May 2, 2024

शिक्षक दिवस का पुरस्कार

(शिक्षक दिवस ५ सितम्बर पर विशेष)

(डॉ.डी एन पचौरी)
आज ५ सितम्बर का दिन था,शिक्षक दिवस ,चिरंजीलाल गुप्ता उर्फ सी.एस.गुप्ता सर बडी बैचेनी से बार बार विद्यालय के दरवाजे की ओर देख रहे थे। उन्हे किसी के आने का इन्तजार था। आज उन्हे ४० वर्ष पुरानी घटनाएं याद आ रही थी कि किस तरह उन्होने आज ही के दिन इसी विद्यालय में अध्यापन के लिए व्याख्याता पद स्वीकार किया था। सब कुछ चलचित्र की भांति उनके दिमाग में चल रहा था। जिस प्रकार फिल्म में पुरानी घटनाएं फ्लैशबैक में दिखाई जाती है,ठीक उसी प्रकार उन्हे अपने जीवन की घटनाएं याद आ रही थी। इसी आदिवासी अंचल में विभिन्न विद्यालयों में ट्रांसफर होते रहे और आज पिछले पांच वर्ष से वे इसी विद्यालय के प्राचार्य है।
जब से उन्होने होश संभाला उन्होने घर में केवल उनके पिताजी को ही देखा। त्वमेव माता च पिता त्वमेव,त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव के आधार पर मां बाप भाई बहिन बन्धु बान्धव सब कुछ पिताजी थे। उनका और कोई भी रिश्तेदार उस नगर में नहीं था। एक पडौस के बुजुर्ग से उन्हे पता चला था कि उनके पिताजी,माताजी प्रेमवती के साथ राजस्थान के किसी गांव से भागकर आए थे। प्रेम विवाह का मामला था और आनर किलींग के डर से उन्हे गांव से भागना पडा था। इस नगर से भी उनके माता पिता ने कम कष्ट नहीं उठाए। पिताजी ने चाय की दुकान पर कप प्लेट धोए। हलवाई की दुकान पर कढाइयां मांजी,होटल के बर्तन धोए और एक आफिस में झाडू लगाने की टेम्पररी नौकरी भी की। माताजी ने भी झाडू पोता से लेकर सिलाई कढाई जैसे काम करके जैसे तैसे जिन्दगी की गाडी को आगे बढाया पर लौटकर फिर अपने जन्मस्थान राजिस्थान के उस गांव नहीं गए। दोनो के प्यार का जो फूल खिला,वो चिरंजीलाल थे। जिनका नाम बडे प्यार से चिरंजीवलाल रखा गया था,जो अपभ्रंश के रुप में धीरे धीरे चिरंजीलाल हो गया। चिरंजीलाल गुप्ता। माताश्री उनके बचपन में स्वर्ग सिधार गई थी और पिताश्री ने ही लालन पालन किया। जीवनभर की जमापूंजी से पिताजी ने एक किराने की दुकान खोल ली और मरते दम तक उसी दुकान को चलाते रहे।
उनके पिताजी चाहते थे कि चिरंजीलाल आठवी पास करके किराने की दुकान संभाल ले,किन्तु पढने की इच्छा शक्ति और योग्यता के आधार पर चिरंजीलाल ने हायर सेकेण्डरी में नगर में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए। योग्यता छात्रवृत्ति और कुछ ट्यूशन आदि करके उन्होने बीएससी प्रथम श्रेणी में और फिर एमएससी की परीक्षा फिजिक्स में प्रथन श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली। अब उनका सपना कालेज में प्रोफेसरी करने का था।
विश्वविद्यालय का एमएससी का परिणाम जून माह में आ गया था,किन्तु अगस्त मास तक न बीएससी की कोई सूचना निकली और नहीं तदर्थ नियुक्तियां हुई। उस समय कालेज भी कम थे और हायर सेकेण्डरी में व्याख्याता पद पर सीधे बिना इंटरव्यू के भर्ती होती थी,अत: पिताजी के अधिक जोर देने पर उन्होने आदिवासी अंचल के इस गांव में उन्होने शिक्षक दिवस के दिन नौकरी ज्वाईन कर ली। चिरंजीलाल की बिलकुल इच्छा नहीं थी कि वे नगर छोड एक गांव में मास्टरी करे पर परिस्थितियों के आगे मनुष्य को झुककर समझौता करना पडता है और उन्हे अंचल के इस आदिवासी गांव में मजबूरन आना पडा।
प्रारंभ में चिरंजीलाल की इच्छा होती थी कि इस गांव की मास्टरी को छोड नगर में भाग जाए पर पिताजी की वृध्दावस्था,लाचारी और पैसे की कमी उन्हे रोके रही। धीरे धीरे उन्हे वही सबकुछ अच्छा लगने लगा जिसकी वजह से सी.एल.गुप्ता नौकरी से इस्तीफा देना चाह रहे थे। पढाने का शौक उन्हे शुरु से ही था। अत: बच्चों को लगन से पढाना शुरु किया। विज्ञान व गणित के विषय इन्होने संभाले तो हिन्दी अंग्रेजी आदि विषयों के अध्यापक भी रुचि लेने लगे और इस सबका परिणाम आशा के अनुकूल रहा। विद्यालय में छात्र संख्या बढने लगी तथा परीक्षा परिणाम भी श्रेष्ठ रहा। पांच वर्ष में इस तहसील का विद्यालय पूरे आदिवासी अंचल में प्रसिध्द हो गया। ये गुप्ता जी की सार्थक मेहनत का नतीजा था। फिर गुप्ता जी का ट्रांसफर दूसरे गांव हो गया। उन्होने इसी को अपनी नियति मान लिया तथा प्रोफेसरी की उम्मीद छोड विद्यालय के अध्यापन में खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया।
गुप्ता जी पढाने में इतना व्यस्त रहते थे और इतनी रुचि लेते थे कि कभी कोई अवकाश नहीं लिया। साथी अध्यापक मजाक में उन्हे सी.एल.गुप्ता या कैजुअल लीव गुप्ता कहते थे पर उन्होने कभी कैजुअल लीव या आकस्मिक अवकाश नहीं लिया। उन्हे इस बात का बडा दुख होता था कि सरकार के लाख प्रयत्न आदिवासियों की हालत में अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा था। कही भूख,गरीबी,अशिक्षा,बिमारियां यथावत मौजूद थी। जिस विद्यालय में वो पढाते थे। उन्होने देखा कि एक छोटा सुदर्शन बालक रोज विद्यालय में,कभी विद्यालय के बाहर चक्कर काटता रहता था। ऐसा बहुत दिनों तक होता रहा तो उन्होने उस बालक को बुलाकर पूछा। पता चला कि बालक का बाप मजदूर था जो पिछले वर्ष एक दुर्घटना में चल बसा और मां मजदूरी करके गुजारा करती है। बालक ने प्राइमरी की पांचवी कक्षा पास करके पढना छोड दिया है। मां बहुत बीमार है। बालक का नाम चन्द्रपाल है,मां चन्दू कहकर पुकारती है।
कई दिनों तक चन्द्रपाल उर्फ चन्दू गुप्ता सर को नजर नहीं आया। फिर एक दिन आया तो कहने  लगा कि मां बीमार है,आपको याद किया है। न जान न पहचान,एक दिन केवल बालक का नाम ही तो पूछा है,फिर इतना अपनापन। चिरंजीलाल गुप्ता चुप रह गए और चन्दू के घर नहीं गए। एक सप्ताह बाद चन्दू उतरा हुआ चेहरा लेकर सर के पास आया और उन्हे अपने घर ले जाने लगा। बताया कि मां बहुत बीमार है और शायद अंतिम घडी है। चिरंजीलाल गुप्ता चन्दू के घर गए और देखा तो एक झोपडे में फटी गादी पर मात्र हड्डियों का ढांचा पडा है। समझ गए कि यह भूख बेबसी,लाचारी की बीमारी है। काश,वो एक हफ्ते पहले आ जाते तो कुछ किया जा सकता था। हड्डियों के उस ढांचे ने चन्दू का हाथ सर के हाथ में दिया और सदैव के लिए आंखे मूंद ली। उन बन्द होती हुई आंखों ने जाने क्या कहा कि गुप्ता सर का कलेजा मुंह को आ गया। मानव मन मस्तिष्क की संरचना इतनी जटिल है कि इसके बारे में विज्ञान जगत भी अनजान है। उसी समय चिरंजीलाल गुप्ता ने चन्दू को अपना मानसपुत्र स्वीकार कर लिया और आजीवन शादी न करने का निर्णय कर लिया। उन्होने चन्दू का पालन पोषण अपने बेटे तरह करना शुरु कर दिया। पिताजी बहू और पोते का मुंह देखने की आस लिए संसार से विदा हो गए परन्तु उनके अंतिम समय तक भी चिरंजीलाल टस से मस नहीं हुए।
आज उस आदिवासी अंचल में सीएल गुप्ता सर का नाम सुपरिचित है। बच्चा बच्चा उनका नाम जानता है। उन्होने अपने पैसे से कई गांवों में डिस्पैन्सरिया खुलवा दी है,जहां मुफ्त दवाई  दी जाती है। उनके पढाए हुए लगभग एक दर्जन छात्र एम.बी.बी.एस करके गांवों में सेवाएं दे रहे है और इतने ही डाक्टरी की डिग्री लेने वाले है। उन्होने चन्दू को पढा लिखाकर डाक्टर बना दिया है। दो वर्ष की प्रैक्टिस के बाद एस.एस. (मास्टर आफ सर्जरी) का कोर्स करने निकट के बडे नगर में भेजा था और आज शिक्षक दिवस पर चन्दू एम.एस.की डिग्री  लेकर आने वाला है। आज गुप्ता सर उसी का बैचेनी से इन्तजार कर रहे हैं।
वो सोचते है कि नियति के आगे किसी का बस नहीं चलता है। कर्ता के मन कुछ और है दाता के मन कुछ और। कभी कभी जो हम सोचते है वैसा नहीं होता और जो नहीं सोचते वैसा हो जाता है। चिरंजीलाल गुप्ता ने प्रोफेसरी के ख्वाब देखे थे। जिस समय उन्होने प्रथम श्रेणी में एम.एस.सी किया था,वो बहुत बडी बात थी। यूनिवर्सिटी का क्षेत्र भी बहुत बडा था। लगभग बीस जिलों के लिए ये अकेली यूनिवर्सिटी थी जहां से गुप्ता सर ने डिग्री ली थी। क्या प्रोफेसर बनकर वह इतनी इज्जत,शोहरत कमा सकते थे,जितनी आज है? अब उन्हे प्रोफेसर न बन पाने का कोई मलाल नहीं है।
गाडी के हार्न की आवाज से उनका ध्यान भंग हुआ। उन्होने देखा कि चन्दू उर्फ डाक्टर चन्द्रपाल गुप्ता उनकी ओर आ रहा है। उसने एस.एस. की डीग्री अपने पितातुल्य गुरु के चरणों में रख दी। आंसू दो प्रकार के होते है,दुख के आंसू व सुख के आंसू। गुप्ता सर की आंखों में दो ही बार आंसू आए हैं। दु:ख के आंसू तब आए थे,जब उनके पालनहार पिता श्री की मृत्यु हुई थी और आज उनकी आंखों से सुख के आंसू निकल रहे थे। अपने जीवनभर की कमाई से व शासन से कर्ज लेकर गुप्ता हास्पिटल बनाएंगे,जहां नाममात्र की फीस लेकर गरीबों का इलाज किया जाएगा। डाक्टर चन्द्रपाल ने उनके जीवन की एक बडी इच्छा पूरी कर दी है। सुना है कि गुप्ता सर का नाम राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए भेजा गया है और अगले वर्ष शिक्षा दिवस पर उन्हे ये पुरस्कार दिया जाएगा। परन्तु अब चिरंजीलाल गुप्ता को किसी पुरस्कार की इच्छा नहीं है,क्योंकि उनके चन्दू ने उन्हे आज सबसे बडा पुरस्कार दिया है,शिक्षक दिवस का पुरस्कार।

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