राग-रतलामी/धोखाधडी का शिकार बडा आदमी हो तो होगी तुरंत कार्यवाही, मामूली हो तो कोई सुनवाई नहीं
-तुषार कोठारी
रतलाम। ऐसा लगता है जैसे ये शहर धोखेबाजों का शहर बन गया हो। हफ्ते भर में धोखाधडी की कई सारी घटनाएं सामने आ गई। ज्यादातर मामले जमीनों से जुडे है। जमीनों की खरीद फरोख्त के मामले में लाखों की धोखाधडी करने की घटनाएं देखने को मिल रही है। किसी ने पहले से बेची हुई जमीन,दूसरे को बेच दी,तो किसी ने जमीन खरीद कर कालोनी बनाने के नाम पर करोडों रुपए हडप लिए।
वैसे जमीनों के खेल में धोखाधडी का मेल शहर में पुराना है। जमीनों के जादूगरों ने शहर के कई लोगों को चूना लगाया है। लेकिन वो सारे मामले मामूली लोगों के थे। अपने घर की चाहत रखने वाले,जमीनों के जादूगरों की जादूगरी का शिकार बनते रहे हैं। इसी का नतीजा है कि शहर में ढेरों अवैध कालोनियां उग चुकी है,जहां ना तो नालियां है और ना रास्ते। जिसकी जहां इच्छा हुई मकान खडा कर दिया। कालोनी बनाने वाले कालोनाईजरों ने ना तो बगीचों को सलामत छोडा ना सडक़ों को। किसी ने बगीचे में प्लाट काट दिए,तो किसी ने सरकारी सडक़ पर ही प्लाट बेच दिया। प्लाट खरीदने वाला जब मौके पर पंहुच कर प्लाट तलाश करता है,तो उसे पता चलता है कि उसके प्लाट की जगह तो सरकारी सडक़ है। करोडों में खेलने वाले जमीनों के जादूगरों को हजारों की धोखाधडी करने में भी कोई संकोच नहीं होता।
शहर में ऐसे लोगों की तादाद हजारों में है,जो इस तरह की धोखाधडी के शिकार हुए है। लेकिन उन मामलों में कभी कोई कार्यवाही नहीं हुई। लेकिन जब बात बडे लोगों की होती है,तो सबकुछ होता है। प्रकरण भी दर्ज होते है और खबरें भी बनती है और कार्यवाही भी होती है। लेकिन अपने घर का सपना देखने के चक्कर में धोखाधडी का शिकार बने आम लोगों का दर्द कौन दूर करेगा? राजनीतिक फायदे के लिए अवैध कालोनियों को तो वैध कर दिया जाएगा,लेकिन अवैध कालोनी बनाने वाले असल दोषियों पर कभी कोई कार्यवाही होगी या नहीं? ये बडा सवाल है।
किसे मिलेगी जिले की कमान
फूल छाप पार्टी में अब जिले की कमान सौंपने के लिए नेता की तलाश का दौर चल रहा है। दांव लगाकर बैठे नेताओं के दिल की धडकनें बढने लगी है। फूल छाप पार्टी के बडे नेता राजधानी में बैठकर रायशुमारी के लिफाफों को खोलेंगे। इन लिफाफों में किसका नाम खुलेगा ये कोई नहीं जानता। वैसे फूल छाप वाले जिले के नेताओं को इस नौटंकी में ज्यादा भरोसा नहीं है। उनका कहना है कि ये सारी कवायद कार्यकर्ताओं को भरमाने के लिए की जाती है। होता वही है,जो बडे नेता चाहते है। लिफाफों में चाहे जिसका नाम निकले,कमान उसी को सौंपी जाती है,जिसका आका मजबूत हो। जिले की कमान भी उसी को मिलेगी,जिसका आका दमदार होगा। असल मुकाबला तो आला नेताओं के बीच है। जो दावेदार है,वो तो मोहरे है। जिले में भी जंग रतलाम और जावरा के बीच है। फूल छाप वाले नेताओं की नजरें इसी पर टिकी है कि ये जंग कौन जीतेगा? जंग का नतीजा अब जल्दी ही सामने आएगा।