अब स्टाम्प की भी कालाबाजारी
छोटे स्टाम्प की किल्लत से परेशान है हर कोई
रतलाम,5 जुलाई (इ खबरटुडे)। उपभोक्ता वस्तुओं की कालाबाजारी की बातें आपने सुनी होगी,लेकिन अब तो शहर में स्टाम्प पेपर्स की कालाबाजारी होने लगी है। जिले में स्टाम्प पेपर की भारी किल्लत है,नतीजतन कई स्टाम्प वेन्डर मौके का फायदा उठा कर स्टाम्प की कालाबाजारी में लग गए हैं। स्टाम्प पेपर्स की किल्लत के कारण सर्वाधिक परेशानी छात्रों को उठाना पड रही है,जिन्हे स्कूल व महाविद्यालयों में प्रवेश के लिए तरह तरह के शपथ पत्र प्रस्तुत करना पड रहे हैं।
आम तौर पर जिला न्यायालय परिसर और महलवाडा स्थित रजिस्ट्रार कार्यालय के आस पास स्टाम्प वेन्डर बैठते है,जो स्टाम्प का व्यवसाय करते है। स्टाम्प्स की सर्वाधिक खपत रजिस्ट्रार कार्यालय में ही होती है,जहां अचल सम्पत्तियों के सौदे रजिस्टर्ड किए जाते है और क्रेता या विक्रेता स्टाम्प क्रय करते है। रजिस्टार कार्यालय द्वारा प्रतिमाह लगभग तीन करोड रुपए स्टाम्प शुल्क वसूला जाता है। अर्थात यहां करीब तीन करोड के स्टाम्प प्रतिमाह बिक जाते है। चूंकि रजिस्ट्रार कार्यालय में सम्पत्तियों के सौदे होते है,इसलिए यहां बडी राशि के स्टाम्प ही अधिक विक्रय होते है। इनमें हजार,पांच हजार और दस हजार रुपए तक के स्टाम्प अधिक होते है। पांच,दस,बीस,पचास और सौ रु. के छोटे स्टाम्प्स की बिक्री का स्थान जिला न्यायालय परिसर है।
आम तौर पर शपथ पत्र और अनुबन्ध पत्रों के लिए छोटे स्टाम्प पेपर की आवश्यकता होती है। मध्यप्रदेश के स्टाम्प शुल्क अधिनियम में परिवर्तन के बाद अब शपथ पत्र के लिए पचास रुपए के स्टाम्प की आवश्यकता होती है,जबकि संशोधन के पहले तक मात्र दस रु. के स्टाम्प पर शपथ पत्र हो जाया करता था।
स्कूल व कालेज के छात्रों को शिक्षा सत्र के प्रारंभ में विभिन्न प्रकार के शपथ पत्रों की आवश्यकता होती है। मूल निवासी प्रमाणपत्र से लेकर गेप सर्टिफिकेट तक के लिए शपथपत्र बनवाना पडता है। जिले में छोटे स्टाम्प की किल्लत के चलते छात्र और उनके अभिभावकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड रहा है। दूसरे शहर के कालेज में प्रवेश लेने वाले छात्रों की मजबूरी यह है कि यदि वे आवश्यक दस्तावेज लेकर नहीं जाते तो उनका एडमिशन खटाई में पड सकता है। दस्तावेजों की पूर्ति बिना शपथ पत्र के संभव नहीं है। शपथपत्र स्टाम्प के बगैर बन नहीं सकता। ऐसी स्थिति में स्टाम्प वेन्डर पचास रु.के स्टाम्प के बदले में पांच-पांच सौ रुपए तक वसूल लेते है। कई छात्रों को तो पचास की बजाय सौ रुपए के स्टाम्प पर शपथ पत्र बनवाना पड रहा है,जो तकनीकी रुप से अवैध कहा जा सकता है,लेकिन शिक्षा संस्थाओं में कानून की समझ की कमी के चलते इस तरह के शपथ पत्र भी स्वीकार कर लिए जाते है। बहरहाल स्कूली छात्र और कालेज जाने वाले छात्र विगत कई दिनों से इस समस्या से जूझ रहे है,लेकिन इस समस्या का समाधान ही नहीं हो पा रहा है।
स्टाम्प की आपूर्ति की जिम्मेदारी,कोषालय अधिकारी की होती है। जिला कोषालय अधिकारी,जिले की मांग के अनुरुप स्टाम्प की मांग संभागीय कार्यालय को भिजवाता है और इस तरह आगे पूरे प्रदेश की आवश्यकता का आकलन करके नासिक के मुद्रणालय से स्टाम्प मंगवाए जाते है। जिला कोषालय अधिकारी अरविन्द गुप्ता का कहना है कि वे निरन्तर पत्र भेज रहे है,लेकिन मांग की पूर्ति नहीं हो पा रही है। जिले द्वारा जितने स्टाम्प की मांग की जा रही है,उससे आधे की ही आपूर्ति हो रही है। श्री गुप्ता का कहना है कि वे निरन्तर प्रयासरत है परन्तु समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। स्टाम्प का वास्तविक उपयोग पंजीयक कार्यालय को होता है,लेकिन स्टाम्प की आपूर्ति की व्यवस्था कोषालय के जिम्मे छोड दी गई है। उधर जिला पंजीयक दीपक गौड का कहना है कि उनका काम मात्र पंजीयन करना है,स्टाम्प की आपूर्ति उनकी जिम्मेदारी नहीं है। बहरहाल स्टाम्प की किल्लत की समस्या रतलाम,उज्जैन और नासिक के बीच झूल रही है और आम लोग परेशानी झेलने को मजबूर है।