राग रतलामी/ इलाज वाले महकमे की नाकामी का असर,फिर से बढने लगा कोरोना का कहर
-तुषार कोठारी
रतलाम। पिछले कुछ दिनों से देश के साथ साथ रतलाम में भी कोरोना का कहर कम होता हुआ दिख रहा था,लेकिन हाल के दिनों में ये फिर से बढने लगा है। कोरोना की चपेट में आने वालों का आंकडा एक अंक तक चला गया था,लेकिन पिछले हफ्ते में ये फिर से बढ कर दो अंकों तक जा पंहुचा है। वैसे तो कोरोना से निपटने के लिए पूरा जिला इंतजामियां जुटा हुआ है,लेकिन इसकी पहली जिम्मेदारी इलाज वाले महकमे की है।
इलाज वाले महकमे की हालत पहले से ही भगवान भरोसे बनी हुई है। महकमें के बडे साहब लोगों की तंदुरुस्ती का ख्याल रखने से ज्यादा ख्याल अपनी आर्थिक तंदुरुस्ती का रखते रहे हैैं। अपनी इसी आदत के चलते महकमे के कारिन्दों को इधर से उधर करते रहते हैैं। उनकी व्यवस्था ठीक से कर दी जाती है तो वे जूनियर कर्मचारी को बडी जिम्मेदारी देने मेंभी नहीं हिचकते। जब कोरोना आया,तो लोगों को तो कोरोना का डर सताता रहा लेकिन बडे साहव को इसमें भी बडा फायदा नजर आ गया। कोरोना से निपटने का पूरा बजट साहब के ही पास आया। सैनेटाइजर खरीदने से लेकर मरीजों के खानपान जैसी तमाम व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी उन्ही पर थी। लोग अंदाजे लगा रहे है कि इस तरह की तमाम व्यवस्थाओं में साहब ने भरपूर आनन्द लिया। कोरोना के शुरुआती दौर में कोरोना की जांच के लिए जाने वाले कोरोना योद्धा सुरक्षा साधनों के लिए तरसते रहे,लेकिन उन्हे समय पर पीपीई किट जैसे साधन उपलब्ध नहीं हो पाए। इतना ही नहीं कोरोना से निपटने के लिए उन्हे कई सारी नियुक्तियां भी करना थी। साहब ने इसमें भी जमकर लाभ लिया। जानकार तो यहा तक कह रहे हैैं कि इन नियुक्तियों में जमकर वसूली हुई थी,लेकिन अब इन्हे मुक्त किया जाना है। जिन्होने भारी भरकम रकम अदा की थी, वे अब रकम वापस मांग रहे हैैं,क्योंकि भुगतान तो स्थाई सेवा के नाम पर लिया गया था और नियुक्तियां तो कुछ महीने ही चल पाई। उसी दौर में कोरोना के नाम पर जमकर खरीदीयां भी की गई थी। इन खरीदियों के भुगतान की बारी अब आई है। बताते है कि जिला इंतजामियां के बडे साहब ने इन भुगतानों पर रोक लगा दी है।
ये गडबडियां तो शुरुआती दौर की बात थी। कहानी तो मार्च से चलती आ रही है। पिछले छ: महीनों में ना जाने कितनी कहानियां बनी है। कोरोना का कहर हटने के बाद ही शायद इन कहानियों के किस्से सामने आ पाएगेंं। बहरहाल आजकल तो कोरोना फिर से सर उठाने लगा है और हर दिन दो दर्जन से ज्यादा मामले सामने आ रहे है। शुरुआती दौर में कोरोना की खोजबीन को लेकर जो मेहनत की जा रही थी,वो अब नदारद हो गई है। ऐसे में आगे क्या होगा,कोई नहीं जानता……..।
सम्मान देने में भी पक्षपात
कोरोना से निपटने के लिए इंतजामियां ने बडे पैमाने पर तैयारियां की थी। अंग्र्रेजी दवाओं से इलाज वाले महकमे के अलावा देसी दवा से इलाज वाले महकमे के भी तमाम लोगों की भी कोरोना से निपटने के काम में ड्यूटियां लगाई गई थी। जब कोरोना से निपटने में एलोपैथी दवाएं कारगर नहीं हो रही थी,तब देसी यानी आयुर्वेदिक दवाएं कोरोना से निपटने में कारगर साबित हो रही थी। सूबे की सरकार को जब यह समझ में आया तो पूरे सूबे में आयुर्वेदिक दवाएं बांटने का अभियान चलाया गया था। देसी दवाओं वाले इस महकमे के कर्मचारी लोगों को दवाईयां तो बांट ही रहे थे, गांव गांव में जाकर लोगों की जांच भी कर रहे थे। लेकिन जब कोरोना योध्दाओं के नाम पर इनाम देने की बारी आई,तो इनको पूरी तरह भूला दिया गया। तीन तीन बार कोरोना योद्धाओं को पुरस्कृत किया गया,लेकिन इनमें एक भी बार आयुर्वेद वाले का नाम नहीं था।
पुराने मेल मिलाप का फायदा
इन दिनों महिला एवं बाल विकास के कुछ पुराने कर्मचारियों की पूछपरख ज्यादा बढ़ गई है। यह वहीं कर्मचारी है जो कि किसी समय अपने ही विभाग के मुख्य अधिकारी की खिलाफत कर विभाग के लिए भी नासूर बनने लगे गए थे। इसी कारण यह कर्मचारी पिछले कई दिनों से जिले के आदिवासी अंचल में लूप लाइन में थे। लेकिन अब फिर से कोरोना काल मे रतलाम में पदस्थ हुई नई मुख्य अधिकारी ने इन्हें मुख्यालय पर बुला लिया। मुख्यालय पर आते ही यह फिर से अपनी पुरानी रंगत में आ चुके है यहा तक कि पिछले दिनों हुई विभागीय कार्यशालाओं में मीडियाकर्मियों की अगवानी करते दिखे। इनके आने के बाद कुछ मीडियाकर्मी कम हमेशा किसी न किसी विभाग में आरटीआई लगा कर शिकायत करने वालों को भी मजा आ गया और इनका मेल मिलाप भी बढ़ गया। विभाग की मुखिया भी पूर्व में पिपलौदा, जावरा में परियोजना अधिकारी के रूप में पदस्थ रह चुकी है। ऐसे में कही न कही पुराने मेल मिलाप का फायदा इन कर्मचारियों को मिल गया।