December 25, 2024

कौन था नाथूराम गोडसे, हिन्दू आतंकवादी,देशभक्त या….?

nathuram

-तुषार कोठारी

चुनावी माहौल के आखरी चरण में नाथूराम गोडसे हर ओर चर्चा में है। कोई उसे आजादी के बाद भारत का पहला हिन्दू आतंकवादी बता रहा है,तो किसी ने उसे देशभक्त बताया। जैसे ही उसे देशभक्त कहा गया पूरे देश में कांग्रेस ने बवाल मचाना शुरु कर दिया। जब गोडसे को हिन्दू आतंकवादी कहा जा रहा था,तब कांग्रेस के नेता चुप्पी साधे बैठे थे,लेकिन जैसे ही गोडसे को देशभक्त कहा गया,वे बिफर पडे। इसी बहाने उन्हे चुनाव में भुनाने को एक बडा मुद्दा मिल गया था। भाजपा के लिए भी यह बडा धक्का साबित हुआ। भाजपा के प्रवक्ता ने फौरन प्रेस कान्फ्रेन्स करके इस बयान की निन्दा की और साध्वी प्रज्ञा को माफी मांगने की नसीहत भी दे दी गई।
लेकिन सवाल अपनी जगह कायम है कि नाथूराम गोडसे आखिर क्या था? क्या वह पहला हिन्दू आतंकवादी था या देशभक्त था या एक हत्यारा था…? इस सवाल का उत्तर ढूंढने से पहले आतंकवाद को समझना होगा। आतंकवाद आखिर क्या है? सामान्य तौर पर इसे यूं समझा जा सकता है कि अपनी धार्मिक मान्यता को किसी अन्य मान्यता वाले व्यक्ति पर थोपने के लिए हिंसा का सहारा लेना आतंकवाद है। दूसरे शब्दों में कहे,तो अपने धर्म को न मानने वाले लोगों को डराने के लिए निरपराध व्यक्तियों की हत्या कर देना आतंकवाद है। उदहारण के लिए इस्लाम को मानने वाला एक व्यक्ति किसी अन्य धर्म को मानने वाले व्यक्ति की सिर्फ इसलिए हत्या कर देता है,कि वह इस्लाम को नहीं मानता। हांलाकि इस्लामिक आतंकवाद तो अब शिया और सुन्नी विवाद तक जा पंहुचा है। शिया आतंकवादी सुन्नी मुसलमानों की हत्या कर रहे,तो दूसरी ओर सुन्नी आतंकवादी शियाओं की बेवजह हत्या कर रहे हैं। आतंकवादी कभी इस बात की चिंता नहीं करता कि उसके बम फोडने से कौन मर रहा है और उसका अपराध क्या है? आतंकवादी का उद्देश्य सिर्फ आतंक फैलाना होता है। इसी वजह से 26 /11 के आतंकवादी हमले में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने अंधाधुंध गोलियां चलाई थी,बिना यह देखें कि इन गोलियों से मर कौन रहा है?
यही बात हमारे अमर क्रान्तिकारियों को आतंकियों से अलग करती है। कहने को तो हमारे क्रान्तिकारियों ने अनेक क्रूर अंग्रेज अधिकारियों की हत्याएं की। लेकिन उनका यह कार्य देश के लिए था और उनकी गोलियों से कभी कोई निरपराध शिकार नहीं बना। बल्कि क्रांतिकारी तो किसी निरपराध की रक्षा के लिए अपनी जान तक देने को तैयार रहते थे। हांलाकि कांग्रेस के एक धडे ने और तथाकथित आधुनिक बुध्दिजीवियों ने क्रांतिकारियों को भी आतंकवादी कहने में कोई परहेज नहीं किया,यहां तक कि स्कूली पाठ्यक्रमों में भी क्रांतिकारियों को आतंकवादी लिखा गया।

खैर यह तो हुई आतंवादियों की बात। अब इस बात पर विचार किया जाए कि नाथूराम गोडसे देशभक्त था या और कुछ…? तो इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को टटोलना पडेगा। नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या की,यह तथ्य निर्विवाद है। लेकिन उस घटनाक्रम का विश्लेषण किया जाए,तो पता चलता है कि दिल्ली के बिडला हाउस में जब गोडसे ने गांधी जी पर गोलियां दागी,तब गोडसे ने किसी निरपराध पर गोलियां नहीं चलाई थी। उसने सिर्फ गांधी जी पर फायर किए थे। फायर करने के बाद वो भागा नहीं था,जबकि आतंकवादी हमला करने के बाद या तो भाग जाते है या खुद भी वहीं मर जाते है। गोडसे ने गांधी जी पर फायर करने के बाद खुद को पुलिस के हवाले कर दिया था।
पुलिस थाने में जब उसका बयान लिया जा रहा था,तब वह इस बात का विरोध करता रहा कि उसने गांधी जी की हत्या की है। वह कहता रहा कि उसने गांधी जी का वध किया है। अब समझिए इस अंतर को,हत्या और वध में क्या अंतर होता है? गोडसे ने कहा कि उसने गांधी जी की हत्या नहीं की है बल्कि वध किया है।

वध और हत्या में क्या अंतर है..? हत्या उसे कहा जाता है जब कोई व्यक्ति व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण किसी व्यक्ति की जान ले ले। लेकिन राम ने रावण की हत्या नहीं की थी,वध किया था। इसी तरह कृष्ण ने कंस की हत्या नहीं की थी,वध किया था। जब समाज के व्यापक हित में किसी को मारना जरुरी हो जाए,तो उसे हत्या नहीं वध कहा जाता है। जैसे सुप्रीम कोर्ट जब किसी नृशंस हत्यारे को मृत्युदण्ड की सजा देती है तो वह हत्या नहीं होता। नाथूराम का यही तर्क था कि उसने गांधी जी की हत्या नहीं की है,उसने गांधी जी का वध किया है। वध क्यो किया..? उसका कहना था कि गांधी जी ने देश की बहुत सेवा की,लेकिन गलत दिशा में जाने के कारण उन्होने देश का हद से ज्यादा नुकसान किया है। नाथूराम ने कहा कि यदि गांधी जी कुछ और समय जीवित रहते,तो वे भारत का और भी ज्यादा नुकसान कर देते। यही वजह थी कि वह मजबूर हो गया था कि गांधी जी को इस धराधाम से मुक्त कर दिया जाए। गोडसे ने अपने बयान में कहा था कि यदि देशभक्ति पाप है,तो उसने पाप किया है। गोडसे ने देश के विरुध्द कोई काम नहीं किया। नाथूराम की चलाई गोली से गांधी जी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं हुआ था। ये अलग बात है कि गांधी जी की हत्या के बाद कांग्रेसियों ने महाराष्ट्रिय ब्राम्हण परिवारों पर उसी तरह अत्याचार किया था,जैसा 1984 में इंदिरा जी की हत्या के बाद कांग्रेसियों ने सिखों पर अत्याचार किया था। हांलाकि यह बात कभी रेकार्ड पर आ ही नहीं पाई।

आजादी के बाद चूंकि सत्ता कांग्रेस के हाथों में आ गई थी,इसलिए गांधी विरोधी विचारों को पूरी तरह दबा दिया गया। नई पीढी को बता दिया गया कि एक पागल व्यक्ति ने गांधी जी की हत्या कर दी। जबकि वास्तविकता यह थी कि नाथूराम ना तो पागल था और ना मूर्ख। उसने जो कुछ किया उसके कारणों का वर्णन उसने कोर्ट में चले प्रकरण में किया था। गांधी जी के परिवार के लोग उसकी वकालात करने भी गए थे,लेकिन नाथूराम ने उन्हे ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया। उसने कहा कि वह अपना केस खुद लडेगा। कोर्ट में उसने अपना केस खुद लडा और जस्टिस जीडी खोसला ने उसके मामले में दिए अपने निर्णय में लिखा,जो आज भी रेकार्ड पर है कि यदि यहां उपस्थित जनता को ज्यूरि बनाकर फैसले का हक दिया जाए तो मुझे पूरा विश्वास है कि पूरी ज्यूरि एकमत से नाथूराम को निर्दोष करार दे देगी।
भारत के विभाजन के दौरान हुए नरंसहार,लाखों निरपराध लोगों की जघन्य हत्याएं ,महिलाओं के साथ हुए बलात्कार और दूध पीते बच्चों की हत्याओं की जिम्मेदारी गांधी जी पर थी या नहीं,जिन्होने कहा था कि देश का विभाजन होगा तो मेरी लाश पर होगा। लेकिन देश बंटा भी और गांधी जी राष्ट्रपिता भी बने। इतना ही नहीं विभाजन के बाद शरणार्थी बनकर आए हिन्दूओं पर भी अत्याचार हुए,जिसे गोडसे ने एक पत्रकार होने के नाते देखा था। इतना सबकुछ होने के बाद भी जब गांधी जी भारत पर हमला कर रहे पाकिस्तान को 55 करोड रु.दिलवाने के लिए बिडला हाउस में अनशन पर बैठे तब नाथूराम को लगा कि इनका जीवित रहना देश के लिए घातक है। उसी समय उसने गांधी जी की इहलीला समाप्त करने का फैसला किया।
सभ्य समाज में किसी व्यक्ति की हत्या करना अपराध है,जिसके लिए मृत्युदण्ड का प्रावधान है। गोडसे ने गांधी जी की हत्या की,इसलिए उसे मृत्युदण्ड दिया गया। लेकिन किसी व्यक्ति की हत्या करना देशद्रोह नहीं हो जाता,चाहे वह हत्या गाँधी जी की ही क्यों ना हो । गांधी जी की हत्या भी देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आती। यह तथ्य भी सामने है कि नाथूराम पर चला केस हत्या की धारा 302 भारतीय दंड विधान के तहत चला था ना कि देशद्रोह की धाराओं के तहत।
विचारणीय तथ्य यह भी है कि अंहिसा के पुजारी गांधी जी की हत्या के बाद उनके कथित अहिंसक अनुयाईयों ने न सिर्फ महाराष्ट्रीय ब्राम्हण परिवारों पर हिंसक हमले किए बल्कि नाथूराम को फांसी की सजा भी दिलवाई,जबकि आज गांधी जी के वे ही अनुयायी आतंकवादियों को दी जाने वाली फांसी को रोकने के लिए आधी रात को सुप्रीम कोर्ट खुलवा देते है।

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