राम मंदिर ट्रस्ट और दिल्ली चुनाव…
प्रकाश भटनागर
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था तो राम मंदिर के लिए ट्रस्ट का एलान होना ही था। और कोर्ट ने ही समय सीमा तय की थी तो उस तय तारीख तक करना ही था। लेकिन केन्द्र में भाजपा और खासकर मोदी की सरकार है, दिल्ली में आठ फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोट डलना है तो संसद में की गई सरकार की इस घोषणा पर सवाल स्वाभाविक तौर पर उठना ही थे।
असउद्दीन औवेसी तो कुछ भी कह सुन सकते हैं लेकिन कांग्रेस को तोे कम से कम प्रतिक्रिया जाहिर करने से पहले याद रखना था कि राम मंदिर के पक्ष में देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद झारखंड के चुनाव में भाजपा मुंह की खा चुकी है। फिर भी औवेसी के सुर ताल में लय मिलाते हुए कांग्रेस महासचिव मधुसूदन मिस्त्री ने यह कह ही दिया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव को देखते हुए ही सरकार ने इसका एलान किया है।
दिल्ली की सत्ता से बाईस साल से बाहर भाजपा यहां केजरीवाल को पटकनी देने की जी तोड़ कोशिश कर रही है। उसके लिए प्रतिष्ठा इसलिए भी दांव पर है कि अभी बीते साल ही उसने दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर भारी भरकम जीत हासिल की थी। इसके अलावा पिछले विधानसभा चुनाव में वो एक तरह से नेस्तनाबूत ही हो गई थी। सत्तर में से उसके खाते में केवल तीन सीटें आर्इं थी। इसलिए जो संभव हो सकता है, वो भाजपा चुनाव जीतने के लिए करेगी ही। केजरीवाल चाहे जितनी दिल्ली के विकास की बातें कर लें, भाजपा को पता है कि वो ऐसे कोई दावे कर चुनाव नहीं जीतेगी। वो जीतेगी तो शाहीनबाग, सीएए, राममंदिर, बटाला हाउस जैसे मुद्दे ही उसके मारक हथियार हो सकते हैं। लेकिन दिल्ली वो महानगर है, जिसके बारे में समझा जा सकता है कि यहां की अधिकांश आबादी सोच समझ कर फैसले लेने में सक्षम है।
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर नौ नवंबर, 2019 को अपना फैसला सुनाया था। फैसले में ही मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने की समय सीमा के भीतर बोर्ड गठित करने के केन्द्र सरकार को निर्देश थे। हां ये तो हो सकता था कि सरकार और पहले बोर्ड का गठन कर देती। लेकिन अब भी अगर किया है तो इसका क्या फायदा होना है? यह तो देश में सभी को पता है कि राम मंदिर या भव्य राम मंदिर बन ही जाएगा। किसी शकशुबहे की गुंजाईश भी नहीं है इसलिए सरकार को यह काम इससे पहले ही करना था। लेकिन जिस तरह से संसद में प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर पक्ष रखा है, उसे राजनीतिक चश्में से देखा जाएगा। अब सवाल यह है कि क्या यह निर्णय दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को कोई लाभ पहुंचा पायेगा? खासकर यह बात ध्यान में रखते हुए कि इससे भी ज्यादा हल्ला उस समय मचा था जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर अपना फैलाया सुनाया था। कोर्ट के फैसले के चंद दिनों के भीतर हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। ऐसे में राममंदिर ट्रस्ट के गठन की घोषणा चुनाव पर बहुत फर्क डाल सकेगी, इस पर संदेह है।
लेकिन हां, भाजपा जीते या हारे, जिस तरह चुनाव में वो अपने नेताओें और कार्यकर्ताओं को झौंकती हैं, उससे बाकी राजनीतिक दल चाहे तो सीख सकते हैं। अब ये अलग मसला है कि भाजपा इस समय जिन मुद्दों पर विपक्षी दलों को खेलने के लिए बाध्य करती है, उसका मैदान तय करने की वो माहिर खिलाड़ी है। सीएए पर जिस तरह का बेवजह का हल्ला मचा है, उससे उसका वो वोट मजबूत ही हुआ होगा, जो इधर-उधर होने की गुंजाइश होगी। आखिर भाजपा को पता है कि एक समुदाय का वोट उसे अगर नहीं मिलता है तो नहीं मिलता है। लेकिन दिल्ली में सिख और सिंधी मतदाताओं की तादाद भी क्या कम है? तो जो भी खेल भाजपा ने शुरू किया है, मुझे लगता है भले ही केजरीवाल अपनी सरकार बना लें, पर भाजपा की दुर्गति करना इस बार उनके बस की बात नहीं होगी। हां, कांग्रेस ने थोड़ा भी जोर लगा लिया तो केजरीवाल का खेल जरूर बिगाड़ सकती है।