लाक डाउन के छ: दिन, प्रशासनिक अव्यवस्था के चलते भूखे सोने को मजबूर है सैकडों लोग
रतलाम,27 मार्च (इ खबरटुडे)। कोरोना वायरस के डर के चलते पिछले छ: दिनों से शहर में लाक डाउन चल रहा है। लाक डाउन में दिहाडी मजदूरों और गरीबों को भोजन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी प्रशासन पर है लेकिन प्रशासनिक बदइंतजामी का आलम यह है कि सैकडों गरीबों को हर दिन भूखे ही सोना पड रहा है।
रतलाम में जनता कर्फ्यू के दिन से ही लाक डाउन प्रारंभ हो गया था। केन्द्र से लेकर राज्य सरकार तक और राज्य से लेकर जिला प्रशासन तक हर कहीं ये दावे किए जा रहे है कि लाक डाउन के दौरान किसी गरीब को भूखा नहीं रहने दिया जाएगा। लेकिन वास्तविकता इसके ठीक विपरित है।
वैसे तो जिला प्रशासन द्वारा गरीब बस्तियों में प्रतिदिन भोजन बांटे जाने के दावे किए जा रहे है। लेकिन अब तक मिली जानकारी के अनुसार जिला प्रशासन द्वारा प्रतिदिन केवल एक हजार लोगों के लिए भोजन तैयार करवाया जा रहा है। जबकि शहर में दिहाडी मजदूरों की संख्या इससे कई गुना अधिक है। शहर में ऐसे लोग भी बडी तादाद में मौजूद है,जो किसी अन्य स्थान के निवासी है और लाक डाउन के चलते यहां फंसे हुए है। जिला प्रशासन द्वारा तैयार करवाए जा रहे एक हजार भोजन के पैकेट भूख से परेशान लोगों की संख्या की तुलना में बेहद कम है। इतना ही नहीं,प्रशासन द्वारा बांटा जा रहा भोजन काफी देरी से वितरित किया जा रहा है।
दूसरी ओर शहर की अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं और समाजसेवियों द्वारा संकट की इस घडी में अपनी सेवाएं देने की पेशकश प्रशासन को की गई है,लेकिन जिला प्रशासन ने सुरक्षा कारणों का हवाला देकर संस्थाओं और समाजसेवियों को भोजन वितरण करने से साफ मना कर दिया। प्रशासन का तर्क यह था कि कोरोना के खतरे के चलते आम लोगों द्वारा भोजन वितरण करवाना ठीक नहीं होगा। जिला प्रशासन ने यह दावा भी किया था कि प्रशासन द्वारा हाइजिनिक भोजन तैयार करवाया जाएगा।
जिला प्रशासन ने मदद करने के इच्छुक तमाम व्यक्तियों को अपनी मदद सामग्री के रुप में या नगद राशि के रुप में देने को कहा था।
लेकिन पिछले छ: दिनों की वास्तविकता बेहद दुखदायी है। भोजन तैयार करने की जिम्मेदारी जिन्हे दी गई है,उनकी क्षमता एक हजार लोगों का भोजन तैयार करने भी नहीं है। वे जैसे तैसे एक हजार लोगों के लिए भोजन तैयार तो करते है,लेकिन उन्हे बहुत अधिक समय लगता है। इसका नतीजा यह है कि भूखे लोगों तक समय पर भोजन नहीं पंहुच पाता।
मदद करने वालें मदद करने को तैयार है,लेकिन प्रशासनिक बदइंतजामी का आलम यह है कि प्रशासनिक तंत्र इस मदद का उपयोग नहीं कर पा रहा है। भोजन बनाने वालों की क्षमता से अधिक भोजन सामग्र्री दानदाताओं के पास तैयार पडी है,लेकिन प्रशासन उसे लेने में ही सक्षम नहीं है। जिला प्रशासन के अधिकारियों में समन्वय का अभाव स्पष्ट नजर आता है। जिला प्रशासन छ: दिनों में इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यवस्था की समीक्षा तक नहीं कर पाया है और ना ही व्यवस्था में कोई सुधार आ पाया है। शहर की अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं और समाजसेवी स्वयं अपने व्यय पर भोजन तैयार करवा कर गरीबों में वितरण करने को तैयार है,लेकिन प्रशासन के अडियल रवैये के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है।
लॉक डाउन के अभी 19 दिन और बाकी है,यदि प्रशासन ने अपने तौर तरीकों में जल्दी बदलाव ना किया तो कोरोना की बजाय भूख का संकट बडा हो जाएगा। जरुरत इस बात की है कि जिला प्रशासन यथार्थ के धरातल पर आए और भोजन तैयार करने और वितरण करने के अनुभवी लोगों और संस्थाओं की फौरन मदद लें अन्यथा कोरोना का संकट भूख के संकट में बदलते देर नहीं लगेगी।