देश में अराजकता फैलाने का षडयंत्र कर रही है बहुराष्ट्रीय कंपनिया
भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री प्रभाकर केलकर ने कहा
रतलाम,30 जनवरी (इ खबरटुडे)। बहुराष्ट्रीय कंपनियां विश्व व्यापार संगठन की आड में भारत की अर्थव्यवस्था को निगलना चाहती है। इसके लिए कई तरह के षडयंत्र किए जा रहे है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर कब्जा करने के लिए एमएनसी कंपनियां नियम कानूनों को अपनी सुविधा के हिसाब से बनवाने लगी है। अब तो स्वयंसेवी संगठनों के मदद देकर इनके माध्यम से देश में अस्थिरता फैलाने के षडयंत्र भी किए जाने लगे है।
उक्त उद्गार भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री प्रभाकर केलकर ने भारत भक्ति संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के रुप में व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ.डीएन पचौरी ने की। वैश्विक आर्थिक परिदृश्य और भारत विषय पर अपने सारगर्भित उद्बोधन में श्री केलकर ने कहा कि भारत की प्राचीन पारंपरिक अर्थव्यवस्था विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था थी। इसकी वजह से प्रत्येक गांव आत्मनिर्भर था। प्रत्येक व्यक्ति के पास काम था और बेरोजगारी जैसी कोई समस्या नहीं होती थी। प्राचीन भारत में राजसत्ता भी न सिर्फ विकेन्द्रित थी,बल्कि राजसत्ता पर धर्म और समाज का नियंत्रण था। कर नीति भी अत्यन्त सुगम और सरल थी। समाज में धन अर्जन ट्रस्टीशिप के सिध्दान्त पर किया जाता था। इसी वजह से धन का बेवजह प्रदर्शन नहीं किया जाता था,जबकि सक्षम लोग धन का उपयोग समाज के हित में किया जाता था। अंग्रेजों के आने के पहले देश में दो लाख विद्यालय चलते थे,जो कि बिना किसी शासकीय मदद के चलते थे। इन का संचालन समाज द्वारा किया जाता था।
श्री केलकर ने कहा कि विश्व में औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरुप पूंजीवाद का उदय हुआ। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के उदय के कारण अधिक से अधिक धनार्जन करने की प्रवृत्ति ने जन्म लिया। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था केन्द्रित अर्थव्यवस्था है। विश्व के समस्त संसाधनों में से अस्सी प्रतिशत संसाधनों का उपयोग व उपभोग बीस प्रतिशत पूंजीपति लोगों द्वारा किया जाता है,जबकि शेष अस्सी प्रतिशत लोग मात्र बीस प्रतिशत संसाधनों के सहारे अपना जीवन यापन कर रहे है।
श्री केलकर ने वर्तमान आर्थिक परिदृश्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि विश्व के विकसित व पूंजीवादी देशों ने अपने हितों की सुरक्षा व गरीब देशों के शोषण के लिए विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की। विश्व व्यापार संगठन की मदद से वे विकासशील देशों के आर्थिक शोषण के नए नए तरीकों की खोज करते है और विकासशील देशों का शोषण कर रहे है। इन विकसित राष्ट्रों की बहुराष्ट्रीय कंपनिया अपनी सुविधा के हिसाब से नियम कानून बनवाती है।
उन्होने इण्डोनेशिया की राजधानी बाली में पिछले दिनों हुई विश्व व्यापार संगठन की बैठक का जिक्र करते हुए कहा कि इस बैठक में भारत को खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसी लोकलुभावन योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर अपमानजनक समझौता करना पडा। उन्होने कहा कि विश्व व्यापार संगठन ने सबसीडी की सीमा दस प्रतिशत से अधिक निकल जाने को लेकर भारत पर अर्थदण्ड लगाने की धमकी दी और इस पैनल्टी से बचने के लिए भारत को पीस क्लाज लागू करवाने पर सहमति देना पडी। इस पीस क्लाज के लागू होने से अब विश्व व्यापार संगठन को भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने तक का अधिकार मिल गया है। बाली बैठक में भारत की करारी हार हुई है और भारत की केन्द्र सरकार ने यह समझौता कर देश के साथ विश्वासघात किया है।
श्री केलकर ने कहा कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के जरिये भारत को आर्थिक गुलामी की ओर धकेला जा रहा है। कोई भी व्यवसायी लाभ कमाने के लिए धन का निवेश करता है। बहुराष्ट्रीय कंपनिया निवेश का २४ प्रतिशत से कम लाभ होने की दशा में निवेश ही नहीं करती। ऐसी स्थिति में यह तय है कि खुदरा बाजार आदि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत के धन को विदेशों में ही ले जाएगा। उन्होने कहा कि अब तो विदेशी कंपनियों की नजरे उन संस्थाओं पर गड गई है,जहां बहुत अधिक धन है। विदेशी कंपनिया भारत के दुग्ध के व्यवसाय को कब्जे में लेना चाहती है। इससे पशुपालक किसानों की स्थिति और खराब हो जाएगी। इसी तरह विदेशी कंपनियों की नजरे अब बैंक,बीमा और पेंशन फण्ड इत्यादि संस्थाओं पर पडने लगी है। इन संस्थाओं का नियंत्रण हाथ में लेने के लिए ये कंपनिया अपनी मर्जी से भारत में कानून बनवा लेती है।
श्री केलकर ने कहा कि विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनिया अब स्वयंसेवी संगठनों को आर्थिक मदद देकर भी अपने हित साधने लगी है। उन्होने कहा कि तीसरी दुनिया के देशों में अराजकता फैलाने के लिए सिविल सोसायटी के नाम पर स्वयंसेवी संगठनों को भारी आर्थिक मदद दी जाती है। ये स्वयंसेवी संगठन आन्दोलन आदि के माध्यम से अराजकता की स्थितियां उत्पन्न करते है। उन्होने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का जिक्र करते हुए कहा कि केजरीवाल के एनजीओ कबीर को फोर्ड फाउण्डेशन के माध्यम से लाखों डालर की आर्थिक मदद दी जाती रही है। उन्होने कहा कि साम्यवादी शक्तियों ने अब उदार चेहरा बनाकर सिविल सोसायटी के नाम पर एनजीओं के आन्दोलनों को मदद देना शुरु कर दिया है। इस तरह की गतिविधियों का अंतिम लक्ष्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मदद देना ही है।
श्री केलकर ने कहा कि आज देश पर चारों ओर से खतरे मण्डरा रहे है। लेकिन इस निराशाजनक स्थिति से समाज को जागरुक कर निपटा जा सकता है। देश के युवाओं में उद्यमशीलता बढाना होगी। बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी करने का सपना बहुसंख्यक युवा देखता है,लेकिन उद्यमी बनना कम लोग चाहते है। कर्मचारी की मानसिकता साहसिक मानसकिता नहीं होती,उद्यमी का मानसिकता साहसिक मानसिकता होती है। उद्यमशीलता बढाना होगी,समाज को संस्कारित और सक्षम बनाना होगा,तभी इन चुनौतियों से निपटा जा सकता है। देश में मजबूत नेत्तृत्व होने से भी कई समस्याओंका हल हो सकता है।
इससे पहले कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ.डीएन पचौरी ने कहा कि विश्व की अर्थव्यवस्था को चार बडे विकसित देश नियंत्रित करते है। वे अपने लाभ के लिए तीसरी दुनिया के विकासशील देशों का शोषण करने से नहीं चूकते। प्रारंभ में भारत भक्ति संस्थान के संयोजक राजेश पाण्डेय ने स्वागत भाषण एवं अतिथि परिचय दिया। अतिथियों का स्वागत अशोक जैन लाला,वीरेन्द्र वाफगांवकर,प्रदीप जैन,राजेश घोटीकर,रीजेन्द्र सांकला आदि ने किया। कार्यक्रम का संचालन नरेन्द्र शर्मा ने किया,जबकि आभार प्रदर्शन तुषार कोठारी ने किया। कार्यक्रम का समापन श्रीराम दिवे के वन्देमातरम गान से हुआ।