राग-रतलामी/ पंजा पार्टी में एक अनार और कई सौ बीमार
-तुषार कोठारी
रतलाम। पंजा पार्टी की सरकार बनी,तो अब पद के अनार कम है,तो अनार की चाहत रखने वाले बीमारों की तादाद बढती जा रही है। कोई भी पंजे वाला पीछे नहीं रहना चाहता। पंजा पार्टी के सूबे के मुखिया ने किसानों का कर्जा माफ करने के लिए पूरे प्रदेश में रतलाम को चुना। पंजा पार्टी के नेताओं के लिए यह मौका बेहद खास था।ये अलग बात है कि मुख्यमंत्री ने कर्जा माफी के लिए रतलाम को छोडकर नामली को चुन लिया। जिले भर के छोटे बडे नेता नामली की ओर नजरें गडा कर बैठ गए. हर कोई चाहता था कि किसी तरह कमलनाथ की नजरों में आ जाए,ताकि पदों की बंदरबांट में अपना हिस्सा सुरक्षित हो सके।
इसी का नतीजा था कि जो मंच मुख्यमंत्री के लिए बनाया गया था,उस पर मुख्यमंत्री को ही खडे रहने के लिए जगह कम पड रही थी। मंच पर ऐसी धक्कामुक्की इससे पहले कभी देखी नहीं गई थी। हर नेता किसी ना किसी तरह से कमलनाथ के सामने आना चाहता था,ताकि उसे भी कुछ ना कुछ मिल जाए। मंच पर मची धक्कामुक्की के बीच ही बेचारे मुख्यमंत्री को भाषण देना पडा। जिस मंच पर खडे रहने तक की जगह नहीं हो,वहां बेचारा नेता क्या और कैसे बोलेगा? लेकिन कमलनाथ की हिम्मत देखिए कि उन्होने इसके बावजूद भी भाषण दिया और पूरे साढे नौ मिनट तक दिया। जिले भर से किसानों को भर भर कर लाया गया था,ताकि वे मुख्यमंत्री का भाषण सुन कर अगले चुनावों में पंजा पार्टी के साथ जुडे,लेकिन साढे नौ मिनट का भाषण ऐसा कोई असर नहीं डाल पाया।
पंजा पार्टी के नेताओं की हालत भूख से बेहाल उस आदमी जैसी हो गई है,जिसे कई दिनों भूखा रहना के बाद अचानक पकवानों से भरी हुई थाली खाने को मिल जाती है। ऐसी स्थिति में भूखा आदमी खाता कम है,ढोलता ज्यादा है। पंजा पार्टी के नेताओं की भी यही हालत है। हर नेता,कमाई की जुगाड ढूंढ रहा है। तबादला हो या सप्लाय,हर नेता हर कहीं अपनी टांग फंसाने को बेताब है।
पंजा पार्टी के नेताओं को अब पद दिखाई दे रहे है। किसी की नजर विकास प्राधिकरण पर है,तो किसी की सहकारी बैंक पर। कुछ छुटभैय्ये तो कालजों की जनभागीदारी समितियों में जाने भर से खुश होने को तैयार है। लेकिन समस्या दूसरी है। पदों की संख्या कम है और इन्हे चाहने वालों की तादाद बहुत बडी। झूमरु दादा से लेकर गली के छोटे नेता तक हर कोई उम्मीद से है।
इन उम्मीदों में पहला खतरा तो लोकसभा चुनाव की आचार संहिता का है। अगर आचार संहिता लग गई,तो सबके सपने तीन चार महीनों के लिए मुल्तवी हो जाएगें। जो समझदार है,उन्हे लग रहा है कि इस वक्त सपने संजोना ठीक नहीं है.क्योंकि भोपाल में बैठे नेता चुनाव के पहले नाराजगी मोल लेने को तैयार नहीं होंगे,इसलिए पदों की बंदरबांट चुनाव के बाद ही होगी। देखिए.. क्या होता है…?
महंगा पडा भोपाल जाना
जिला पंचायत अध्यक्ष को भोपाल जाना मंहगा पड गया। फूल छाप पार्टी से चुनाव जीते जिला पंचायत अध्यक्ष ने विधानसभा चुनाव में टिकट मांगा था,लेकिन फूल छाप ने उन्हे टिकट नहीं दिया था। हांलाकि इस बात से उन्हे कोई खास नाराजगी भी नहीं थी। लेकिन सोशल मीडीया पर सक्रिय पंजा पार्टी के वीरों ने जिप अध्यक्ष के भोपाल जाने का खूब फायदा उठाया,और उन्हे पंजा पार्टी में ही भर्ती करवा दिया। बेचारे जिप अध्यक्ष को परमेश्वर याद आ गए। वो सफाई दे देकर परेशान हो गए कि वो फूल छाप में ही है,पंजा पार्टी से उनका कोई लेना देना नहीं है। असल में तो वे,भोपाल में जिला पंचायत अध्यक्षों के सम्मेलन में शामिल होने के लिए गए थे। वहां मंच पर मुख्यमंत्री के साथ उनके फोटो भी खींचे गए। बस फिर क्या था सोशल मीडीया के पंजा पार्टी वीरों ने उनके फोटो को पंजा पार्टी में प्रवेश का फोटो बना दिया। हांलाकि ये शरारत सिर्फ उन्ही के साथ नहीं हुई बल्कि कई सारे जिला पंचायत अध्यक्षों के पंजा पार्टी में शामिल होने की खबरें चलने लगी। रात होते होते मामला साफ हुआ कि पंजा पार्टी में कोई नहीं गया।
चर्चाओं में टीसी
रेलवे में टीसी बहुत छोटे स्तर का कर्मचारी होता है और जीएम बहुत उच्च स्तर का। आमतौर पर रेलवे के महाप्रबन्धक के सामने टीसी जैसे निचले क्रम के कर्मचारी का जिक्र तक नहीं होता। लेकिन हाल के दिनों में रतलाम के एक नेतानुमा टीसी ने इतनी चर्चाएं हासिल कर डाली है कि उसका जिक्र सीधे महाप्रबन्धक के सामने किया गया। इन्दौर के एक हाईप्रोफाइल मर्डर की कहानियों में इस रतलामी टीसी के लक्जरी वाहन की चर्चाएं अखबारों और टीवी पर छाई हुई है। खबरचियों पर भी इसका खासा असर पडा और जब महाप्रबन्धक रतलाम दौरे पर आए,तो एक खबरची ने उनसे सीधे टीसी के बारे में सवाल पूछ लिया। सवाल सुनकर जीएम भी हैरान थे और दूसरे अफसर भी। जीएम के सामने काबिले जिक्र इस टीसी के बारे में रेलवे के अफसर क्या करेंगे अब इसी पर रेलवे वालों की नजरें लगी हुई है।