कार्यकर्ता सम्मेलन की आधी कुर्सियां रहीं खाली
भाजपा के लिए चिंता का विषय हो सकती है अपेक्षा से कम उपस्थिति
रतलाम,1 नवंबर (इ खबरटुडे)। संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव को लेकर भाजपा द्वारा चम्पा विहार में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में कार्यकर्ताओं के लिए लगाई गई आधी कुर्सियां खाली पडी रही। अपेक्षित संख्या जुट नहीं पाई। हांलाकि मंच से नेताओं ने पिछले संसदीय चुनाव से अधिक लीड हासिल करने का संकल्प कार्यकर्ताओं से करवाया,लेकिन शुरुआती रुझान को देखकर यह सपना सच होता नहीं लगता। प्रदेश अध्यक्ष और संगठन महामंत्री जैसे बडे नेताओं की मौजूदगी और भोजन की व्यवस्था के बावजूद अपेक्षित संख्या न जुट पाना निश्चित तौर पर नेताओं के लिए चिंता का कारण हो सकता है।
संसदीय उपचुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनो ने ही अपने अपने स्तर पर तैयारियां शुरु कर दी है। कांग्रेस ने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कुशलगढ की बैठक से की। कांग्रेस की दिक्कत यह है कि वहां न तो कोई संगठन है और ना ही अब कार्यकर्ता बचे है। इसलिए चुनाव अभियान की शुरुआत प्रदेश से बाहर कुशलगढ से की गई,जहां तमाम नेताओं ने एक दूसरे पर जमकर भडास निकाली। कांग्रेस नेताओं को उम्मीद है कि नेताओं के आपसी शिकवे शिकायतें दूर होंगे तो शायद मामला कुछ जम सकेगा और कांग्रेस चुनाव में खडे रहने की स्थिति में आ सकेगी।
इसके विपरित भाजपा में स्थिति इतनी खराब नहीं है। भाजपा में गुटबाजी तो है,लेकिन कम से कम नेता,एक मंच पर बैठने को तो तैयार हो जाते है। चुनाव कार्यालय के शुभारंभ के बाद रविवार को रतलाम शहर और ग्रामीण के कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित किए गए थे। ग्रामीण क्षेत्र का सम्मेलन दोपहर में था,जबकि शहर का शाम को। कार्यकर्ता सम्मेलन के लिए प्रदेश अध्यक्ष नन्दकुमार सिंह चौहान,संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन,प्रदेश महामंत्री बंशीलाल गूर्जर जैसे दिग्गज नेता रतलाम पंहुचे थे। सम्मेलन स्थल चम्पा विहार पर कार्यकर्ताओं के लिए लगाई गई कुर्सियां दोपहर में तो लगभग पूरी भर गई थी,लेकिन शाम को शहर के सम्मेलन में आधी कुर्सियां खाली ही रह गई।
संख्या कम होने को यह कहकर टाला भी जा सकता है कि फिलहाल दीवाली का वक्त चल रहा है और अधिकांश लोग त्यौहार की तैयारियों में व्यस्त है। लेकिन दूसरी ओर इसका चिंताजनक पहलू भी है। देश की आजादी के बाद पहली बार भाजपा ने पिछले आम चुनाव में झाबुआ सीट पर खुद के दम पर जीत हासिल की थी। पहले यह कहा भी जाता था कि जब भी भाजपा झाबुआ सीट जीतेगी,तब देश में भाजपा की सरकार बन जाएगी। पिछले आम चुनाव में ठीक यही हुआ था। भाजपा पहली बार झाबुआ सीट जीती और देश में अपने दम पर स्पष्ट बहुमत भी ले आई। पिछले लोकसभा चुनाव में झाबुआ सीट की जीत का पूरा श्रेय रतलाम शहर और ग्रामीण विधानसभा सीटों को था। उस समय देश में चल रही मोदी लहर के चलते अकेले रतलाम शहर से भाजपा ने करीब पचपन हजार की बढत हासिल की थी। ग्रामीण सीट ने भी भाजपा को तगडी बढत दिलाई थी। और इन्ही दो विधानसभा सीटों के कारण झाबुआ में भाजपा की जीत का परचम लहराया था। लेकिन अब हालात जुदा है। अब लहर नहीं है। शहर और ग्रामीण विधायकों की कार्यशैली से आम लोगों में प्रसन्नता जैसा कोई वातावरण नहीं है। भाजपा के नेता भी जानते है कि पिछली बार जैसा प्रदर्शन दोहरा पाना एवरेस्ट पर चढने जैसा है। ऐसी स्थिति में सम्मेलन में कम लोगों का आना निस्संदेह चिंता को बढाने वाला है। हांलाकि चुनावी रंग दीवाली के बाद ही चढने की उम्मीद है और तभी यह साफ हो सकेगा कि उंट किस करवट बैठेगा?