श्रावण माह के पहले सोमवार पर शंकर मंदिरों में हर-हर महादेव की गूंज
रतलाम,10जुलाई(इ खबरटुडे)।नगर व गांवों के भगवान भोलेनाथ के मंदिरों में प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी श्रावण माह की शुरुआत के पहले ही तैयारी शुरू हो गई थी, जो करीब पूरी हो चुकी है। आज श्रावण माह का पहला सोमवार है। इसके चलते सभी शिव मंदिरों में दर्शन व पूजा-अर्चना करने आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिली। मंदिरों में आकर्षक सजावट भी की गई है। सुबह से ही शहर के मदिर व अन्य शिव मंदिरो मे भक्तो ने शिव जी का जलाभिषेक और दूध चढ़ाकर पूजा अर्चना की ।
भगवान शिव को भांग, धतूरे का भोग इसके अतिरिक्तअनेक घरों में शिव पार्वती की रुद्राभिषेक कर पूजा-अर्चना की जाएगी। जो पूरे माह निरंतर चलेगी। नगर के विभिन्न शिवालयों में यजमानों की ओर से विद्वान पंडित भगवान शिव का रुद्राभिषेक सामूहिक रूप कराएंगे। भगवान शिव को भांग, धतूरे का विशेष रूप से भोग लगाया जाएगा।
ज्येष्ठ और आषाढ़ की भीषण गर्मी और तपिश से मुक्ति दिलाने हेतु श्रावण मास का आगमन होता है। श्रावण मास का इंतज़ार मनुष्य, पशु-पक्षी व प्रकृति को भी रहता है। श्रावण मास में प्रतिदिन भगवान आशुतोष अर्थात् भगवान भोलेनाथ की उपासना का विधान पुराणों द्वारा बतलाया गया है। देवों के देव महादेव भगवान भोलेनाथ को श्रावण अत्यंत प्रिय है। जो कोई भी व्यक्ति किसी कारण वश प्रतिदिन श्रावण मास में पूजा नहीं कर सकता, उसे व समस्त शिव भक्तों को श्रावण के प्रत्येक सोमवार को पूजा व व्रत अवश्य करना चाहिए।
शिव जी ने जैसे विष पिया वैसे ही हमें बुराइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए.वैसे भी सोमवार का दिन भगवान शंकर को अति प्रिय है और यही दिन शिव शंभू के मस्तक पर स्थान पाने वाले चन्द्र देव का भी माना जाता है। इसलिए सोमवार को शिव आराधना एवं उपासना अवश्य करनी चाहिए। समुद्र मंथन के लिए समुद्र में मंदराचल को स्थापित कर वासुकि नाग को रस्सी बनाया गया। तत्पश्चात दोनों पक्ष अमृत-प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन करने लगे। अमृत पाने की इच्छा से सभी बड़े जोश और वेग से मंथन कर रहे थे। सहसा तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। उस विष की अग्नि से दसों दिशाएँ जलने लगीं। समस्त प्राणियों में हाहाकार मच गया। तब शिव ने इस विष को गले में उतारा और नीलकंठ बने। असल में, इसमें भी छुपा संकेत है। शिव जी ने जैसे विष पिया वैसे ही हमें बुराइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए।