न्याय देने वाले स्वयं अन्याय के शिकार, प्रदेश के न्यायाधीशों के तबादलों में नियमों का खुला उल्लंघन
रतलाम,18 मार्च (तुषार कोठारी/ इ खबरटुडे)। जब किसी शासकीय कर्मचारी का स्थानान्तरण नियमों के विपरित कर दिया जाता है,तो वह न्यायालय में गुहार लगाकर न्याय प्राप्त कर लेता है। लेकिन मध्यप्रदेश में तो न्याय करने वाले न्यायाधीश खुद ही अन्याय के शिकार हो रहे है। अब उनकी सुनवाई कौन करेगा? जबलपुर में पदस्थ अति.जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरके श्रीवास ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति को पत्र लिख कर यह प्रश्न उठाया है। श्रीवास के पत्र में पचास से अधिक न्यायाधीशों का नियम विरुध्द स्थानान्तरण किए जाने की बात कही गई है।
हाल में जबलपुर के सिहोरा से जबलपुर पदस्थ किए गए अति.जिला एवं सत्र न्यायाधीश आर के श्रीवास ने उच्च न्यायालय के नवनियुक्त मुख्य न्यायाधिपति को लिखे अपने पत्र में कहा है कि वर्ष 2016 में भी उनका तबादला मनमाने ढंग से किया गया था। प्रदेश भर के कई न्यायाधीशों का तबादला नीति के विरुध्द किया गया था। तब भी आरके श्रीवास ने स्थानान्तरण के विरुध्द अभ्यावेदन प्रस्तुत किया था। उनके अभ्यावेदन को वर्ष २०१६ में निरस्त कर दिया गया था। इस वर्ष पुन: सिर्फ प्रताडित करने के उद्देश्य से उनका तबादला सिहोरा से विशेष कत्र्तव्यस्थ अधिकारी जबलपुर के रुप में कर दिया गया है।
श्री श्रीवास ने अपने पत्र में कहा है कि न्यायाधीशों के तबादलों के माननीय उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2015 में स्थानान्तरण पालिसी बनाई गई थी,जिसमें बाद में कुछ संशोधन भी किए गए थे। प्रदेश के न्याायिक अधिकारियों के लिए स्वयं हाईकोर्ट द्वारा बनाई गई तबादला नीति का हाईकोर्ट द्वारा ही उल्लंघन किया जा रहा है। श्री श्रीवास ने अपने पत्र में कहा है कि सामान्यतया एक न्यायाधीश का एक स्थान पर तीन वर्ष से पहले स्थानान्तरण नहीं किया जा सकता परन्तु उन्हे मात्र प्रताडित करने के आशय से उनका एक वर्ष में तीन बार तबादला किया गया है।
श्री श्रीवास ने अपने पत्र में प्रदेश के उन न्यायाधीशों की सूचि भी संलग्र की है,जिनके तबादले मनमाने ढंग से ट्रांसफर पालिसी के नियमों के विपरित जाकर किए गए है। अनेक न्यायाधीशों को एक वर्ष में तीन तीन बार स्थानान्तरित किया गया है। श्री श्रीवास ने अपने पत्र में जो सूचि प्रस्तुत की है,उसके अनुसार, व्यवहार न्यायाधीश वर्ग एक के कुल ग्यारह,व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-दो के कुल 24 न्यायाधीश,अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश स्तर के कुल 18 न्यायधीश तथा विशेष न्यायाधीश स्तर के कुल 10 न्यायाधीश,इस प्रकार कुल 55 न्यायाधीशों का स्थानान्तरण नियम विपरित किया गया है।
उल्लेखनीय है कि न्यायपालिका में न्यायाधीश की हैसियत से कार्य करने वाले व्यक्तियों को कडी मर्यादाओं का पालन करना पडता है। न्यायाधीश के रुप में कार्य करने वाले व्यक्ति,सामान्य कर्मचारियों की तरह अपनी समस्याएं,खुले तौर पर व्यक्त नहीं कर सकते। इसलिए स्थानान्तरणों में बडे पैमाने पर हो रही गडबडियों के बावजूद इनका कहीं जिक्र तक नहीं होता। न्यायिक इतिहास में संभवत: पहली बार आरके श्रीवास ने खुले तौर पर इन गडबडियों को उजागर करने का साहस दिखाया है। श्री श्रीवास कुछ समय पहले भी स्थानान्तरणों में गडबडी का मामला मीडीया के सामने उठा चुके है। प्रिन्ट और इलेक्ट्रानिक मीडीया के माध्यम से उन्होने आवाज उठाई थी। उनकी इस पहल का असर यह हुआ कि उनका एक बार फिर से नियम विरुध्द स्थानान्तरण कर दिया गया है।
आरके श्रीवास ने मुख्य न्यायाधिपति से गुहार लगाई है कि वे न्यायिक परिवार के सर्वोच्च मुखिया और उनके अधिकारों के संरक्षक है। ऐसी स्थिति में वे इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप कर अन्याय का शिकार बन रहे न्यायाधीशों के साथ न्याय करें।