इप्का श्रमिकों में पनप रहा है असंतोष
कस्बाई मानसिकता से किया जा रहा है प्रबन्धन
रतलाम,१० मई (इ खबरटुडे)। रतलाम की जीवनरेखा का दर्जा हासिल कर चुके उद्योग इप्का लैबोरेट्रीज के श्रमिक कम वेतन और दुव्र्यवहार के चलते आक्रोशित हो रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रिय स्तर का उद्योग बन चुकी इप्का लैबोरेट्रीज का स्थानीय प्रबन्धन कस्बाई मानसिकता के साथ उद्योग का संचालन कर रहा है। नतीजा यह है कि उद्योग के श्रमिकों में असंतोष बढता जा रहा है। दुनियाभर में अपनी दवाओं का निर्यात करने के लिए इप्का लैब द्वारा अनेक देशों के प्रमाणपत्र हासिल किए गए है,लेकिन समूह के रतलाम स्थित प्रमुख प्लान्ट में ही श्रमिक सामान्य सुविधाओं से भी वंचित है।
उल्लेखनीय है कि १९४९ में मुंबई में कुछ उद्यमियों द्वारा स्थापित इप्का लैबोरैट्रीज आज विश्व की प्रमुख दवा निर्माता कंपनी है। इप्का के रतलाम और इन्दौर में प्रमुख प्लान्ट है वहीं देश और विदेशों में भी इप्का के प्लान्ट है। इप्का का प्रबन्धन १९७५ में फिल्म इण्डस्ट्री के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन और उनके भाई ने अपने हाथों में लिया। इनके साथ एमआर चांदुरकर और पीसी गोधा भी इप्का के संचालकों में शामिल थे। बाद में बच्चन परिवार ने इस उद्योग से अपना नाता तोड लिया और वर्तमान में पीसी गोधा इप्का के प्रबन्ध संचालक हैं।
अपनी स्थापना के बाद से इप्का ने एन्टी मलेरियल ड्रग्स बनाने में सफलता अर्जित की और मलेरिया रोधी दवा के निर्माण में विश्व की अग्रणी कंपनियों में इप्का का नाम शामिल हो गया. आज विश्व के कई देशों को इप्का द्वारा दवाओं का निर्यात किया जा रहा है। इप्का द्वारा करीब १५० एपीआई (एक्टीव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएन्ट्स) का निर्माण किया जा रहा है। विश्व के विभिन्न देशों में एपीआई और अन्य दवाओं का निर्यात करने के लिए इप्का ने अमेरिका के यूएसएफडीए(यूनाईटेड स्टेट्स फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन), यूके (ब्रिटेन) के एमएचआरए ( मेडीसिन एण्ड हेल्थकेअर प्राडक्ट्स रेगुलेटरी अथारिटी),ब्राजील के एएनवीआईएसए (ब्राजीलियन नेशनल हेल्थ विजिलेंस एजेंसी),दक्षिण अफ्रीका के एमसीसी(मेडीसिन कंट्रोल कौंसिल) और आस्ट्रेलिया के टीजीेए इत्यादि से प्रमाण पत्र हासिल किए है। इन्ही विभागों के प्रमाणिकरण के आधार पर इप्का की दवाएं विभिन्न देशों में निर्यात होती है। ये प्रमाणपत्र जारी करने के लिए अमेरिका समेत विभिन्न देशों के जांच दल इप्का के रतलाम प्लान्ट में भी नियमित तौर पर आते रहते है।
जब कभी किसी विदेशी जांच दल का इप्का में दौरा होता है,इप्का द्वारा बडे पैमाने पर तैयारियां की जाती है। विदेशी संस्थाएं प्रमाणपत्र जारी करने से पहले उद्योग का निरीक्षण करके उद्योग की वास्तविक स्थितियों से वाकिफ होना चाहती है। मजेदार तथ्य यह है कि निरीक्षण दल अपने निरीक्षण के दौरान उद्योग के श्रमिक कर्मचारियों की स्थिति उन्हे मिलने वाली सुविधाओं इत्यादि की भी जानकारी लेते है। इप्का के प्रबन्धकों की टोली इन निरीक्षणों के दौरान येन केन प्रकारेण श्रमिकों की स्थिति और सुविधाओं वाले पहलू को इस तरह प्रस्तुत करते है कि विदेशी जांचदल इन्हे ठीक समझने लगते है। इसी आधार पर इप्का को विदेशी प्रमाणपत्र हासिल हो जाते है।
लेकिन अब स्थितियां बदल गई है। इप्का प्रबन्धन कहने को तो अन्तर्राष्ट्रिय स्तर का समूह है लेकिन श्रमिकों के प्रबन्धन के मामले में कस्बाई मानसिकता से काम किया जा रहा है। श्रमिकों को मिलने वाला वेतन न सिर्फ कम है बल्कि कंपनी का वर्किंग कल्चर भी अन्तर्राष्ट्रिय मानकों के मुताबिक नहीं है। श्रमिकों को सुविधाएं तभी मिलती है जब विदेशी जांच दल रतलाम में होते है। इसके अलावा सुविधाएं हटा ली जाती है। श्रमिक और निचले स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों के साथ उनके वरिष्ठ अत्यधिक दुव्र्यवहार करते है। ताजा उदाहरण इप्का के अत्यन्त महत्वपूर्ण विभाग आर एण्ड डी का है,जहां के पांच श्रमिकों को सुरक्षाकर्मियों ने भीतर जाने से रोक दिया। इन श्रमिकों का अपराध यह था कि उन्होने अपने विभाग प्रमुख के घरेलू काम करने इंकार कर दिया था। सूत्रों का कहना है कि अपने अधिकारियों के दुव्र्यवहार से बुरी तरह पीडीत श्रमिकों ने भी काम करने से इंकार कर दिया उनका कहना था कि उन्हे वेतन फैक्ट्री में काम करने का दिया जा रहा है,वे अफसर के घरेलू काम क्यों करें?
बहरहाल श्रमिकों में पनपते असंतोष का निराकरण करने के मामले भी इप्का प्रबन्धन की कोई खास रुचि नहीं है। लेकिन यदि हालात ऐसे ही रहे तो आने वाले दिनों में इप्का की स्थितियां बिगड सकती है।