भक्तों के लिए खुले केदारनाथ के कपाट, इस दीप के दर्शन का रहता है श्रद्धालुओं को इंतजार
केदारनाथ,09 मई(इ खबरटुडे)। भोले बाबा के जयकारों के साथ आज 6 महीने के लंबे इंतजार के बाद बाबा केदारनाथ धाम के कपाट आज खुल गए हैं। आज सुबह पूजापाठ की संपूर्ण प्रक्रिया को सम्पन्न करने के बाद मंदिर के कपाट भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिए गए। इससे पहले 6 मई को कपाट खुलने की प्रक्रिया के अंतर्गत शीतकालीन गद्दीस्थल से भगवान श्री केदारनाथजी की चल विग्रह पंचमुखी मूर्ति ने प्रस्थान किया था। चल विग्रह मूर्ति को विधिवत स्नान कराया गया था। स्नान कराने के बाद मूर्ति को डोली में विराजमान करके फूल मालाओं से सजाया गया था। इसके बाद पुजारियों द्वारा केदार लिंग की विधिवत पूजा-अर्चना की गई। तत्पश्चात हर-हर महादेव और जय केदार के जयकारों के साथ डोली ने प्रस्थान किया। 7 मई को डोली गौरीकुंड में विश्राम करते हुए 8 मई को केदारनाथ पहुंची। आज 9 मई को ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर के कपाट खोल दिए गए।
दिव्यज्योति के दर्शन का भक्तों को इंतजार
बदरीनाथ और केदारनाथ के बारे में कथा है कि शीतकाल में जब मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं तो मंदिर में पूजा की जिम्मेदारी देवताओं की रहती है यानी इस समय देवतागण भगवान बदरीनाथ और केदारनाथ की पूजा करते हैं। ऐसी भी बातें कई बार सुनने में आती है कि मंदिर के बंद कपाट के अंदर से घंटियों की आवाजें सुनाई देती हैं। शीतकाल में मंदिर के कपाट बंद होने के समय अखंड दीप को जलाकर रख दिया जाता है। ग्रीष्म ऋतु आने पर जब कपाट खुलता है तो वह ज्योति जलती हुई मिलती है। इस दिव्यज्योति का दर्शन बहुत ही पुण्यदायी माना जाता है। मंदिर के कपाट खुलने पर इस दिव्यज्योति के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं।
अमृत के समान है यहां का जल
केदारनाथ मंदिर के पीछे स्थित इस कुंड में केदारनाथ के अभिषेक का जल रहता है। कहा जाता है कि यह जल अमृत तुल्य है। यही वजह है कि यहां आने वाले श्रद्धालु इस अमृतमयी जल को पीते हैं। मान्यता है यह भी है कि अमृत कुंड के जल से लोगों की त्वचा संबंधी बीमारियां भी दूर हो जाती हैं। सनातन धर्म में अमृत कुंड के जल को गंगा जल जैसा ही पावन बताया गया है।
केदारनाथ से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वासुकी ताल की महिमा अलौकिक है। स्कंद पुराण में कहा गया है कि श्रावण मास की पूर्णमासी के दिन इस ताल में मणि युक्त वासुकी नाग के दर्शन होते हैं। साथ ही यह भी कथा मिलती है कि रक्षाबंधन के दिन भगवान विष्णु ने इस ताल में स्नान किया था। इस वजह से भी इसका नाम वासुकी ताल पड़ा। इसके अलावा सावन के महीने में शिव जी को चढ़ाया जाने वाला अद्भुत ब्रह्मकमल भी यही खिलता है।