May 2, 2024

सूर्य तिलक- लौह महिला का आपातकाल और मोदी-तिलक

सूर्य तिलक भारत का उदयकाल, जिसका आधार गरीब की जन-चेतना और भारत का भविष्य-काल मोदी की ग्याारंटी कि सबको भरपेट, भोजन, सबको मकान, रसोई-गैस-चुल्हे से मुक्ति, सबको स्वच्ड जल-सुविधा गरीब का जन्म सिद्ध अधिकार है। यह जन चेतना रामराज्य का प्रारम्भ है, जिसे मातृ-षक्ति का आषिर्वाद है। सम्पन्न बुंद्धिजीवी, जो 1947 की बंदर-बॉट राजनीति की मलाई खा रहे है, ये लोग राम की तुलना तुष्टिकरण की राजनीति से कर लौह-महिला इन्दिरा गांधी के आपातकाल से कर ईडी, सीबीआय,,एनआयए, और आयकर विभाग के माफिया डान, आतंकी और भ्रष्टो पर छापे, और जेल को प्रजातंत्र की हत्या, मोदी की तानाषाही, और आपातकाल उत्पीडन प्रचारित कर लौह महिला के जायज आपातकल, जो आम जनता, और 1947 की बंदर-बाँट राजनीति पर प्रहार था, जिसे आम जनता को मुर्ख बनाकर भूनाया गया, और विपक्ष ने अभूतपूर्व सफलता हांसिल की, लेकिन बंदर-बाटॅ राजनीति ने इसे 18 महिने में ध्वरूत कर दिया, जिसे लोकंतंत्र के महापर्व ने 1980 में बदल दिया,कि जनता नेताओं से ज्यादा बंद्धिमान है, और आपातकाल को अनुषासन पर्व, जिसमें आम जनता समय पर सेवा मिलने से प्रसन्न थी, नसबंदी आपरेषन को जनयंक्ष्या नियंत्रण हेतु आवष्यक माना, 42 वें संविंधान संषोधन में षामिल सेक्यूलर षब्द से संदेष दिया,कि भारत संदियों से धर्म-निरपेक्ष है, जिसे भारत विभाजन की बंदर-बाट मे अंधविष्वास के नाम पर अंग्रेजो ,थोपा गया, ज्हॉ संदियों से हिन्दू धर्म-निरपेक्ष है। यह भारत विभाजन पर प्रहार था, नसबंदी अभियान सभी के लिए था, जिसे मुस्लिमो के खिलाफ बताकर विपक्ष ने भूनाया, जिसे अंगेजो ने मूर्खौ के प्रजातंत्र के माध्यम से थोपा, जिसका अहसास लौह महिला को खालिस्तान अलगाववाद आंदोलन में हुआ, और जानते हुए कि इसमें जान जा सकती है, इसकी परवाह ना करते हुए ब्लू स्टार आपरेषन को अंजाम भारत को विभाजन से बचाने के लिए था, जिकी नींव अंग्रजो ने डाली, लेकिन इन्दिरा गांधी के बलिदान को कां्रग्रसियों ने जघन्य सिख नरसंहार कर कलंकित कर दिया। जिसका खामियाजा आज भी देष भूगत रहा है,। अनुषासन पर्व के बाद देष पुनः भ्रष्टाचार के गर्त मे फंस गया, जिस पर मोदी ने लगाम लगाई है, और विपक्ष उद्वेलित।

अंधेरे से प्रकाष ही तरफ राम राज्य का नवोदय, जिसका इंतजार भारत सदियों से कर रहा है। राम राज्य के वाहक महामना मोदी ने नैतिकता, और इमानदारी की पतवार थामी है, अभी तक भ््राष्टाचार भरेहुए पेट का षगल था, और भ्रष्टाचार की गंगा उपर से बह कर आम आदमी तक रोजी-रोटी के अभाव में अनैतिक आचरण जन्म सिद्ध अधिकार हो गया। जिसका सृजन अंग्रेजो द्वारा मुर्खो का षासन, मुर्खोे के लिए, मुर्खो के द्वारा को सिमित प्रजातांित्रक प्रणाली के रुप मे लागु किया गया, भ्भरत जैसे विषाल देष में जहॉ 87 प्रेतिषत जनता ग्रामीण ईलाको मे रहती थी, कृषि और भू लगान देकर अपना जीवन यापन नैितकता से करना जन्म सिद्ध अधिकार था।

स्वतंत्रता प्राप्ति 1967 और मुर्खो पर षासन की बंदर-बाट ने दो प्रतिषत अंग्रेजी पझे-लिखे विद्वान और 15 पंद्रह प्रतिषत सम्पन लोगो का भ््राष्टाचार कर मुर्खाे पर षासन षगल गया, 1952 का प्रथम आम चुनाव भारी भ््राष्टाचार के साथ सम्पन्न हुआ, और भ्रष्टाचार की गंगा, नेताओं से प्रारम्भ होकर अफसरों, क्लर्क, स्टोर कीपर, एवं चपरासी तक पहुंची कि सब सम्पननता और नेतिकता के मापदण्ड बन गए, जो निरंतर प्रगति करते हुए, जन-जन मे समा गया और आज प्रत्येक व्यक्ति अपना स्व-रोजगार छौड कर सरकारी नौकरी वाहता है, ताकि भ्रष्टाचार की गंगा मे नहा कर समाज मे प्रतिष्ठित होकर उनका मार्गदर्षन करे।

और आज वर्तमान मे लुटेरो, तस्करो भष््रटाचारियों के समर्थन में जनसैलाब, एवं नेमाओं का खुला समर्थन देष की षान है। इडी, सीबीआय, एवं उनआयए पर हमला उनकी प्रतिष्ठा पर चार-चांद लगाता है।

इस भ्रष्टाचार के महामानव नायक के ताबुत की पहली कील महामना मोदी ने गाड दी है, और प्रत्येक भ्रष्टाचारी, जिसने जाने-अनजाने सहयोग किया, मोदी की तानाषाही कह कर महिमामण्डीत कर रहा है, भ्रष्टाचार की गंगा, जो उपर से गही है, कही नैतिकता की ज्वाला उन्हे भस्म ना कर दे। जिसका बीजारोपण महामना मोदी ने साठ 60 प्रतिषत गरीब जनता को करोना काल से प्रारम्भ बिना षुल्क अनाज, ताकि कौर्इ्र भूखा ना रहे। जिसे आगामी पॉच वर्ष मोदी की गारंटी है। हाल ही मे मुख्यमंत्री म.प्र. मोहन यादव द्वारा पारम्भ चलित भोजन योजना पांॅच रुपये मे भरपेट भोजन इस दिषा में मील का पत्थर साबित हो सकता है, इससे गरीबो में यह संदेष गया है कि जब मुढे भर पेट भोजन मिल रहा है, तो मै अनैतिक आचरण किसके लिए करुं। रेडीवाले, ठैलेवाले तथा स्वरोजगार द्वारा दैनिक जीवन यापन करते है, उनमे नैतिकता, ईमानदारी से धंधा-व्यापार करने की ईच्छा जाग्रत हुई है, कि धंधा नही भी हुआ तो भी पेट खाली नही रहेगा।

क्यों कि अपने नैतिक-अनैतिक कार्यो का फल स्वये ही भोगना नियति है।

यह नैतिकता -ईमानदारी का ज्वार नीचे गरीबक्त समुद्र से उठ रहा है, और नेता उद्वेलित होकर भष्भीत है, कि कही यह ज्वार उन्हे निगल ना लै।

स्ूर्य के अपनी उच्च राषि मेष में प्रवेष् के साथ राम का राजतिलक, गहन अंधेरे से सूर्य का प्रकाष अभिषेक महामना मोदी का राजतिलक है। महत्वपूर्ण यह है कि मोदी ने नैतिकता अलख जगाया है, जिसे भ्रष्टाचार ने नेस्त-नाबूत कर दिया था, लौह महिला स्व.इंदिरा गांधी ने इस भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए आपातकाल लगाया था, और आम जनता सुखी, कर्मचारी अपनी ड्यंटी पर समय से पहुंचने लगे, ट्रैन -बस, रेल समय पर चलने लगी, जिसे तानाषही कहा गया। गेहूं के साथ धुन भी पीसता है, और चंद ईमानदारो को भी कारावास भोगना पडा, जब कि स्व. संजय गांधी ने 20 सुत्रीय कार्य योजना में कडा आनुषासन, पक्का ईरादा, वृक्षारोपण, जनसंख्या नियंत्रण हेतु नसबंदी जिसे राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ से ही लिया गया था, जिससे कई राष्ट्वादी नेता सहमत थे कि एक स्वतंत्र राष्ट् के लिए यह संजीवनी है, श्री मोदी ने उस समय इसका विरोध किया था, क्यों कि कई निर्दोष लोग भी मीसा में बंद थे, और आरएसएस पर प्रतिबंध। वामपंथी दलो के सहयोग से मजदूर, श्रमिक ओदोलन, कर्मचारी आंदोलन हडताल पर प्रतिबंध अभ्भूतपूर्व कदम था, जिसने अनुषासन को खत्म कर उद्योगो को नेस्तनाबंत कर दिया, और विपक्ष को बेरोजगारी का मुद्दा मिल गया।

हकीकत मे यह 1947 की बंदर-बाटं स्वतंत्रता पर प्रहार था, जिसके लिए लौह महिला की बंगलादेंष विजय, और लौह निर्णय आपरेषन ब्लू स्टार,, जिसे अलगाववाद 1947 बंदर-बांट ने हवा दी, पष्चिम ब्रिटेन के मानसिक गुलामो ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी के तहत देष का काला अध्याय कहा, अखबारों ने सम्पादकीय पृष्ठ खाली छोड़ दिया, और इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला कहा। जबकि बंदर-बांट के तहत देष का विभाजन सबसे बडा काला अध्यााय था, जिसकी किसी ने आलोचना नहीं की। इसने भ्रष्टाचार और मलाई खाने के द्वार खोल दिएं। यद्यपि 1935 का अंग्रेजी संविधान जिसे 1950 में लागं किया गया, अंग्रेजो की मानसिक गंलामी का द्योतक है। जिसे उन्होने सिमित प्रजातंत्र मुखो का षासन, मुर्खो के लिए, मुर्खो द्वारा भ्रष्टाचार और बेईमानी की सौगात विरासत मे दी। जहॉ भारत में धर्म नैतिकता के साथ जीने का साधन था, वह वोट बंक के खातिर गदी नाली में चला गया. इस भस्मासूर का वध कैसे होगा, जो भ्रष्टाचार, और अनुषासनहिनता को अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते है।

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