा की थी,तब किसानों को लगा था कि अब उनकी फसलें खराब होने की समस्या पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। इसी खुशफहमी के तहत किसान फसल बीमा के लिए अपने बैंक खातों से प्रीमीयम राशि के कटने पर खुश थे। सरकार की योजना के मुताबिक फसलों के बीमे के लिए प्रीमीयम राशि का दो प्रतिशत किसानों के खाते से जमा किया जाता है,जबकि चार चार प्रतिशत राशि केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा जमा कराई जाती है। अकेले रतलाम जिले के किसानों द्वारा खरीफ और रबी की फसलों में आठ आठ करोड रुपए की प्रीमीयम राशि जमा कराई जा रही है। प्रत्येक फसल पर जहां किसानों द्वारा आठ करोड रु. प्रीमीयम के रुप में जमा कराए जा रहे हैं,वहीं केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा इस पर बत्तीस करोड रुपए प्रीमीयम के रुप में बीमा कंपनी को दिए जा रहे हैं। इस तरह प्रत्येक फसल पर बीमा कंपनी को बिना किसी मेहनत के चालीस करोड रुपए की राशि प्रीमीयम के रुप में प्राप्त हो रही है। शासन ने प्रत्येक जिले के लिए अलग अलग बीमा कंपनियों को जिम्मेदारी दी है। रतलाम जिले की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए आईसीआईसीआई-लोम्बार्ड को अधिकृत किया गया है। अकेले रतलाम जिले की फसल बीमा की प्रीमीयम चालीस करोड रुपए है। यदि प्रदेश के सभी जिलों के प्रीमीयम की गणना की जाए तो यह राशि अरबों में पंहुच जाएगी।
सिर्फ प्रीमीयम की वसूली,दावों का भुगतान नहीं
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा राशि का दावा दो तरह से किया जा सकता है। सामूहिक रुप से और व्यक्तिगत रुप से। प्रदेश के अधिकांश जिलों में बीमा कंपनियों ने पिछले तीन सीजन में एक भी व्यक्तिगत फसल बीमा के दावे का भुगतान नहीं किया है। बीमा कंपनियों का पूरा ध्यान बीमे की करोडों रुपए की प्रीमीयम राशि वसूलने पर लगा रहता है। लेकिन यदि किसी किसान द्वारा फसल खराब होने पर बीमा राशि का दावा प्रस्तुत किया जाता है,तो बीमा कंपनी इस पर कतई ध्यान नहीं देती। बीमा कंपनियां प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को सिर्फ वसूली की योजना मानती है। बीमा कपंनियों का मानना है कि फसल बीमा के दावों का भुगतान करना जरुरी नहीं है। हांलाकि योजना के नियमों के मुताबिक यदि किसी किसान द्वारा फसल खराब होने पर बीमे का क्लैम किया जाता है तो चालीस दिनों के भीतर उसके खाते में बीमा राशि जमा हो जाना चाहिए। पूरे प्रदेश में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है,जिसमें किसी किसान को बीमे की राशि का भुगतान किया गया हो।
बीमा कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं
फसल बीमा योजना के तहत व्यक्तिगत दावा करने वाले किसानों को बीमे का लाभ नहीं मिल रहा है। दूसरी ओर बीमा कंपनियों की शिकायत सुनने को कोई तैयार नहीं है। यहां तक कि सीएम हेल्पलाईन पर शिकायत किए जाने के बावजूद बीमा कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। ग्राम धामनोद के प्रगतिशील कृषक डॉ.दिनेश राव ने वर्ष 2016 के खरीफ सीजन में सोयाबीन की फसल खराब होने पर फसल बीमा के लिए दावा किया था। वर्ष 2016 के खरीफ सीजन में डॉ.राव ने 36 बीघा भूमि में सोयाबीन की फसल बोई थी,जो कि अतिवृष्टि के कारण पूरी तरह नष्ट हो गई थी। डॉ.राव ने 15 सितम्बर 2016 को इस बात की अधिकारिक सूचना कैनरा बैंक के माध्यम से बीमा कंपनी आईसीआईसीआई लोम्बार्ड को दर्ज कराई थी। डॉ.राव ने बीमा कंपनी के टोल फ्री नम्बर पर भी फसल खराब होने की सूचना दर्ज कराई थी। नियमानुसार सूचना दिए जाने के 72 घण्टों के भीतर फसल का सर्वे कराया जाना चाहिए,किन्तु बीमा कंपनी ने कई बार सम्पर्क करने के बाद प्रथम सूचना के 14 दिनों के बाद 29 सितम्बर को डॉ.राव की फसल का सर्वे किया। नियमानुसार, सर्वे के चालीस दिनों के भीतर बीमा राशि का भुगतान किया जाना चाहिए। लेकिन बीमा कंपनी ने भुगतान की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। बीमा कंपनी के अधिकारियों,बैंक अधिकारियों और यहां तक कि कृषि विभाग के अनेक आला अधिकारियों से सम्पर्क के बावजूद डॉ.राव को फसल बीमा का भुगतान नहीं किया गया।
सीएम हेल्प लाईन भी फर्जी
थक हार कर डॉ. राव ने इस बात की शिकायत सीएम हेल्प लाईन पर दर्ज कराई। डॉ राव ने सीएम हेल्प लाइन की बडी तारीफें सुनी थी। उन्हे उम्मीद थी कि सीएम हेल्पलाईन पर शिकायत दर्ज कराने के बाद इसका निराकरण हो ही जाएगा। लेकिन सीएम हेल्पलाईन भी इस मामले में फर्जी ही साबित हुई। सीएम हेल्पलाईन पर तो अधिकारियों ने बडे ही हास्यास्पद तथ्य देते हुए इस शिकायत को नस्तीबध्द कर दिया। डॉ.राव की शिकायत बीमा कंपनी आईसीआईसीआई लोम्बार्ड के विरुध्द थी। सीएम हेल्पलाईन के अधिकारियों ने बीमा कंपनी को तो छुआ तक नहीं। उन्होने यह शिकायत निराकरण के लिए कैनरा बैंक को भेज दी,जबकि बैंक का इस शिकायत से कोई लेना देना तक नहीं था। यही नहीं,शिकायत के निराकरण में सीएम हेल्पलाइन के पोर्टल पर एल-1 से लेकर एल-3 स्तर के अधिकारी यह कहते रहे कि शिकायत गलत है,बीमा कंपनी द्वारा एक भी दावे का निराकरण नहीं किया गया। सीएम हेल्पलाईन पर दिए गए विवरण से स्पष्ट प्रतीत होता है कि शिकायतों के निराकरणकर्ता अधिकारी शिकायत को पढते तक नहीं है। वे केवल शिकायत को एक स्तर से दूसरे स्तर पर भेजने की जुगत में लगे रहते है।
इनका कहना है
जिले के अनेक किसानों ने फसलें खराब होने पर बीमा कंपनी को दावा किया है,लेकिन अब तक एक भी किसान को बीमा राशि प्रदान किए जाने की कोई जानकारी नहीं है। कृषि विभाग द्वारा कई बार बीमा कंपनी को किसानों की बीमा राशि के भुगतान के लिए पत्र लिखे गए है,लेकिन बीमा कंपनी की ओर से कोई जवाव नहीं दिया गया है।
-केसी खपेडिया
कृषि उपसंचालक रतलाम।