November 15, 2024

आने वाली मृत्यु के लिए सभी को सदा सावधान रहना चाहिए

दिव्य भागवत ज्ञानयज्ञ के तृतीय दिन आचार्य क्षमाराम जी का प्रवचन

रतलाम,1 दिसम्बर (इ खबरटुडे)। निश्चित समय पर आने वाली रेलगाडी के लिए भी हम पहले से स्टेशन पंहुच जाते है,तो अनिश्चित समय पर आने वाली मृत्यु के लिए भी हमें सदा सावधान रहना चाहिए और विचार करना चाहिए कि इस दु:खमय संसार और आसक्तियों से छुटकारा कैसे हो?
बडा रामद्वारा में आयोजित दिव्य भागवत ज्ञान यज्ञ के तृतीय दिन श्रध्दालुजनों को सम्बोधित करते हुए रामस्नेही संप्रदाय के सींथल पीठीधश्वर आचार्य श्री क्षमाराम जी ने उक्त उद्गार व्यक्त किए। क्षमाराम जी महाराज ने परिक्षित जी के उत्तराध्र्द जीवन की चर्चा करते हुए कई प्रसंगों की व्याख्या की।
उन्होने कहा कि परिक्षित जी के पूर्वज भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त हुए हैं। उन्होने धर्म और न्याय के लिए अपार कष्ट सहे और दुख को भी सुख माना। ब्राम्हणों की शिक्षा में रहकर परिक्षित बडे हुए और राजा बनकर सनातन का धर्म का विस्तार किया। जिससे धर्म और पृथ्वी दोनों को नया जीवन प्राप्त हुआ। महाराजा परिक्षित ने कलियुग को सीमित स्थान में बांध दिया। उन्होने कलियुग को शराब,जुआ,हिंसा,आसक्ति,व धन का अतिशय लोभ जैसे सीमित स्थानों में बांधा है। इसलिए साधकों को इन सभी स्थानों से दूर रहना चाहिए।
महाराज जी ने परिक्षित के जीवन की व्याख्या करते हुए कहा कि परिक्षित का प्रश्न सबके लिए अत्यन्त उपयोगी है,जो भागवत के उदगम का मूल है। प्रश्न यह है कि मरणासन्न की स्थिति में व्यक्ति को ऐसा क्या करना चाहिए,जिससे जीव का इस दुखमय संसार से छुटकारा हो जाए और पुनर्जन्म की स्थिति ना बने। उन्होने कहा कि हर व्यक्ति,वस्तु,परिस्थिति प्रतिक्षण मर ही रहे है,अर्थात अपने से छूट रहे हैं और विनाश की ओर जा रहे हैं। तो ऐसा क्या करना चाहिए जिससे कि संसार में व्यक्ति की आसक्ति ना रहे। शुकदेव जी महाराज ने प्रश्न की त्वरा देखते हुए बिना मंगलाचरण एि उत्तर दिया कि रात दिन सुबह शाम लोगों को मृत्यु की तरफ जाते हुए भी मनुष्य को अपने बारे में यह होश और चेत नहीं होता,यह मनुष्य की दुर्दशा है। मनुष्य को विचारपूर्वक भगवान की कथा,सत्संग,व भजन में मन लगाना चाहिए।
आचार्य श्री ने ध्यान का वर्णन करते हुए समझाया कि ध्यान तीन प्रकार का होता है। विराट पुरुष का ध्यान,निर्गुण परमात्मा का ध्यान और सगुण परमात्मा का ध्यान। ध्यान की विधि का निर्माण ऋ षियों ने आत्मिक परम विश्राम के लिए किया है। परन्तु इन सबका ज्ञान श्रवण(सुने) बिना नहीं हो सकता। इसलिए श्रवण बहुत आवश्यक है। उन्होने विदुर उध्दव का रोचक कथा प्रसंग भी सुनाया।
बडा रामद्वारा में आयोजित दिव्य भागवतज्ञान यज्ञ में बडी संख्या में धर्मप्रेमी जन कथाश्रवण कर रहे है। प्रारंभ में रामद्वारे के महन्त गोपालदास जी व अन्य संतों ने श्रीमद भागवत व आचार्य श्री क्षमाराम जी का पूजन किया और कथा समापन पर भागवत जी के पूजन के साथ ही प्रसाद वितरण संपन्न हुआ।

You may have missed

This will close in 0 seconds