आजादी के बाद गलत दिशा में चला देश
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक पराग अभ्यंकर ने कहा
रतलाम,4 अक्टूबर (इ खबरटुडे)। आजादी के समय देश के जो नेता थे,उन्हे भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की संकल्पना ही नहीं थी। नेहरु जी जैसे नेताओं को प्राचीन भारत के गौरवशाली इतिहास की जानकारी नहीं थी। इसी वजह से आजादी के बाद देश गलत मार्ग पर चल पडा। आजादी के बाद की नई पीढी में देशभक्ति के भाव जगाने के कोई प्रयास ही नहीं किए गए। स्वतंत्रता के लिए किए गए बलिदानों औक संघर्षों का इतिहास भी बच्चों को सही ढंग से नहीं पढाया गया।
उक्त प्रभावशाली उद्गार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक पराग अभ्यंकर ने प्रेस क्लब भवन में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। श्री अभ्यंकर,पं.श्यामजी कृष्ण वर्मा की जयन्ती पर आयोजित कार्यक्रम में शहीदों के सपनों का भारत विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्षों और बलिदानों का वर्णन करते हुए श्री अभ्यंकर ने कहा कि भारत पर जब जब विदेशी आक्रान्ताओं ने हमले किए और जब जब उनसे भारतीयों ने संघर्ष किए,वे सभी संघर्ष स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्ष है। यह कहना कि केवल १९४७ के पूर्व हुआ आन्दोलन स्वतंत्रता संग्राम है,यह उचित नहीं। श्री अभ्यंकर ने कहा कि चाणक्य और चन्द्रगुप्त द्वारा सिकन्दर और सैल्यूकस के विरुध्द किया गया संघर्ष भी स्वतंत्रता संग्राम था। इसी तरह महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान का संघर्ष भी स्वतंत्रता संग्राम था।
भारतीय इतिहास का विहंगावलोकन करते हुए श्री अभ्यंकर ने कहा कि जब इन सभी महापुरुषों को स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी मानेंगे,तब उनके सपनों के भारत के बारे में चर्चा कर सकेंगे। उन्होने भारत विभाजन की घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि चन्द्रशेखर आजाद और भगतसिंह जैसे क्रान्तिकारियों ने जो बलिदान दिए थे,वे क्या कटे फटे देश के लिए दिए थे। आज वे स्वर्ग से भारत को देखते होंगे तो पहचान भी नहीं पाते होंगे कि यह वही भारत है जिसके लिए उन्होने अपने जीवन का बलिदान कर दिया।
इन अमर शहीदों से अखण्ड भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की आहूतियां दी थी। श्री अभ्यंकर ने कहा कि जिन नेताओं ने भारत का विभाजन स्वीकार किया था वे बूढे हो गए थे और संघर्षों से थक चुके थे। इसी वजह से उन्होने विभाजन को स्वीकार कर लिया। आज बच्चों को जिस स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास पढाया जा रहा है,वह इतने की कालखण्ड का है। यहां तक कि १८५७ के स्वातंत्र्य समर को भी अत्यन्त संक्षिप्त रुप से पढाया जा रहा है। जब नई पीढी देश के लिए किए गए बलिदानों की प्रेरणादायी कथाएं नहीं पढेंगी तो देशभक्ति के भाव कैसे पैदा होंगे।
श्री अभ्यंकर ने कहा कि देश की आजादी के बाद के नेतृत्व को भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की संकल्पना ही नहीं थी। नेहरु जी जैसे नेता वही जानते थे जो अंग्रेजों ने उन्हे पढाया था। इसी का परिणाम यह हुआ कि आजादी के बाद देश दिशाहीन हो गया। भारत के शहीदों के सपनों का भारत तभी बन सकता है,जब वह अखण्ड स्वरुप को प्राप्त हो। तभी हम विश्व में भारत को गौरवपूर्ण स्थान दिला सकेंगे। उन्होने कहा कि देश की जनता तो दमदार है लेकिन नेतृत्व कमजोर है। जब तक दृढ नेतृत्व नहीं होगा,देश के सैनिकों के सिर काट कर भेजे जाते रहेंगे और इतने वीभत्स काण्ड के बाद भी हमारे नेता इस पर प्रतिक्रिया नहीं कर पाएंगे।
प्रारंभ में शिक्षाविद् मुरलीधर चांदनीवाला ने विषय प्रवर्तन किया। समारोह में उपस्थित महापौर शैलेन्द्र डागा व सुभाष जैन ने भी अपने विचार व्यक्त किए। पं.बाबूलाल जोशी ने संस्था परिचय दिया। कार्यक्रम में बडी संख्या में बुध्दिजीवी श्रोता उपस्थित थे।